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अनमोल विनती: उज्जैन से श्याम की ओर
मेरी हार नहीं होगी

मेरी हार नहीं होगी

राजस्थान के हृदय, कोटा शहर में, एक साधारण सा परिवार रहता था। इस परिवार में मुरलीधर, उनकी पत्नी सुमित्रा और उनका इकलौता बेटा, कृष्णा, थे। मुरलीधर एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते थे, जिससे उनका परिवार मुश्किल से गुजर-बसर कर पाता था। कृष्णा, बचपन से ही बड़ा ही शांत और समझदार लड़का था। उसका मन पढ़ाई-लिखाई में खूब लगता था और वह हमेशा कक्षा में अव्वल आता था।

कृष्णा के दिल में एक गहरी आस्था थी – श्याम बाबा के प्रति। उसने अपनी माँ से बाबा की अनगिनत कहानियाँ सुनी थीं और उसका दृढ़ विश्वास था कि बाबा हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। वह अक्सर कहता था, “ये प्रार्थना दिल की, बेकार नही होगी, पूरा है भरोसा, मेरी हार नही होगी।”

कृष्णा का सपना था कि वह बड़ा होकर एक इंजीनियर बने और अपने परिवार को गरीबी से निकाले। उसने दिन-रात मेहनत की और अपनी बोर्ड की परीक्षाओं में शानदार अंक प्राप्त किए। अब उसे शहर के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया था। यह पूरे परिवार के लिए एक बड़ी खुशी की बात थी।

लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन टिक नहीं पाई। कॉलेज की फीस बहुत ज्यादा थी, और मुरलीधर के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह कृष्णा की पढ़ाई का खर्च उठा सकें। उन्होंने अपनी दुकान गिरवी रखने और कुछ रिश्तेदारों से कर्ज लेने की भी कोशिश की, लेकिन कहीं से भी पर्याप्त मदद नहीं मिल पाई।

कृष्णा का दिल टूट गया। उसे लग रहा था जैसे उसका सपना अधूरा ही रह जाएगा। वह उदास होकर एक दिन श्याम बाबा के मंदिर में गया और घंटों तक बाबा के सामने बैठकर रोता रहा। उसने बाबा से प्रार्थना की कि वह उसे कोई रास्ता दिखाएँ। वह जानता था कि “साँवरे जब तू मेरे साथ है, साँवरे सिर पे तेरा हाथ है।” लेकिन इस मुश्किल घड़ी में उसे लग रहा था जैसे सब कुछ उसके खिलाफ हो रहा है।

घर आकर कृष्णा ने अपने माता-पिता को बताया कि शायद उसे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी। मुरलीधर और सुमित्रा भी यह सुनकर बहुत दुखी हुए। उन्हें अपने बेटे के सपने को टूटते हुए देखना गवारा नहीं था।

उसी रात, सुमित्रा ने कृष्णा को श्याम बाबा की एक और कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे बाबा ने एक गरीब भक्त की मदद की थी जब उसके पास बिल्कुल भी उम्मीद नहीं बची थी। कहानी सुनकर कृष्णा के मन में फिर से एक उम्मीद की किरण जगी। उसे लगा, “मैं हार जाऊ ये, कभी हो नही सकता, बेटा अगर दुःख में, पिता सो नही सकता।” उसका विश्वास था कि श्याम बाबा उसके पिता के समान हैं और वह कभी अपने बेटे को दुख में नहीं देख सकते।

अगले दिन, कृष्णा फिर से श्याम बाबा के मंदिर गया। उसने बाबा के चरणों में अपना माथा टेका और पूरी श्रद्धा के साथ प्रार्थना की। उसने कहा, “बेटे की हार तुम्हे, स्वीकार नही होगी, पूरा है भरोसा, मेरी हार नही होगी।”

