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पुनरागमन की पुकार: प्रयागराज से खाटू की ओर
जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे

जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे

राजस्थान के कोटा शहर में, यमुना नाम की एक महिला रहती थी। यमुना बचपन से ही भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थी। उसकी भक्ति इतनी गहरी थी कि उसने अपना पूरा जीवन कान्हा को समर्पित कर दिया था। वह हर पल उनकी याद में खोई रहती और उनके मधुर भजनों को गुनगुनाती रहती। उसका हृदय हमेशा इस आस में रहता था कि एक दिन उसके प्यारे श्याम उसके घर जरूर आएंगे। वह अक्सर कहती, “पलके ही पलके बिछाएंगे, जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे।”

यमुना का छोटा सा घर उसकी भक्ति का केंद्र था। वह हर रोज सुबह उठकर अपने घर को साफ करती, फूलों से सजाती और कान्हा की सुंदर मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाती। उसे ऐसा लगता था जैसे वह अपने प्रियतम के स्वागत की तैयारी कर रही हो। वह हमेशा सोचती, “घर का कोना कोना, मैंने फूलों से सजाया, बन्दन वार बंधाई, घी का दीप जलाया।”

यमुना कान्हा के जन्मों से दीवानी थी। उसे ऐसा लगता था जैसे उसका और कान्हा का रिश्ता इस जन्म का नहीं, बल्कि जन्मों-जन्मों का है। वह हर पल उनके मधुर भजनों को सुनने और सुनाने के लिए आतुर रहती थी। वह कहती, “हम तो हैं कान्हा के, जन्मों से दीवाने रे, मीठे मीठे भजन सुनाएंगे, जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे।”

यमुना हर रोज गंगाजल से भरी झारी लेकर आती और प्रभु के चरणों को पखारने की कल्पना करती। वह उन्हें प्रेम से भोग लगाती, लाड़ लड़ाती और आरती उतारती। उसकी आँखों में हमेशा अपने प्यारे श्याम के दर्शन की प्यास बनी रहती थी। वह कहती, “गंगाजल की झारी, प्रभु के चरण पखारूँ, भोग लगाऊं लाड़ लड़ाऊं, आरती उतारूं।”

यमुना का हृदय हमेशा कान्हा के प्रेम में डूबा रहता था। उसकी एकमात्र लगन यही थी कि किसी तरह उसे अपने मोहन का प्रेम रूपी अमृत मिल जाए। वह चाहती थी कि उसके जन्मों-जन्मों की मैली चादर कान्हा अपने प्रेम के रंग में रंग दें। वह कहती, “अब तो लगन एक ही मोहन, प्रेम सुधा बरसा दे, जनम जनम की मैली चादर, अपने रंग रंगा दे।”

यमुना का जीवन कान्हा के इंतजार में बीत रहा था। उसे पूरा विश्वास था कि एक दिन उसके प्यारे श्याम जरूर उसके घर आएंगे और उसके जीवन को सार्थक बना देंगे। वह कहती, “जीवन को जीवन बनायेंगे, जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे, पलके ही पलकें बिछायेंगे, जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे।”

गाँव के लोग यमुना की भक्ति और उसके अटूट विश्वास को देखकर हैरान होते थे। कुछ लोग उसे पागल भी समझते थे, लेकिन यमुना को किसी की परवाह नहीं थी। उसका तो श्याम से ऐसा नाता था जो दुनियादारी से परे था।

एक दिन, यमुना बीमार पड़ गई। उसकी तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। गाँव के वैद्य ने भी जवाब दे दिया। यमुना को लग रहा था जैसे अब उसका अंतिम समय करीब आ गया है। लेकिन उसके मन में कोई डर नहीं था। उसे पूरा विश्वास था कि इस अंतिम समय में उसके प्यारे श्याम जरूर उसके पास आएंगे।

उसने अपनी आँखों को बंद कर लिया और कान्हा का ध्यान करने लगी। उसके होंठों पर उनके मधुर भजन थे और हृदय में उनके दर्शन की तीव्र इच्छा।

तभी यमुना को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके कमरे में एक दिव्य प्रकाश फैल गया हो। उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और देखा कि उसके सामने स्वयं भगवान कृष्ण खड़े हैं। उनका रूप इतना सुंदर और मनमोहक था कि यमुना की आँखें खुली की खुली रह गईं।

कान्हा ने यमुना के सिर पर अपना हाथ रखा और मुस्कुराते हुए कहा, “यमुना, मैं जानता था कि तुम मेरा बेसब्री से इंतजार कर रही हो। आज मैं तुम्हारे घर आ गया हूँ।”

यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसकी बरसों की तपस्या आज सफल हो गई थी। उसकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे। उसने कान्हा के चरणों में अपना सिर रख दिया और कहा, “मेरे प्यारे श्याम, मेरा जीवन धन्य हो गया।”

कान्हा ने यमुना को उठाया और उसे अपने हृदय से लगा लिया। उस पल यमुना ने परम आनंद की अनुभूति की। उसे ऐसा लगा जैसे उसके सारे दुख और दर्द दूर हो गए हों।

कुछ समय बाद, यमुना ने शांतिपूर्वक अपने प्राण त्याग दिए। गाँव के लोग यमुना की मृत्यु से बहुत दुखी हुए, लेकिन उन्हें यह भी पता था कि वह अपने प्यारे कान्हा के धाम चली गई है।

यमुना की कहानी गाँव के लोगों के लिए एक प्रेरणा बन गई। उन्होंने जाना कि सच्ची भक्ति और अटूट विश्वास से भगवान को भी अपने भक्त के पास आना पड़ता है।

आज भी कोटा के उस गाँव में यमुना का छोटा सा घर उसकी भक्ति की याद दिलाता है। लोग वहाँ जाते हैं और यमुना के प्रेम और समर्पण की कहानियाँ सुनते हैं।

यमुना का जीवन हमें यह सिखाता है कि हमें हमेशा अपने आराध्य का इंतजार करना चाहिए और उन पर अटूट विश्वास रखना चाहिए। जब हमारी भक्ति सच्ची होती है और हमारा हृदय प्रेम से भरा होता है, तो भगवान निश्चित रूप से हमारे पास आते हैं।

यमुना ने अपने पूरे जीवन पलकें बिछाकर अपने प्यारे श्याम का इंतजार किया और अंततः उसे अपने प्रियतम के दर्शन हुए। उसकी कहानी उस अटूट प्रेम और विश्वास की कहानी है जो एक भक्त और भगवान के बीच होता है।

“पलके ही पलके बिछाएंगे, जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे।” यह केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि एक भक्त के हृदय की गहरी भावना है जो उसे अपने प्यारे भगवान के आगमन की प्रतीक्षा में हर पल आतुर रखती है।

यमुना की भक्ति और इंतजार हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने हृदय को हमेशा शुद्ध और प्रेम से भरा रखना चाहिए ताकि जब हमारे प्यारे भगवान हमारे घर आएं तो उन्हें वहाँ प्रेम और श्रद्धा का ही वातावरण मिले।

उसने अपने घर के कोने-कोने को फूलों से सजाया था, बंधनवार बंधाई थी और घी का दीप जलाया था, यह सब उसके प्रेम और समर्पण का प्रतीक था। हमें भी अपने हृदय को इसी तरह प्रेम और भक्ति से सजाकर रखना चाहिए।

यमुना ने गंगाजल से प्रभु के चरणों को पखारने की कल्पना की थी, उन्हें भोग लगाया था, लाड़ लड़ाया था और आरती उतारी थी। यह सब उसकी गहरी श्रद्धा और प्रेम को दर्शाता है। हमें भी इसी भाव से अपने आराध्य की सेवा करनी चाहिए।

यमुना की एकमात्र लगन थी कि उसे अपने मोहन का प्रेम रूपी अमृत मिल जाए और उसके जन्मों-जन्मों की मैली चादर उनके रंग में रंग जाए। हमें भी इसी तरह अपने हृदय को भगवान के प्रेम में रंगने की इच्छा रखनी चाहिए।

यमुना का अटूट विश्वास था कि एक दिन उसके प्यारे श्याम जरूर उसके घर आएंगे और उसके जीवन को सार्थक बना देंगे। हमें भी इसी विश्वास के साथ अपने आराध्य का इंतजार करना चाहिए।

यमुना की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों के साथ होते हैं, भले ही वे हमें दिखाई न दें। हमें बस अपने हृदय की आँखों से उन्हें महसूस करने की जरूरत है।

अंत में, यही कहना चाहूंगा कि हमें हमेशा अपने प्यारे श्याम का इंतजार करते रहना चाहिए और अपने हृदय को उनके प्रेम और भक्ति से भरा रखना चाहिए। वह दिन जरूर आएगा जब हमारे प्यारे श्याम हमारे घर आएंगे और हमारे जीवन को धन्य कर जाएंगे।

“पलके ही पलके बिछाएंगे, जिस दिन श्याम प्यारे घर आयेंगे।” यह प्रतीक्षा प्रेम की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति है और यह हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम हमेशा इंतजार करता है और अंततः अपने प्रियतम को पा ही लेता है।

श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!

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©️ श्याम मित्र द्वारा श्री श्याम के चरणों में समर्पित ©️