
अगर तू आ जाये तो घर मंदिर बन जाये
राजस्थान के हृदय, कोटा शहर में, बनवारी लाल नाम का एक व्यक्ति रहता था। बनवारी लाल श्याम बाबा का एक निष्ठावान भक्त था। वह हर रोज खाटू जाता और बाबा के दर्शन करता। उसका अटूट विश्वास था कि श्याम बाबा ही उसका सब कुछ हैं। वह अक्सर गुनगुनाता रहता, “तोसे यो मंदिर ना छूटे, मोसे यो परिवार, हम दोनों को वो मिल जाये, जिसको जो दरकार, अगर तू घर आ जाये, तो घर मंदिर बन जाये।”
बनवारी लाल का एक भरा-पूरा परिवार था। उसकी पत्नी, तीन बच्चे और बूढ़ी माँ उसके साथ रहते थे। वह अपने परिवार से बहुत प्यार करता था और उनकी हर जरूरत का ध्यान रखता था। लेकिन उसका मन हमेशा श्याम बाबा के चरणों में रमा रहता था। वह चाहता था कि उसका घर भी श्याम बाबा के मंदिर के समान पवित्र और आनंदमय बन जाए।
एक दिन, बनवारी लाल खाटू से लौट रहा था। रास्ते में वह सोच रहा था कि वह हर रोज मंदिर जाता है, लेकिन उसके परिवार वाले बाबा के दर्शन के लिए अक्सर नहीं जा पाते। उसकी बूढ़ी माँ की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और बच्चे अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहते थे। बनवारी लाल को यह बात कचोट रही थी। वह चाहता था कि उसके घर में भी श्याम बाबा का वास हो ताकि उसका पूरा परिवार उनकी कृपा का भागीदार बन सके।
घर पहुँचकर बनवारी लाल ने अपनी पत्नी से अपनी इच्छा व्यक्त की। उसने कहा कि वह चाहता है कि वे अपने घर को ही श्याम बाबा का मंदिर बना लें। उसकी पत्नी, शांति देवी, एक धार्मिक महिला थीं और उन्होंने बनवारी लाल की बात का समर्थन किया। बच्चे भी अपने पिता की इस इच्छा से खुश थे।
बनवारी लाल ने तुरंत अपने घर को सजाना शुरू कर दिया। उसने घर के एक कमरे को साफ करके वहाँ श्याम बाबा की एक सुंदर मूर्ति स्थापित की। उसने दीवारों पर बाबा के सुंदर चित्र लगाए और कमरे को फूलों और सुगंधित धूप से महका दिया। उसने हर रोज सुबह और शाम वहाँ बाबा की आरती करने का नियम बनाया।
धीरे-धीरे, बनवारी लाल का घर सचमुच श्याम बाबा के मंदिर जैसा बन गया। हर रोज सुबह-शाम उनके घर में भजन-कीर्तन होता था और पूरा परिवार मिलकर बाबा की पूजा करता था। बनवारी लाल की बूढ़ी माँ को भी अब बाबा के दर्शन करने के लिए खाटू जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। वह घर में ही बाबा की भक्ति में लीन रहती थीं।
बनवारी लाल का मानना था, “मंदिर तुम्हारा बाबा, दर है हमारा, बदले ना मंदिर घर में, नियम है तुम्हारा।” वह जानता था कि मंदिर तो बाबा का है और उसका घर उनका द्वार है। वह यह भी जानता था कि बाबा के नियम कभी बदलते नहीं हैं। वह बस पल दो पल के दर्शन का अधिकारी है।
बनवारी लाल हर रोज बाबा से प्रार्थना करता था कि वे उसके घर पर अपनी कृपा बनाए रखें। वह कहता था, “पल दो पल दर्शन का बाबा, है हमको अधिकार, हम दोनों को वो मिल जाये, जिसको जो दरकार, अगर तू घर आ जाये, तो घर मंदिर बन जाये।”
समय बीतता गया। बनवारी लाल के घर की पवित्रता और भक्तिमय वातावरण आसपास के लोगों को भी आकर्षित करने लगा। धीरे-धीरे, उसके घर पर भी श्याम बाबा के भक्तों का जमावड़ा लगने लगा। हर एकादशी को उसके घर पर विशाल भजन-कीर्तन होता था और दूर-दूर से लोग आकर बाबा की भक्ति में लीन होते थे।
बनवारी लाल कभी भी यह नहीं भूलता था कि मंदिर पर तो उसका कोई हक नहीं है, लेकिन उसके घर पर तो श्याम बाबा का पूरा हक है। वह कहता था, “मंदिर पे तेरे बाबा, हक़ ना हमारा, मगर मेरे घर पे बाबा, हक़ है तुम्हारा।”
उसे विश्वास था कि “जहां जहां पे कदम रखोगे, वहीं लगे दरबार।” वह जानता था कि श्याम बाबा जहाँ भी अपने चरण रखते हैं, वहीं उनका दरबार सज जाता है। इसलिए उसे अपने घर को मंदिर बनाने में कोई संकोच नहीं था।