जब कृष्णा मंदिर से बाहर निकला, तो उसे एक अनजान व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति ने उससे पूछा कि वह इतना उदास क्यों है। कृष्णा ने उसे अपनी सारी परेशानी बता दी। उस व्यक्ति का नाम रमेश था और वह शहर का एक बड़ा व्यापारी था। वह भी श्याम बाबा का परम भक्त था।

कृष्णा की कहानी सुनकर रमेश का दिल भर आया। उसने कृष्णा से कहा कि वह उसकी पढ़ाई का सारा खर्च उठाएगा। कृष्णा को अपनी कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसे लगा जैसे स्वयं श्याम बाबा ने रमेश के रूप में उसकी मदद के लिए किसी फरिश्ते को भेजा हो।

कृष्णा ने रमेश का धन्यवाद किया और वादा किया कि वह अपनी पढ़ाई पूरी लगन से करेगा और कभी उनका एहसान नहीं भूलेगा। रमेश ने कृष्णा को आशीर्वाद दिया और कहा कि वह बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।

कृष्णा कॉलेज में दाखिला लेने में सफल रहा और उसने खूब मन लगाकर पढ़ाई की। रमेश ने उसे हर तरह की मदद की और कभी उसे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। कृष्णा जानता था कि यह सब श्याम बाबा की कृपा से ही संभव हो पाया है। वह हमेशा कहता था, “साँवरे जब तू मेरे साथ है, साँवरे सिर पे तेरा हाथ है।”

कॉलेज में कृष्णा ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से सभी को प्रभावित किया। वह हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता था और शिक्षकों का प्रिय छात्र था। उसे कई छात्रवृत्तियाँ भी मिलीं जिससे रमेश पर आर्थिक बोझ और कम हो गया।

एक बार, कॉलेज में एक बड़ी तकनीकी प्रतियोगिता आयोजित हुई। कृष्णा ने भी उसमें भाग लिया और अपनी अद्भुत प्रतिभा से सभी को चकित कर दिया। उसने उस प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया और पूरे कॉलेज में उसका नाम रोशन हो गया।

जब कृष्णा ने यह खबर रमेश को दी, तो वह बहुत खुश हुए। उन्होंने कृष्णा को गले लगाया और कहा, “तूफ़ान हो पीछे, या काल हो आगे, कह दूंगा मै उनसे, मेरा श्याम है सागे।” रमेश का विश्वास था कि जिसके साथ श्याम बाबा जैसा शक्तिशाली और करुणामयी साथी हो, उसे किसी भी मुश्किल से डरने की कोई जरूरत नहीं है।

कृष्णा की सफलता की खबर उसके गाँव तक भी पहुँची। मुरलीधर और सुमित्रा का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उन्हें विश्वास हो गया था कि उनकी प्रार्थना कभी बेकार नहीं गई और श्याम बाबा ने उनके बेटे का साथ दिया।

कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, कृष्णा को एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। उसने अपनी मेहनत और लगन से बहुत जल्द तरक्की की और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से बदल दिया।

अब मुरलीधर को अपनी छोटी सी दुकान चलाने की जरूरत नहीं थी। कृष्णा ने अपने माता-पिता के लिए एक आरामदायक घर बनवाया और उन्हें हर तरह की सुख-सुविधाएँ दीं। कृष्णा कभी भी अपने अतीत को नहीं भूला और हमेशा श्याम बाबा का शुक्रगुजार रहा। वह जानता था कि “ऐसे में भी जग की, दरकार नही होगी, पूरा है भरोसा, मेरी हार नही होगी।”

कृष्णा हर साल खाटू जाता और श्याम बाबा के मंदिर में अपनी श्रद्धा अर्पित करता। वह रमेश से भी मिलता और उनका आशीर्वाद लेता। रमेश हमेशा उसे यही सीख देते थे कि जीवन में कभी भी अपना विश्वास नहीं खोना चाहिए और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए।

