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महर करो जन के सुखरासी, साँवलशा: खाटू के बासी
ये सारे खेल तुम्हारे हैं जग कहता खेल नसीबों का

ये सारे खेल तुम्हारे हैं जग कहता खेल नसीबों का

यह कहानी शुभकला और सागर की है, दो ऐसे व्यक्तियों की जिनकी जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि भगवान की कृपा सबसे बड़ी संपत्ति है, और सच्ची भक्ति सभी भौतिक इच्छाओं से परे है। यह कहानी हमें यह भी बताती है कि भगवान हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों के साथ होते हैं, और वे कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते हैं।

शुभकला एक गरीब विधवा थी जो एक छोटे से गाँव में रहती थी। उसका पति, जो एक किसान था, एक दुर्घटना में মারা गया था, और उसके बाद शुभकला को अपने छोटे से परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। उसके दो बच्चे थे, एक लड़का जिसका नाम सागर था और एक लड़की जिसका नाम मीरा था। शुभकला बहुत ही धार्मिक महिला थी, और वह हमेशा भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में लीन रहती थी। वह हर दिन मंदिर जाती थी और घंटों तक भजन और कीर्तन करती थी। गाँव के लोग शुभकला को उसकी सादगी, उसकी दयालुता और उसकी अटूट श्रद्धा के लिए बहुत सम्मान करते थे।

सागर एक प्रतिभाशाली और मेहनती लड़का था। वह अपनी माँ से बहुत प्यार करता था, और वह हमेशा उसकी मदद करने के लिए तैयार रहता था। वह जानता था कि उसकी माँ उसके और उसकी बहन के लिए कितना संघर्ष कर रही है, और वह चाहता था कि वह बड़ा होकर एक सफल व्यक्ति बने और अपनी माँ को सभी कष्टों से मुक्त करे। सागर पढ़ाई में बहुत अच्छा था, और वह हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आता था। उसके शिक्षक और सहपाठी उसकी प्रतिभा और समर्पण की प्रशंसा करते थे।

गाँव में एक बड़ा मंदिर था जो भगवान कृष्ण को समर्पित था। शुभकला और सागर दोनों ही इस मंदिर में नियमित रूप से जाते थे और भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते थे। शुभकला हमेशा भगवान कृष्ण से यही प्रार्थना करती थी कि वे उसके परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखें और उसे इतनी शक्ति दें कि वह अपने बच्चों को अच्छी तरह से पाल सके। सागर हमेशा भगवान कृष्ण से यह प्रार्थना करता था कि वे उसे एक सफल व्यक्ति बनने में मदद करें ताकि वह अपनी माँ और अपने गाँव के लोगों की सेवा कर सके।

एक दिन, गाँव में एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया। इस उत्सव में दूर-दूर से लोग आए थे। गाँव में बहुत चहल-पहल थी, और हर तरफ खुशी का माहौल था। शुभकला और सागर भी इस उत्सव में शामिल हुए। वे दोनों बहुत खुश थे, और वे भगवान कृष्ण के भजन और कीर्तन में पूरी तरह से लीन थे।

उत्सव के दौरान, गाँव के सबसे धनी व्यक्ति ने एक बहुत बड़ा दान दिया। उसने मंदिर को सोने और चाँदी से भर दिया, और उसने गरीबों को बहुत सारे कपड़े और भोजन भी वितरित किए। गाँव के लोग उस धनी व्यक्ति की उदारता से बहुत प्रभावित हुए, और वे उसकी प्रशंसा करने लगे।

जब शुभकला ने यह सब देखा, तो उसके मन में एक प्रश्न उठा। उसने भगवान कृष्ण से पूछा, “हे प्रभु, यह धनी व्यक्ति इतना दान कर रहा है, और हम यहाँ इतने गरीब हैं। क्या आप हम पर कृपा नहीं करेंगे? क्या आप हमें कुछ नहीं देंगे?”

तभी, सागर ने अपनी माँ से कहा, “माँ, हमें भगवान से धन और संपत्ति नहीं मांगनी चाहिए। हमें उनसे केवल उनकी भक्ति और उनकी कृपा मांगनी चाहिए। धन और संपत्ति तो आज है, कल नहीं रहेगी, लेकिन भगवान की भक्ति और उनकी कृपा हमेशा हमारे साथ रहेगी।”

शुभकला को सागर की बात समझ में आ गई। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, और उसने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी। उसने कहा, “हे प्रभु, मुझे क्षमा करें। मैं अज्ञानी थी जो मैंने आपसे धन और संपत्ति मांगी। मुझे अब समझ में आ गया है कि आपकी भक्ति और आपकी कृपा ही सबसे बड़ी संपत्ति है। मुझे बस यही चाहिए।”

