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खाटू वाले श्याम जी कमाल हो गया
क्यूँ घबराऊँ मैं मेरा तो श्याम से नाता है

क्यूँ घबराऊँ मैं मेरा तो श्याम से नाता है

राजस्थान के एक छोटे से गाँव, किशनगढ़ में, एक सीधा-सादा और कर्मठ व्यक्ति रहता था, जिसका नाम गोपाल था। गोपाल खेती करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। वह बचपन से ही श्याम बाबा का अनन्य भक्त था। हर सुबह उठकर वह बाबा की तस्वीर के सामने हाथ जोड़ता और दिन भर अपने काम में लगा रहता। उसका दृढ़ विश्वास था, “क्यूँ घबराऊँ मैं, मेरा तो श्याम से नाता है, मेरी ये जीवन गाड़ी, मेरी ये जीवन गाड़ी, श्याम चलाता है।”

गोपाल का जीवन आसान नहीं था। कभी सूखा पड़ता तो कभी फसल खराब हो जाती। कई बार उसे आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ता था। लेकिन गोपाल ने कभी हार नहीं मानी। उसका मानना था कि उसकी जीवन रूपी गाड़ी का सारथी स्वयं श्याम बाबा हैं और वे कभी भी उसे मझधार में नहीं छोड़ेंगे।

एक साल, गाँव में भयानक सूखा पड़ा। कुएँ सूख गए और खेत बंजर हो गए। गोपाल और गाँव के सभी किसान बहुत चिंतित थे। उनके सामने अपने परिवार को खिलाने की समस्या आ खड़ी हुई थी। गोपाल ने अपनी पत्नी, राधा से कहा, “जब जब मुझको, पड़ती है दरकार, श्याम हमेशा रहता है तैयार।” उसे पूरा भरोसा था कि बाबा कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेंगे।

गोपाल हर रोज श्याम बाबा के मंदिर जाता और उनसे प्रार्थना करता। वह जानता था कि “श्याम ने मुझपर, किया बहुत उपकार, श्याम ही मेरे जीवन का आधार।” उसे अपने जीवन में पहले भी कई बार बाबा की कृपा का अनुभव हुआ था। एक बार जब उसकी बेटी बीमार पड़ गई थी और गाँव के वैद्य ने भी हाथ खड़े कर दिए थे, तब गोपाल ने रात भर बाबा के मंदिर में बैठकर प्रार्थना की थी और सुबह उसकी बेटी स्वस्थ हो गई थी।

इस बार भी गोपाल का विश्वास अटूट था। वह जानता था कि “हरदम ये मुझपर अपना, हरदम ये मुझपर अपना, प्यार लुटाता है।”

एक दिन, जब गोपाल खेत में उदास बैठा था, तभी उसे एक अनजान व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति ने उससे पूछा कि वह इतना परेशान क्यों है। गोपाल ने उसे गाँव में पड़े सूखे और अपनी चिंता के बारे में बताया। उस व्यक्ति ने गोपाल को सलाह दी कि वह गाँव के पास वाली नदी से नहर खुदवाकर पानी लाने का प्रयास करे।

गोपाल को यह विचार अच्छा लगा। उसने गाँव के अन्य किसानों से बात की और सभी मिलकर नहर खोदने के काम में जुट गए। यह काम बहुत मुश्किल था और कई दिनों तक लगातार मेहनत करने के बाद भी कोई खास प्रगति नहीं हुई। किसान निराश होने लगे।

लेकिन गोपाल ने उनका हौसला बढ़ाया। उसने कहा, “दुःख के बादल, जब जब मंडराते, श्याम नाम लेते ही, छट जाते।” उसने सभी को मिलकर श्याम बाबा का नाम जपते हुए काम करने के लिए प्रेरित किया।

आश्चर्य की बात यह हुई कि जैसे-जैसे वे श्याम नाम लेते हुए काम करते गए, उनकी मेहनत रंग लाने लगी। कुछ ही दिनों में उन्होंने नदी से अपने खेतों तक एक छोटी सी नहर खोद ली। जब नहर में पानी आया, तो सभी किसान खुशी से झूम उठे। गोपाल का विश्वास और भी दृढ़ हो गया। उसने कहा, “बाल भी बांका वो ना कर पाते, कभी दुबारा नजर भी ना आते, संकट आने से पहले, संकट आने से पहले, श्याम आता है।”

उस साल फसल अच्छी हुई और गाँव के सभी किसानों की आर्थिक स्थिति सुधर गई। गोपाल और उसके परिवार ने श्याम बाबा का कोटि-कोटि धन्यवाद किया।

समय बीतता गया। गोपाल अब बूढ़ा हो चला था। उसके बेटे ने खेती का काम संभाल लिया था। गोपाल अब अपना ज्यादातर समय श्याम बाबा की भक्ति में बिताता था। वह हर रोज मंदिर जाता और भक्तों को बाबा की महिमा के बारे में बताता।

एक दिन, गोपाल के मन में खाटू जाने की इच्छा हुई। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह बाबा के दर्शन करने जाना चाहता है। राधा ने कहा कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है और उसे अकेले नहीं जाना चाहिए। लेकिन गोपाल का मन नहीं माना। उसे लग रहा था जैसे बाबा उसे बुला रहे हों।

उसने अपने बेटे से कहा कि वह उसे खाटू ले चले। बेटा भी अपने पिता की इच्छा टाल नहीं सका और वे दोनों खाटू के लिए रवाना हो गए।