बनवारी लाल को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि श्याम बाबा मंदिर में विराजमान हैं या उसके घर में। वह जानता था कि “फरक क्या पड़ेगा तुमको, इधर और उधर में, जो बात मंदिर में है, वही बात घर में।” उसे यह भी पता था कि मंदिर में बाबा को छत्र और सिंहासन मिलता है, लेकिन उसके घर में उन्हें उसका पूरा परिवार मिलेगा।
वह कहता था, “वहाँ मिले तुम्हें छतर सिंहासन, यहाँ मिले परिवार, हम दोनों को वो मिल जाये, जिसको जो दरकार, अगर तू घर आ जाये, तो घर मंदिर बन जाये।”
बनवारी लाल ने अपने घर को श्याम बाबा को समर्पित कर दिया था। उसने बाबा से प्रार्थना की थी कि वे उसके घर को अपना घर समझें और उसे अपना बेटा बना लें। उसने यह भी कहा था कि अगर बाबा उसके घर को मंदिर समझते हैं तो वह उनका नौकर बनकर उनकी सेवा करने के लिए तैयार है।
वह कहता था, “घर को जो अपना समझो, बेटा बना लो, घर को जो मंदिर समझो, नौकर बना लो।”
बनवारी लाल को बस श्याम बाबा की सेवा और उनका प्यार चाहिए था। उसे और कुछ नहीं चाहिए था। वह कहता था, “‘बनवारी’ बस सेवा चाहिए, चाहिए तेरा प्यार, हम दोनों को वो मिल जाये, जिसको जो दरकार, अगर तू घर आ जाये, तो घर मंदिर बन जाये।”
श्याम बाबा ने बनवारी लाल की भक्ति और उसके प्रेम को स्वीकार किया। उसका घर सचमुच एक मंदिर बन गया जहाँ हर पल बाबा की कृपा बरसती थी। बनवारी लाल और उसका परिवार हमेशा खुश और संतुष्ट रहते थे।
एक दिन, बनवारी लाल बीमार पड़ गया। उसकी तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। उसके परिवार वाले बहुत चिंतित थे। बनवारी लाल ने उनसे कहा कि उन्हें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है। उसने अपना पूरा जीवन श्याम बाबा की भक्ति में बिताया है और उसे विश्वास है कि अंतिम समय में भी बाबा ही उसका साथ देंगे।
बनवारी लाल ने अपने परिवार से कहा कि वे कभी भी अपने घर के मंदिर को न छोड़ें और हमेशा श्याम बाबा की पूजा करते रहें। उन्होंने कहा कि बाबा हमेशा उनके साथ रहेंगे और उनकी हर मनोकामना पूरी करेंगे।
कुछ दिनों बाद, बनवारी लाल ने शांतिपूर्वक अपने प्राण त्याग दिए। उसके परिवार और आसपास के सभी लोग उसकी भक्ति और उसके प्रेम को याद करते रहे। बनवारी लाल ने अपने घर को ही श्याम बाबा का मंदिर बना दिया था और बाबा ने भी हमेशा उसके घर पर अपनी कृपा बनाए रखी।
बनवारी लाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि श्याम बाबा प्रेम और भक्ति के भूखे हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ उनकी पूजा करते हैं, महत्वपूर्ण यह है कि हमारा हृदय सच्चा और प्रेम से भरा होना चाहिए। अगर हम अपने घर को भी प्रेम और भक्ति से श्याम बाबा को समर्पित कर दें तो वह घर भी मंदिर के समान पवित्र और आनंदमय बन जाता है।
बनवारी लाल ने अपने जीवन में यही किया। उसने अपने घर को श्याम बाबा का मंदिर बनाया और बाबा ने भी हमेशा उसके घर पर अपना वास रखा। उसकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है कि वे अपने घरों को भी भक्ति और प्रेम का केंद्र बनाएं।
“तोसे यो मंदिर ना छूटे, मोसे यो परिवार, हम दोनों को वो मिल जाये, जिसको जो दरकार, अगर तू घर आ जाये, तो घर मंदिर बन जाये।” यह पंक्ति बनवारी लाल के हृदय की गहरी इच्छा को व्यक्त करती है और यह सिखाती है कि सच्चे भक्त के लिए भगवान और उसका परिवार दोनों ही महत्वपूर्ण हैं और दोनों को ही भगवान के प्रेम और कृपा का भागीदार बनना चाहिए।
श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!