
सांवरा जब मेरे साथ है
जयपुर शहर में रमेश नाम का एक युवक रहता था। वह एक साधारण परिवार से था और एक छोटी सी दुकान चलाकर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता था। रमेश बचपन से ही श्याम बाबा का परम भक्त था। हर सुबह उठकर वह बाबा की पूजा करता और हर एकादशी को खाटू जरूर जाता। उसका अटूट विश्वास था कि “सांवरा जब मेरे साथ है, हमको डरने की क्या बात है।”
रमेश का स्वभाव बहुत ही सरल और मिलनसार था। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था। उसकी दुकान पर आने वाले हर ग्राहक से वह बड़े प्यार से बात करता और कभी किसी को निराश नहीं करता था। यही कारण था कि उसकी दुकान धीरे-धीरे अच्छी चलने लगी थी।
एक दिन, रमेश के जीवन में एक बड़ी मुश्किल आ गई। उसके पड़ोसी मोहन ने, जो हमेशा से उससे जलता था, उस पर चोरी का झूठा आरोप लगा दिया। पुलिस आई और रमेश को गिरफ्तार करके ले गई। रमेश और उसका परिवार इस घटना से बुरी तरह से टूट गया। रमेश ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके साथ ऐसा कुछ हो सकता है।
जेल में रमेश अकेला और बेबस महसूस कर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह खुद को निर्दोष कैसे साबित करे। लेकिन एक पल के लिए भी उसका विश्वास श्याम बाबा से नहीं डिगा। वह हर पल बाबा को याद करता और उनसे प्रार्थना करता कि वे उसे इस मुश्किल से निकालें। वह मन ही मन कहता, “इसके रहते कोई कुछ कहे, बोलो किसकी यह औकात है।”
रमेश की पत्नी, सुनीता, एक बहुत ही समझदार और साहसी महिला थी। उसने हार नहीं मानी और अपने पति को बेगुनाह साबित करने के लिए हर संभव प्रयास करने का निश्चय किया। उसने एक वकील किया और सबूत जुटाने में दिन-रात एक कर दिया।
गाँव के कुछ भले लोग भी रमेश के समर्थन में आगे आए। वे जानते थे कि रमेश कभी चोरी नहीं कर सकता। उन्होंने पुलिस और अदालत में रमेश की ईमानदारी की गवाही दी।
इन सब प्रयासों के बावजूद, मामला कमजोर पड़ रहा था और रमेश की रिहाई मुश्किल लग रही थी। सुनीता हर रोज खाटू जाती और श्याम बाबा के मंदिर में घंटों बैठकर रोती और प्रार्थना करती। उसे पूरा विश्वास था कि बाबा ही कोई चमत्कार करेंगे और उसके पति को बचाएंगे।
एक रात, सुनीता को सपने में श्याम बाबा दिखाई दिए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “सुनीता, तुम हिम्मत मत हारो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। सच्चाई की हमेशा जीत होती है।”
सपने से जागने के बाद सुनीता के मन में एक नई उम्मीद जाग उठी। उसे लगा जैसे बाबा ने उसे आशीर्वाद दिया हो।
अगले दिन अदालत में सुनवाई थी। वकील ने रमेश के समर्थन में कई नए सबूत पेश किए। सबसे महत्वपूर्ण सबूत एक सीसीटीवी फुटेज था जिसमें मोहन को रमेश की दुकान में चोरी करते हुए दिखाया गया था और बाद में उस चोरी का इल्जाम रमेश पर लगाते हुए दिखाया गया था। यह फुटेज किसी अनजान व्यक्ति ने पुलिस को भेजा था। किसी को नहीं पता था कि यह फुटेज कहाँ से आया।
इस फुटेज को देखकर अदालत भी हैरान रह गई। मोहन का झूठ सबके सामने आ गया। अदालत ने तुरंत रमेश को निर्दोष करार देते हुए रिहा करने का आदेश दिया और मोहन को गिरफ्तार कर लिया गया।
जब रमेश जेल से बाहर आया, तो सुनीता ने उसे गले लगा लिया और दोनों खूब रोए। रमेश ने आसमान की ओर देखा और श्याम बाबा को धन्यवाद दिया। उसे पूरा विश्वास हो गया था कि “छाये काली घटाए तो क्या, इसकी छतरी के नीचे हूँ मैं।”
घर वापस आने के बाद, रमेश और सुनीता खाटू गए और श्याम बाबा के चरणों में अपना सिर झुकाकर कृतज्ञता व्यक्त की। रमेश ने गाँव के लोगों को आपबीती सुनाई और बताया कि कैसे श्याम बाबा ने उसकी लाज बचाई। उसने कहा, “आगे आगे यह चलता मेरे, मेरे मालिक के पीछे हम मैं। इसने पकड़ा मेरा हाथ है, मुझको डरने की क्या बात है।”
इस घटना के बाद रमेश का श्याम बाबा पर विश्वास और भी गहरा हो गया। उसने अपनी दुकान का नाम “श्याम कृपा” रख दिया और वह पहले से भी अधिक ईमानदारी और लगन से काम करने लगा। उसकी दुकान फिर से चल पड़ी और उसका जीवन खुशियों से भर गया।
समय बीतता गया। रमेश अब एक सफल व्यापारी बन गया था, लेकिन उसने कभी भी अपनी जड़ों को नहीं भुला। वह आज भी हर एकादशी को खाटू जाता और गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करता। उसका मानना था कि यह सब श्याम बाबा की कृपा से ही संभव हुआ है।