खाटू पहुँचकर गोपाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने श्याम बाबा के भव्य दरबार को देखा और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने बाबा के चरणों में अपना सिर झुका दिया और कृतज्ञता से भर गया।

मंदिर में गोपाल ने कई दिन बिताए। वह हर पल बाबा के ध्यान में लीन रहता। उसे ऐसा महसूस होता था जैसे बाबा उससे बातें कर रहे हों और उसे आशीर्वाद दे रहे हों। उसने सोचा, “मेरे मन में आता, जो भी ख्याल, श्याम व्यवस्था करता है तत्काल।” उसे अपने जीवन के हर मोड़ पर बाबा की कृपा का अनुभव हुआ था।

एक दिन, मंदिर के पुजारी ने गोपाल को बताया कि बाबा ने उसके लिए एक संदेश भेजा है। पुजारी ने कहा कि बाबा चाहते हैं कि गोपाल अब अपने गाँव वापस लौट जाए और वहीं रहकर उनकी भक्ति करे। गोपाल थोड़ा निराश हुआ, लेकिन उसने बाबा की इच्छा का सम्मान किया।

जब गोपाल अपने गाँव वापस लौटा, तो उसने देखा कि उसके घर के पास एक नया मंदिर बन रहा है। गाँव के लोगों ने मिलकर यह मंदिर बनवाया था और वे चाहते थे कि गोपाल ही इस मंदिर की देखभाल करे। गोपाल यह देखकर बहुत खुश हुआ। उसे लगा जैसे श्याम बाबा ने खाटू न बुलाकर उसे अपने ही गाँव में अपनी सेवा करने का अवसर दिया है।

गोपाल ने अपना शेष जीवन उस मंदिर की सेवा में बिताया। वह हर रोज सुबह-शाम मंदिर में पूजा करता और भक्तों को श्याम बाबा की महिमा सुनाता। उसका अटूट विश्वास था, “हरपल मुझको ये ही रहा संभाल, श्याम कृपा से मैं हूँ मालामाल, जिसके लायक ही नहीं मैं, जिसके लायक ही नहीं मैं, वो मिल जाता है।”

गोपाल जानता था कि उसे जीवन में जो कुछ भी मिला है, वह सब श्याम बाबा की कृपा से ही मिला है। वह तो उस लायक भी नहीं था, लेकिन बाबा ने हमेशा उस पर अपनी कृपा बनाए रखी।

एक दिन, गोपाल बीमार पड़ गया। उसकी तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। गाँव के लोग उसे देखने आए और उसके लिए प्रार्थना करने लगे। गोपाल ने सभी से कहा कि उसे किसी बात की चिंता नहीं है क्योंकि “श्याम भरोसे मैं, निश्चिन्त हूँ, क्युकी मैं तो श्याम पे आश्रित हूँ।” उसने अपना पूरा जीवन बाबा के भरोसे ही जिया था और उसे विश्वास था कि अंतिम समय में भी बाबा ही उसका साथ देंगे।

गोपाल ने अपने बेटे और पत्नी से कहा कि वे कभी भी श्याम बाबा पर अपना विश्वास न खोएँ। उन्होंने कहा कि बाबा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ते।

कुछ दिनों बाद, गोपाल ने शांतिपूर्वक अपने प्राण त्याग दिए। पूरे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई। सभी ने गोपाल को एक सच्चे भक्त और एक नेक इंसान के रूप में याद किया।

गोपाल का जीवन श्याम बाबा के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण का प्रतीक था। उसने हर मुश्किल घड़ी में बाबा पर भरोसा रखा और बाबा ने हमेशा उसका साथ दिया। उसका मानना था कि उसकी जीवन रूपी गाड़ी का सारथी स्वयं श्याम बाबा हैं और वे उसे हमेशा सही राह दिखाते रहेंगे।

गोपाल की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें जीवन में चाहे कितनी भी परेशानियाँ आएं, हमें कभी भी घबराना नहीं चाहिए। अगर हमारा नाता श्याम बाबा से जुड़ा है और हम उन पर पूर्ण रूप से आश्रित हैं, तो वे हमेशा हमारी मदद करेंगे। हमें बस अपने कर्म करते रहना चाहिए और बाकी सब बाबा पर छोड़ देना चाहिए।

गोपाल अक्सर कहा करता था, “श्याम चरण में पूर्ण समर्पित हूँ, इसीलिए मैं सदा सुरक्षित हूँ, जी भर के ‘बिन्नू’ को ये, जी भर के ‘बिन्नू’ को ये, लाढ़ लढ़ाता है।” उसका मानना था कि जो भक्त पूरी तरह से श्याम बाबा के चरणों में समर्पित हो जाता है, वह हमेशा सुरक्षित रहता है और बाबा उसे अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं।

गोपाल की मृत्यु के बाद भी गाँव के लोग उसके द्वारा बनवाए गए मंदिर में श्याम बाबा की पूजा करते रहे और उसकी भक्ति और विश्वास की कहानियाँ सुनाते रहे। गोपाल की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है और उन्हें यह विश्वास दिलाती है कि “क्यूँ घबराऊँ मैं, मेरा तो श्याम से नाता है, मेरी ये जीवन गाड़ी, मेरी ये जीवन गाड़ी, श्याम चलाता है।”

श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!

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©️ श्याम मित्र द्वारा श्री श्याम के चरणों में समर्पित ©️