
रोती है तेरी याद में
राजस्थान के ऐतिहासिक शहर, चित्तौड़गढ़ में, मीरा नाम की एक महिला रहती थी। मीरा बचपन से ही श्याम बाबा की अनन्य भक्त थी। उसका हृदय बाबा के प्रेम और भक्ति से ओतप्रोत था। हर सुबह और शाम, वह बाबा के भजन गाती और उनकी मूर्ति के सामने घंटों तक बैठी रहती। उसका जीवन श्याम बाबा के बिना अधूरा था।
एक दिन, मीरा के जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उसे श्याम बाबा से दूर कर दिया। उसके पति, जो एक सरकारी कर्मचारी थे, का तबादला सुदूर दक्षिण भारत में हो गया। मीरा के लिए अपने पति का साथ छोड़ना मुश्किल था, लेकिन एक पत्नी के रूप में उसने अपना धर्म निभाया और उनके साथ चली गई।
नए शहर में मीरा का मन नहीं लगता था। उसे हर पल अपने प्यारे श्याम बाबा की याद आती थी। चित्तौड़गढ़ में वह हर रोज मंदिर जाती थी, बाबा के दर्शन करती थी, उनके भक्तों से मिलती थी, लेकिन यहाँ सब कुछ अलग था। न तो वैसा मंदिर था, न वैसे भक्त और न ही वैसी भक्तिमय वातावरण।
मीरा की आँखें हर पल श्याम बाबा की याद में झुकी रहती थीं। उसे ऐसा लगता था जैसे उसकी साँसें भी हिचकियों के साथ रुकी-रुकी आ रही हों। वह हर पल यही सोचती, “रोती है तेरी याद में, आँखे झुकी झुकी, आती है हिचकियों से, ये सांसे रुकी रुकी, रोती है तेरी याद में, आँखे झुकी झुकी।”
नए शहर का शोरगुल और भागदौड़ मीरा को बिल्कुल पसंद नहीं था। उसे अपने शांत चित्तौड़गढ़ और अपने प्यारे श्याम बाबा की याद सताती रहती थी। वह अक्सर उदास बैठी रहती और पुरानी यादों में खो जाती।
एक दिन, मीरा ने अपने पति से अपनी व्यथा कही। उसने कहा कि उसका मन यहाँ बिल्कुल नहीं लग रहा है और उसे हर पल श्याम बाबा की याद आती है। उसके पति ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वे मीरा के हृदय की गहराई को नहीं समझ पाए।
मीरा सोचती, “क्या ये अजीब बात है, तुमको खबर नहीं, तेरे बिना ओ साँवरे, मेरी गुजर नहीं।” उसे आश्चर्य होता था कि उसके प्यारे बाबा को उसकी इस व्याकुलता की खबर क्यों नहीं है। क्या वे उसे भूल गए हैं? क्या अब उन्हें उसकी परवाह नहीं है?
दिन बीतते गए, लेकिन मीरा की उदासी कम नहीं हुई। उसे हर चीज वीरान और बेरंग लगती थी। उसकी आशा भी धीरे-धीरे थकने लगी थी। वह महसूस करती थी, “लगती वीरानियों में, आशा थकी थकी, रोती है तेरी याद में, आँखे झुकी झुकी।”
एक रात, मीरा ने सपने में श्याम बाबा को देखा। बाबा उदास खड़े थे और उनकी आँखों में भी आँसू थे। मीरा दौड़कर उनके पास जाना चाहती थी, लेकिन वह अपनी जगह से हिल भी नहीं पाई। बाबा ने उसकी ओर देखा और कहा, “मीरा, मैं जानता हूँ कि तुम मुझसे दूर होकर दुखी हो। मैं भी तुम्हें हर पल याद करता हूँ। जल्द ही हम फिर मिलेंगे।”
सपने से जागने के बाद मीरा को थोड़ी शांति मिली। उसे लगा जैसे बाबा ने उसकी पुकार सुन ली है। लेकिन दिनभर फिर से उसे उनकी याद सताती रही। वह सोचती, “तुम जानते हो फिर भी क्यूँ, अनजान बन गए, किस अजनबी के आज तुम, मेहमान बन गए।” उसे यह सोचकर और भी दुख होता था कि उसके प्यारे बाबा अब उससे अनजान क्यों बन गए हैं और किसके साथ वे अपना समय बिता रहे हैं।
मीरा का हृदय दर्शन के लिए व्याकुल रहता था। उसे ऐसा लगता था जैसे बाबा के दर्शन के बिना उसका दिल हमेशा दुखी रहेगा। वह हर पल यही प्रार्थना करती थी कि उसे एक बार फिर बाबा के दर्शन हो जाएँ। वह महसूस करती थी, “दर्शन बगैर दिल मेरा, रहता दुखी दुखी, रोती है तेरी याद में, आँखे झुकी झुकी।”
धीरे-धीरे, मीरा ने नए शहर में भी श्याम बाबा के कुछ भक्तों को ढूंढ निकाला। वे हर हफ्ते एक साथ मिलकर भजन-कीर्तन करते थे और बाबा की महिमा का गुणगान करते थे। मीरा को इन भक्तों के साथ थोड़ा सुकून मिलता था, लेकिन फिर भी उसके हृदय की व्याकुलता कम नहीं होती थी।