एक बार, रमेश के गाँव में एक बहुत बड़ी बीमारी फैल गई। कई लोग बीमार पड़ने लगे और कुछ की तो जान भी चली गई। गाँव में डर का माहौल था। रमेश भी बहुत चिंतित था। उसने श्याम बाबा के मंदिर में जाकर लोगों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की।
उस रात, रमेश को सपने में श्याम बाबा दिखाई दिए। उन्होंने कहा, “रमेश, तुम निराश मत हो। मैं अपने भक्तों की रक्षा करूंगा। तुम गाँव में साफ-सफाई का ध्यान रखो और लोगों को जागरूक करो।”
सपने से जागने के बाद रमेश ने तुरंत गाँव के सरपंच और अन्य लोगों से बात की। उन्होंने मिलकर गाँव में सफाई अभियान चलाया और लोगों को बीमारी से बचने के उपाय बताए। धीरे-धीरे, श्याम बाबा की कृपा से बीमारी कम होने लगी और गाँव में फिर से शांति और खुशहाली लौट आई।
रमेश ने गाँव के लोगों से कहा, “इसकी महिमा का वर्णन करू, मेरी वाणी में वो दम नहीं। जब से इसका सहारा मिला फिर सताए कोई गम नहीं। बाबा करता करामत है, हमको डरने की क्या बात है।”
रमेश ने अपना पूरा जीवन श्याम बाबा की भक्ति और सेवा में समर्पित कर दिया। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था और कभी किसी को निराश नहीं करता था। उसका मानना था कि श्याम बाबा हमेशा उसके साथ हैं और उसे किसी भी चीज से डरने की कोई जरूरत नहीं है।
एक दिन, रमेश के एक मित्र ने उससे पूछा कि वह हमेशा इतना शांत और खुश कैसे रहता है, जबकि उसके जीवन में भी कई मुश्किलें आई हैं। रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्यों मैं भटकू यहाँ से वहां, इसके चरणों में है बैठना। झूठे स्वार्थ के रिश्ते सभी, कहना से है रिश्ता बना। ये करता मुलाकात है, हमको डरने की क्या बात है।”
रमेश का मानना था कि सच्चे रिश्ते तो केवल श्याम बाबा से ही होते हैं। सांसारिक रिश्ते तो स्वार्थ पर आधारित होते हैं और वे कभी भी स्थायी सुख नहीं दे सकते। असली सुख तो बाबा के चरणों में बैठने और उनकी भक्ति करने में ही मिलता है।
रमेश हर साल अपने गाँव में एक विशाल भंडारे का आयोजन करवाता था जिसमें हजारों गरीब और जरूरतमंद लोग भोजन करते थे। वह इसे श्याम बाबा की सेवा मानता था।
एक बार, भंडारे के दौरान अचानक बारिश आ गई। लोग परेशान होने लगे कि अब क्या होगा। रमेश ने आसमान की ओर देखा और श्याम बाबा से प्रार्थना की। देखते ही देखते बारिश रुक गई और मौसम साफ हो गया। सभी लोग यह देखकर हैरान रह गए और श्याम बाबा की जय-जयकार करने लगे।
रमेश ने कहा, “जहां आनद की लगती झड़ी, ऐसी महफ़िल सजता है ये। ‘बिन्नू’ क्यों ना दीवाना बने, ऐसे जलवे दिखता है ये। दिल चुराने में विख्यात है, हमको डरने की क्या बात है।”
रमेश का जीवन श्याम बाबा की भक्ति और कृपा का जीता जागता उदाहरण था। उसने हर पल यह महसूस किया कि श्याम बाबा हमेशा उसके साथ हैं और उसे किसी भी चीज से डरने की कोई जरूरत नहीं है। उसका अटूट विश्वास और समर्पण ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति थी।
उसने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक श्याम बाबा की भक्ति की और हमेशा यही कहा, “सांवरा जब मेरे साथ है, हमको डरने की क्या बात है। इसके रहते कोई कुछ कहे, बोलो किसकी यह औकात है।”
रमेश की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें कभी भी अपना विश्वास नहीं खोना चाहिए। अगर हमारा साथ श्याम बाबा जैसा कृपालु और दयालु सांवरा है, तो हमें किसी भी चीज से डरने की कोई जरूरत नहीं है। वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। बस हमें सच्चे मन से उन्हें पुकारने और उन पर अटूट विश्वास रखने की जरूरत है।
श्याम बाबा की महिमा अनंत है और उनकी कृपा अपरंपार है। जो भी उनकी शरण में आता है, वह कभी निराश नहीं लौटता। रमेश का जीवन इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए और जरूरतमंदों के साथ सहानुभूति रखनी चाहिए। यही सच्ची भक्ति है और यही श्याम बाबा को प्रसन्न करने का मार्ग है।
अंत में, यही कहना चाहूंगा कि हमें हमेशा श्याम बाबा के चरणों में समर्पित रहना चाहिए और उनके आशीर्वाद पर विश्वास रखना चाहिए। वे हमेशा हमारे साथ हैं और हमें हर मुश्किल से बचाने के लिए तैयार हैं।
“सांवरा जब मेरे साथ है, हमको डरने की क्या बात है।” यह केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि एक अटूट विश्वास और अटूट बंधन की अभिव्यक्ति है जो एक भक्त और उसके प्यारे श्याम बाबा के बीच होता है।
श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!