उस दिन से, शुभकला और सागर ने कभी भी भगवान से भौतिक सुख-सुविधाओं की कामना नहीं की। वे हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहते थे, और वे हमेशा उनकी कृपा के लिए आभारी रहते थे। उन्होंने यह भी सीखा कि भगवान हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों के साथ होते हैं, और वे कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते हैं।

समय बीतता गया, और सागर बड़ा हो गया। वह एक बहुत ही बुद्धिमान और दयालु व्यक्ति बन गया था। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की। उसके बाद, उसे एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई, और वह जल्द ही एक सफल व्यवसायी बन गया।

सागर ने अपनी सफलता का श्रेय हमेशा भगवान कृष्ण और अपनी माँ को दिया। वह जानता था कि यह सब उनकी कृपा और आशीर्वाद के कारण ही संभव हुआ है। उसने हमेशा अपनी माँ का सम्मान किया और उसकी देखभाल की। उसने अपने गाँव के लोगों की भी मदद की और उन्हें गरीबी से बाहर निकालने में मदद की।

शुभकला अपने बेटे की सफलता देखकर बहुत खुश थी। उसे गर्व था कि उसने अपने बेटे को सही रास्ते पर चलना सिखाया था। उसने हमेशा सागर को भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में दृढ़ रहने के लिए प्रेरित किया था, और उसने उसे कभी भी भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे नहीं भागने दिया था।

एक दिन, सागर ने अपनी माँ से कहा, “माँ, अब हमारे पास सब कुछ है। हमारे पास धन है, संपत्ति है, और सम्मान है। लेकिन मुझे अभी भी कुछ कमी महसूस होती है। मुझे लगता है कि मुझे अभी भी भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में और अधिक लीन होना चाहिए।”

शुभकला ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, यह बहुत अच्छी बात है कि तुम ऐसा सोचते हो। यह भगवान कृष्ण की कृपा है कि उन्होंने तुम्हें यह अहसास कराया। सच्ची खुशी और संतुष्टि तो उनकी भक्ति में ही है। हमें हमेशा उनके प्रति आभारी रहना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए।”

उस दिन से, सागर और शुभकला दोनों ने अपना पूरा जीवन भगवान कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया। उन्होंने अपना सारा धन और संपत्ति गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में लगा दिया। वे हर दिन मंदिर जाते थे और घंटों तक भजन और कीर्तन करते थे। उन्होंने कई लोगों को भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में दृढ़ रहने के लिए प्रेरित किया।

सागर और शुभकला की कहानी हमें यह सिखाती है कि भगवान की कृपा सबसे बड़ी संपत्ति है, और सच्ची भक्ति सभी भौतिक इच्छाओं से परे है। यह कहानी हमें यह भी बताती है कि भगवान हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों के साथ होते हैं, और वे कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते हैं। हमें हमेशा भगवान के प्रति आभारी रहना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। यही जीवन का सच्चा मार्ग है।

कहानी का विस्तार

यह कहानी आज से लगभग 50 साल पहले, भारत के एक छोटे से गाँव गोपालपुर में शुरू होती है। गोपालपुर एक शांत और सुंदर गाँव था, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण के लिए जाना जाता था। गाँव के लोग भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे, और वे अक्सर अपनी प्रार्थना करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए गाँव के मंदिर में जाते थे।

शुभकला, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, एक गरीब विधवा थी जो गोपालपुर में रहती थी। उसके पति, रामनाथ, एक किसान थे, और उनकी मृत्यु एक खेत दुर्घटना में हुई थी। शुभकला और रामनाथ का एक सुखी वैवाहिक जीवन था, और वे दोनों भगवान कृष्ण के प्रति बहुत समर्पित थे। रामनाथ की मृत्यु के बाद, शुभकला पूरी तरह से तबाह हो गई थी। उसे लग रहा था कि उसने अपना सब कुछ खो दिया है।

शुभकला के दो बच्चे थे, सागर और मीरा। सागर 10 साल का था, और मीरा 8 साल की थी जब उनके पिता की मृत्यु हुई थी। सागर एक बहुत ही बुद्धिमान और जिम्मेदार लड़का था, और वह हमेशा अपनी माँ को सहारा देने की कोशिश करता था। मीरा एक प्यारी और मासूम लड़की थी, और वह हमेशा अपनी माँ और अपने भाई के साथ रहना चाहती थी।

रामनाथ की मृत्यु के बाद, शुभकला को अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। उसके पास कोई जमीन या संपत्ति नहीं थी, और उसे दूसरों के खेतों में काम करके अपना जीवन यापन करना पड़ता था। वह दिन-रात काम करती थी, लेकिन वह मुश्किल से ही अपने परिवार के लिए पर्याप्त भोजन जुटा पाती थी।

