
जहां शीश चढ़ा उस धरा पर, वह भूमि है चुलकाना धाम—यहां हर कण में बर्बरीक की महागाथा गूंजती है, हर हवा में श्रद्धा नृत्य करती है।
भूमि की पुकार: चुलकाना धाम के उद्गम की कथा
बहुत पुरानी बात है, जब त्रेतायुग में चुनकट ऋषि अपनी तपोभूमि नौलखा बाग में अद्भुत साधना में लीन थे। उस क्षेत्र पर चक्रवाबैन नामक राजा का आतंक था, जिसने ऐलान किया—मेरे राज्य की हर प्रजा को केवल मेरा अन्न-जल ही ग्रहण करना होगा। जब चुनकट ऋषि ने राजा के आदेश को ठुकराया, तो टकराव की एक नई कहानी जन्म लेने लगी। साधु का सत्य और राजा की सत्ता आमने-सामने आ गई।
ऋषि के त्याग और धैर्य का परीक्षा उस रात हुई जब तपोभूमि छोड़ी और पृथ्वी के अंत तक पहुंचे—पर वहां क्या मिला? जल ही जल। अचानक—भगवान की लीला! समुंदर के किनारे प्यासा हिरण, उसके पीछे शेर, फिर आकाश से आया एक अदृश्य अस्त्र जिसने उस शेर को खत्म कर दिया। ऋषि को एहसास हुआ—भगवान की सत्ता हर जगह है, डर से भागना नहीं, डटकर मुकाबला करना चाहिए।
वापस लौटे चुनकट ऋषि अपनी तपोभूमि—अब वही भूमि चुलकाना धाम बनी। राजा का घमंड टूट गया, साधु का तेज जीत गया। ऋषि ने निष्कलंक कुशों का चमत्कारी प्रयोग कर राजा की सेना धूल में मिला दी। तब से धरती ने इस स्थान को चुनकट वाला बाग कहा, आज वही भक्तों के लिए चुलकाना धाम है।
बर्बरीक का शीश दान: महाभारतकालीन चमत्कार
काल बदला, युग बदला, द्वापर में चुलकाना धाम फिर चर्चा में आया। महाभारत का महासंग्राम, घटोत्कच और कामकन्टकटा के पुत्र, वो वीर—बर्बरीक। शिव के आशीर्वाद से तीन बाणों का स्वामी, दादी विजया देवी की कृपा। माता की शर्त—हारने वालों का साथ देना। वीर बर्बरीक, जिसका संकल्प था—जो हार रहा है, उसका सहारा बनना।
बर्बरीक अपने विश्वास का घोड़ा लीला पर सवार, मैदान में पहुंचे। श्री कृष्ण ने ब्राह्मण रूप में युद्धस्थल पर पहुंचे बर्बरीक के समर्पण की परीक्षा ली। बर्बरीक ने कृष्ण के कहने पर बिना झिझक अपना सिर अर्पित किया। कृष्ण ने उसका शीश अमर बना चुलकाना धाम की भूमि पर स्थापित किया। वही चुलकाना, जहां बर्बरीक का शीश वर्षा-पवन, दुःख-सुख के हर क्षण में श्रद्धालुओं को आश्रय देता है।
पीपल के वृक्ष की छांव में आज भी बर्बरीक के बाणों के छेद हैं—महाभारत के समय की निशानी।
मेले और भक्ति की सौगात
फाल्गुन मास आते ही चुलकाना धाम में मेले की रौनक, भक्तों की उमंग बढ़ जाती है। कोई पीला झंडा हाथ में लिए, कोई बाबा की पालकी के साथ जयकारें करता हुआ—हर कोई उसी धाम की ओर, जहां शीश का दान हुआ था। दिन में दर्शन, रात में जागरण, भजन और भक्तों की अनगिनत मन्नतें।
पूजन-विधि यहाँ सरल है—केवल सच्ची श्रद्धा चाहिए। श्याम बाबा का चित्र या मूर्ति, पंचामृत, पुष्पमाला, दीपक, और प्रेम से भरी मनोदशा। चूरमा-दाल बाटी हो या मावे के पेड़े—सब बाबा को अर्पण कर सकते हैं। आरती के बाद 11 जयकारों से सारा वातावरण श्याममयी हो जाता है।
यात्रा की तैयारी और स्वाद की खुशबू
चुलकाना धाम हरियाणा के पानीपत जिले में, दिल्ली से पास—रेल मार्ग हो या रोड ट्रिप, सबसे निकट रेलवे स्टेशन भोडवाल मजरी या समालखा। वहाँ से मंदिर तक ऑटो से पहुंचें। मंदिर परिसर में सिर्फ शुद्ध शाकाहारी व्यंजन ही मिलने वाले हैं—पूरी तरह आध्यात्मिक स्वाद के साथ।