एक दिन, मीरा को अपने घर से एक पत्र मिला। यह पत्र चित्तौड़गढ़ से उसके पुराने मित्र ने भेजा था। पत्र में लिखा था कि खाटू में श्याम बाबा का एक बहुत बड़ा मेला लगने वाला है और उसमें दूर-दूर से भक्त आ रहे हैं। पत्र पढ़कर मीरा का मन खुशी से झूम उठा। उसने तुरंत अपने पति से खाटू जाने की इच्छा व्यक्त की।
मीरा के पति उसकी व्याकुलता को समझ रहे थे। उन्होंने तुरंत खाटू जाने की तैयारी कर ली। मीरा की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे लग रहा था जैसे बरसों बाद उसे अपनी मंजिल मिलने वाली हो।
जब मीरा खाटू पहुँची, तो उसकी आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे। उसने श्याम बाबा के भव्य मंदिर को देखा और उसका हृदय कृतज्ञता से भर गया। वह दौड़कर बाबा के चरणों में गिर पड़ी और फूट-फूटकर रोने लगी।
मंदिर में मीरा ने कई दिन बिताए। उसने बाबा के दर्शन किए, उनके भजन गाए और उनके भक्तों से मिली। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह बरसों बाद अपने घर लौट आई हो। खाटू के भक्तिमय वातावरण में मीरा का मन शांत हो गया और उसकी सारी उदासी दूर हो गई।
खाटू में मीरा ने एक अद्भुत अनुभव किया। एक रात, जब वह मंदिर में बैठी बाबा के ध्यान में लीन थी, तो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे बाबा मुस्कुरा रहे हों और उसकी ओर देख रहे हों। उसे लगा, “तिरछी अदा पे दिल मेरा, कुर्बान हो गया, तेरी शरण में आके मैं, इंसान हो गया।” उस पल मीरा को यह एहसास हुआ कि बाबा का प्रेम कितना अनमोल है और उनकी शरण में आकर ही उसे सच्ची शांति और आनंद मिला है।
खाटू से लौटने के बाद मीरा का जीवन पूरी तरह से बदल गया। अब वह नए शहर में भी खुश रहने लगी थी। उसने अपने घर में ही श्याम बाबा का एक छोटा सा मंदिर बना लिया था और हर रोज वहाँ पूजा करती थी। उसे यह विश्वास हो गया था कि भले ही वह बाबा से दूर है, लेकिन बाबा हमेशा उसके हृदय में विराजमान हैं।
मीरा ने नए शहर में भी श्याम बाबा के भक्तों का एक बड़ा समुदाय बना लिया था। वे हर हफ्ते उसके घर पर इकट्ठा होते थे और मिलकर भजन-कीर्तन करते थे। मीरा का घर हमेशा भक्तिमय वातावरण से भरा रहता था।
मीरा ने अपना शेष जीवन श्याम बाबा की भक्ति और सेवा में बिताया। वह हमेशा बाबा के प्रेम में डूबी रहती थी और उनकी याद में हर पल सुखी रहती थी। वह जानती थी कि “हर वक्त तेरी याद में, ‘काशी’ रहे सुखी।”
मीरा की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे भक्त का हृदय हमेशा अपने आराध्य के प्रेम में व्याकुल रहता है। दूरी कभी भी भक्ति को कम नहीं कर सकती, बल्कि यह उसे और भी गहरा बना देती है। मीरा का अटूट विश्वास और प्रेम श्याम बाबा के प्रति हमेशा बना रहा और बाबा ने भी हमेशा उसकी पुकार सुनी।
उसकी आँखें भले ही बाबा की याद में झुकी रहती थीं, लेकिन उसके हृदय में हमेशा बाबा का प्रेम और उनकी कृपा बनी रही। मीरा ने यह जान लिया था कि श्याम बाबा हमेशा अपने भक्तों के साथ रहते हैं, चाहे वे उनसे कितनी भी दूर क्यों न हों।
“रोती है तेरी याद में, आँखे झुकी झुकी, आती है हिचकियों से, ये सांसे रुकी रुकी, रोती है तेरी याद में, आँखे झुकी झुकी।” यह पंक्ति मीरा के विरह की पीड़ा को व्यक्त करती है, लेकिन इसके साथ ही यह उसके अटूट प्रेम और विश्वास को भी दर्शाती है कि एक दिन उसकी यह व्याकुलता जरूर शांत होगी और उसे अपने प्यारे श्याम बाबा का सानिध्य प्राप्त होगा।
श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!