शुभकला के जीवन में सबसे बड़ी ताकत भगवान कृष्ण के प्रति उसकी अटूट भक्ति थी। वह हमेशा यह मानती थी कि भगवान उसके साथ हैं और वे उसकी मदद करेंगे। वह हर दिन मंदिर जाती थी और घंटों तक भजन और कीर्तन करती थी। वह अपनी सभी समस्याओं और दुखों को भगवान कृष्ण के सामने रखती थी, और वह हमेशा उनसे मार्गदर्शन और शक्ति मांगती थी।

सागर भी अपनी माँ की तरह ही भगवान कृष्ण का बहुत बड़ा भक्त था। वह अपनी माँ को उसकी भक्ति में हमेशा साथ देता था, और वह भी हर दिन मंदिर जाता था और भगवान से प्रार्थना करता था। सागर हमेशा भगवान कृष्ण से यह प्रार्थना करता था कि वे उसे एक सफल व्यक्ति बनने में मदद करें ताकि वह अपनी माँ और अपने गाँव के लोगों की सेवा कर सके।

गाँव के लोग शुभकला और सागर के संघर्षों के बारे में जानते थे, और वे हमेशा उनकी मदद करने के लिए तैयार रहते थे। वे उन्हें भोजन और कपड़े देते थे, और वे उन्हें उनके खेतों में भी मदद करते थे। हालाँकि, शुभकला और सागर हमेशा आत्मनिर्भर रहना चाहते थे, और वे कभी भी दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे।

एक दिन, गाँव में एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया। यह उत्सव भगवान कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में था, और इस उत्सव में दूर-दूर से लोग आए थे। गाँव में बहुत चहल-पहल थी, और हर तरफ खुशी का माहौल था। शुभकला और सागर भी इस उत्सव में शामिल हुए। वे दोनों बहुत खुश थे, और वे भगवान कृष्ण के भजन और कीर्तन में पूरी तरह से लीन थे।

उत्सव के दौरान, गाँव के सबसे धनी व्यक्ति, ठाकुर राजाराम ने एक बहुत बड़ा दान दिया। उन्होंने मंदिर को सोने और चाँदी से भर दिया, और उन्होंने गरीबों को बहुत सारे कपड़े और भोजन भी वितरित किए। ठाकुर राजाराम एक शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति थे, लेकिन वे अपनी उदारता और दयालुता के लिए भी जाने जाते थे।

गाँव के लोग ठाकुर राजाराम की उदारता से बहुत प्रभावित हुए, और वे उनकी प्रशंसा करने लगे। वे कहने लगे कि ठाकुर राजाराम एक महान व्यक्ति हैं और भगवान कृष्ण उन पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रखते हैं।

जब शुभकला ने यह सब देखा, तो उसके मन में एक प्रश्न उठा। वह भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में लीन थी, लेकिन उसने कभी भी इस तरह से धन और संपत्ति के बारे में नहीं सोचा था। उसने भगवान कृष्ण से पूछा, “हे प्रभु, यह धनी व्यक्ति इतना दान कर रहा है, और हम यहाँ इतने गरीब हैं। क्या आप हम पर कृपा नहीं करेंगे? क्या आप हमें कुछ नहीं देंगे?”

तभी, सागर ने अपनी माँ से कहा, “माँ, हमें भगवान से धन और संपत्ति नहीं मांगनी चाहिए। हमें उनसे केवल उनकी भक्ति और उनकी कृपा मांगनी चाहिए। धन और संपत्ति तो आज है, कल नहीं रहेगी, लेकिन भगवान की भक्ति और उनकी कृपा हमेशा हमारे साथ रहेगी। हमें हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए, और हमें कभी भी भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे नहीं भागना चाहिए।”

शुभकला को सागर की बात समझ में आ गई। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, और उसने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी। उसने कहा, “हे प्रभु, मुझे क्षमा करें। मैं अज्ञानी थी जो मैंने आपसे धन और संपत्ति मांगी। मुझे अब समझ में आ गया है कि आपकी भक्ति और आपकी कृपा ही सबसे बड़ी संपत्ति है। मुझे बस यही चाहिए। मुझे बस इतना चाहिए कि आप हमेशा मुझ पर और मेरे बच्चों पर अपनी कृपा बनाए रखें।”