एक बार, कृष्णा के शहर में एक बहुत बड़ी प्राकृतिक आपदा आई। कई लोगों के घर तबाह हो गए और वे बेघर हो गए। कृष्णा ने तुरंत आगे बढ़कर पीड़ितों की मदद करने का फैसला किया। उसने अपनी कंपनी और अपने दोस्तों की मदद से राहत सामग्री जुटाई और जरूरतमंदों तक पहुँचाई।

उसने दिन-रात पीड़ितों की सेवा की और उन्हें हर संभव सहायता प्रदान की। उसका मानना था कि श्याम बाबा ने उसे इतना कुछ दिया है तो उसका भी फर्ज बनता है कि वह दूसरों की मदद करे। वह कहता था, “घनघोर चले आंधी, सूने नज़ारे हो, गर्दिश में भी चाहे, मेरे सितारे हो, नैया कभी मेरी, मझधार नही होगी, पूरा है भरोसा, मेरी हार नही होगी।” उसका अटूट विश्वास था कि श्याम बाबा कभी भी अपने भक्तों को मुश्किलों के भंवर में अकेला नहीं छोड़ते।

कृष्णा की सेवा भावना और दूसरों के प्रति उसकी करुणा देखकर सभी लोग उसकी प्रशंसा करते थे। वह न केवल एक सफल इंजीनियर था बल्कि एक नेक इंसान भी था।

समय बीतता गया। कृष्णा ने शादी कर ली और उसका भी एक खुशहाल परिवार हो गया। लेकिन उसने कभी भी श्याम बाबा की भक्ति और सेवा को नहीं छोड़ा। वह हमेशा अपने बच्चों को भी बाबा की महिमा और उनकी कृपा के बारे में बताता था।

एक दिन, कृष्णा ने अपने बच्चों को श्याम बाबा के मंदिर की एक कहानी सुनाई। उसने बताया कि कैसे एक गरीब भक्त ने अपनी अटूट श्रद्धा और समर्पण से भगवान को भी हारने पर मजबूर कर दिया था। उसने कहा, “श्रद्धा समर्पण हो, दिल में अगर प्यारे, मोहित भगत के लिए, भगवान खुद हारे।”

कृष्णा ने अपने बच्चों को समझाया कि अगर हमारे दिल में सच्ची श्रद्धा और समर्पण हो तो भगवान भी हमारी प्रार्थना सुनते हैं और हमारी मदद करते हैं। हमें कभी भी अपनी आस्था को कमजोर नहीं होने देना चाहिए।

कृष्णा का जीवन श्याम बाबा के प्रति अटूट विश्वास और श्रद्धा का एक जीता जागता उदाहरण था। उसने अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन कभी भी अपना भरोसा नहीं खोया। और श्याम बाबा ने हमेशा उसका साथ दिया।

आज भी कृष्णा अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी जीवन बिता रहा है और हमेशा श्याम बाबा का धन्यवाद करता है। उसका मानना है कि “इज्जत जमाने में, शर्मसार नही होगी, पूरा है भरोसा, मेरी हार नही होगी।” क्योंकि जिसके साथ श्याम बाबा का आशीर्वाद और उनका हाथ हो, उसे कभी भी अपमानित नहीं होना पड़ता।

उसकी कहानी हर उस भक्त के लिए प्रेरणा है जो मुश्किलों से घिरा हुआ है और हार मानने को तैयार है। यह कहानी सिखाती है कि अगर हमारे दिल में सच्ची प्रार्थना और अटूट विश्वास हो तो श्याम बाबा हमेशा हमारी मदद करते हैं और हमें कभी हारने नहीं देते।

“ये प्रार्थना दिल की, बेकार नही होगी, पूरा है भरोसा, मेरी हार नही होगी, साँवरे जब तू मेरे साथ है, साँवरे सिर पे तेरा हाथ है।” यह पंक्ति कृष्णा के जीवन का सार है और हर उस भक्त के दिल की आवाज है जिसने श्याम बाबा की कृपा का अनुभव किया है।

श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!

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©️ श्याम मित्र द्वारा श्री श्याम के चरणों में समर्पित ©️