उस दिन से, शुभकला और सागर ने कभी भी भगवान से भौतिक सुख-सुविधाओं की कामना नहीं की। वे हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहते थे, और वे हमेशा उनकी कृपा के लिए आभारी रहते थे। उन्होंने यह भी सीखा कि भगवान हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों के साथ होते हैं, और वे कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते हैं। उन्होंने यह भी सीखा कि सच्ची खुशी और संतुष्टि भगवान की भक्ति में ही है, और हमें हमेशा उनके प्रति आभारी रहना चाहिए।

समय बीतता गया, और सागर बड़ा हो गया। वह एक बहुत ही बुद्धिमान और दयालु व्यक्ति बन गया था। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की। उसने अपनी पढ़ाई के दौरान बहुत मेहनत की थी, और उसने हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उसके प्रोफेसर और सहपाठी उसकी प्रतिभा और समर्पण से बहुत प्रभावित थे।

अपनी डिग्री प्राप्त करने के बाद, सागर को एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। यह एक बहुत ही अच्छी कंपनी थी, और सागर को वहाँ बहुत अच्छी तनख्वाह मिलती थी। वह जल्द ही कंपनी में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गया, और वह अपनी मेहनत और ईमानदारी के लिए जाना जाता था।

सागर ने अपनी सफलता का श्रेय हमेशा भगवान कृष्ण और अपनी माँ को दिया। वह जानता था कि यह सब उनकी कृपा और आशीर्वाद के कारण ही संभव हुआ है। उसने हमेशा अपनी माँ का सम्मान किया और उसकी देखभाल की। उसने उसे सभी कष्टों से मुक्त कर दिया था, और वह उसे एक सुखी और आरामदायक जीवन प्रदान कर रहा था।

सागर ने अपने गाँव के लोगों की भी मदद की और उन्हें गरीबी से बाहर निकालने में मदद की। उसने गाँव में एक स्कूल और एक अस्पताल बनवाया, और उसने गरीबों को मुफ्त भोजन और कपड़े भी वितरित किए। वह हमेशा अपने गाँव के लोगों की सेवा करने के लिए तैयार रहता था, और वह हमेशा उनकी मदद करने के लिए तैयार रहता था।

शुभकला अपने बेटे की सफलता देखकर बहुत खुश थी। उसे गर्व था कि उसने अपने बेटे को सही रास्ते पर चलना सिखाया था। उसने हमेशा सागर को भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में दृढ़ रहने के लिए प्रेरित किया था, और उसने उसे कभी भी भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे नहीं भागने दिया था। शुभकला जानती थी कि सागर की असली संपत्ति उसकी भक्ति और भगवान की कृपा है, और वह हमेशा इसके लिए भगवान कृष्ण की आभारी थी।

एक दिन, सागर ने अपनी माँ से कहा, “माँ, अब हमारे पास सब कुछ है। हमारे पास धन है, संपत्ति है, और सम्मान है। लेकिन मुझे अभी भी कुछ कमी महसूस होती है। मुझे लगता है कि मुझे अभी भी भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में और अधिक लीन होना चाहिए।”

शुभकला ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, यह बहुत अच्छी बात है कि तुम ऐसा सोचते हो। यह भगवान कृष्ण की कृपा है कि उन्होंने तुम्हें यह अहसास कराया। सच्ची खुशी और संतुष्टि तो उनकी भक्ति में ही है। हमें हमेशा उनके प्रति आभारी रहना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। यही जीवन का सच्चा मार्ग है।”

उस दिन से, सागर और शुभकला दोनों ने अपना पूरा जीवन भगवान कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया। उन्होंने अपना सारा धन और संपत्ति गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में लगा दिया। वे हर दिन मंदिर जाते थे और घंटों तक भजन और कीर्तन करते थे। उन्होंने कई लोगों को भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में दृढ़ रहने के लिए प्रेरित किया। उनकी कहानी गाँव और उसके आसपास के क्षेत्रों में एक किंवदंती बन गई, और लोग दूर-दूर से उनकी sabiduría और भक्ति से सीखने के लिए आते थे।

सागर और शुभकला की कहानी हमें यह सिखाती है कि भगवान की कृपा सबसे बड़ी संपत्ति है, और सच्ची भक्ति सभी भौतिक इच्छाओं से परे है। यह कहानी हमें यह भी बताती है कि भगवान हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों के साथ होते हैं, और वे कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते हैं। हमें हमेशा भगवान के प्रति आभारी रहना चाहिए और उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए। यही जीवन का सच्चा मार्ग है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सच्ची खुशी बाहरी संपत्ति में नहीं पाई जाती है, बल्कि भगवान के साथ एक गहरा संबंध और दूसरों के प्रति निस्वार्थ सेवा में पाई जाती है।

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©️ श्याम मित्र द्वारा श्री श्याम के चरणों में समर्पित ©️