
हमें तो जो भी दिया श्याम बाबा ने दिया
श्याम बाबा की कृपा
राजस्थान के एक छोटे से गाँव, कल्याणपुर में रामलाल और उनकी पत्नी सीता देवी रहते थे। वे दोनों बड़े ही धार्मिक और सरल स्वभाव के थे। उनके जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी आस्था को डिगने नहीं दिया। रामलाल खेती करते थे और सीता देवी घर का काम संभालती थीं। उनकी एक ही संतान थी, प्यारी सी बेटी राधिका।
राधिका जब पाँच वर्ष की थी, तो अचानक उसकी तबीयत खराब हो गई। गाँव के वैद्य ने अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। रामलाल और सीता देवी बुरी तरह से घबरा गए। उन्होंने गाँव के सभी देवी-देवताओं के मंदिर में जाकर मन्नतें मांगी, लेकिन राधिका की सेहत जस की तस बनी रही।
एक रात, सीता देवी रोते-रोते सो गईं। सपने में उन्हें एक दिव्य पुरुष दिखाई दिए, जिनके चेहरे पर अपार तेज और करुणा झलक रही थी। उन्होंने सीता देवी को शांत करते हुए कहा, “तुम चिंता मत करो, तुम्हारी बेटी ठीक हो जाएगी। उसे खाटू के श्याम बाबा के दरबार में ले जाओ। वे सबकी सुनते हैं और सबकी मनोकामना पूरी करते हैं।”
सपने से जागने के बाद सीता देवी ने तुरंत रामलाल को अपना सपना सुनाया। रामलाल भी श्याम बाबा के बारे में थोड़ा बहुत जानते थे। उन्होंने सुना था कि वे हारे हुए लोगों के साथी हैं और उनकी शरण में आने वाला कभी निराश नहीं होता। बिना देर किए, रामलाल ने अपनी पत्नी से सलाह करके खाटू जाने का निश्चय किया।
अगले ही दिन, रामलाल ने एक बैलगाड़ी का इंतजाम किया और अपनी बीमार बेटी और पत्नी के साथ खाटू की ओर रवाना हो गए। रास्ते में कई दिन लगे, और राधिका की तबीयत और भी खराब होती जा रही थी। रामलाल और सीता देवी का दिल डर से भर रहा था, लेकिन उन्हें श्याम बाबा पर पूरा भरोसा था।
जैसे-जैसे वे खाटू के करीब पहुँच रहे थे, सीता देवी के मन में सपने वाले दिव्य पुरुष की छवि और भी स्पष्ट होती जा रही थी। उन्हें लग रहा था जैसे कोई अदृश्य शक्ति उनकी मदद कर रही है।
आखिरकार, वे खाटू नगरी पहुँच गए। मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ थी। रामलाल ने अपनी कमजोर बेटी को गोद में उठाया और धीरे-धीरे मंदिर की ओर बढ़ने लगे। सीता देवी उनके पीछे-पीछे चल रही थीं, उनकी आँखों में आँसू और दिल में उम्मीद का सागर उमड़ रहा था।
मंदिर के गर्भगृह में पहुँचकर, रामलाल ने राधिका को श्याम बाबा के चरणों में लिटा दिया। दोनों पति-पत्नी हाथ जोड़कर रोने लगे और बाबा से अपनी बेटी के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने लगे। सीता देवी को सपने वाले दिव्य पुरुष का चेहरा श्याम बाबा की मूर्ति में दिखाई दिया, जिससे उनका विश्वास और भी दृढ़ हो गया।
उन्होंने मन ही मन कहा, “हमें तो जो भी दिया, श्याम बाबा ने दिया, हमेशा आपके हाथों से, सर झुकाकर लिया।”
वे घंटों तक बाबा के चरणों में बैठे रहे, अपनी पीड़ा और प्रार्थना को आँसुओं के रूप में अर्पित करते रहे। धीरे-धीरे, राधिका के शरीर में कुछ हलचल महसूस हुई। उसने अपनी कमजोर आँखें खोलीं और अपनी माँ की ओर देखा। सीता देवी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
अगले कुछ दिनों तक वे खाटू में ही रहे। राधिका की तबीयत धीरे-धीरे सुधरने लगी। श्याम बाबा के आशीर्वाद से वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गई। रामलाल और सीता देवी का हृदय कृतज्ञता से भर गया। उन्होंने बाबा के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।
जब वे वापस अपने गाँव लौटे, तो उनका जीवन पूरी तरह से बदल चुका था। उनका श्याम बाबा पर अटूट विश्वास हो गया था। वे हर साल खाटू जाते और बाबा के दर्शन करते। रामलाल अक्सर गाँव के लोगों से कहते, “हमें तो जो भी दिया, श्याम बाबा ने दिया।”
समय बीतता गया। राधिका बड़ी हो गई और उसकी शादी एक अच्छे परिवार में हो गई। रामलाल और सीता देवी अब बूढ़े हो चले थे, लेकिन उनकी आस्था पहले से भी अधिक मजबूत हो गई थी। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी श्याम बाबा की भक्ति में समर्पित कर दी।
एक दिन, रामलाल बीमार पड़ गए। उनकी हालत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। सीता देवी और राधिका उनके पास बैठी उनकी सेवा कर रही थीं। रामलाल ने अपनी पत्नी और बेटी की ओर देखा और कमजोर आवाज में कहा, “मेरी ये जिंदगी, सरकार की अमानत है। बदल जो जाऊं, प्रभु से तो मुझपे लालत है।”
उन्होंने हमेशा श्याम बाबा को अपना सब कुछ माना था और उन्हें विश्वास था कि उनकी जिंदगी बाबा की ही देन है। उन्हें इस बात का डर था कि अगर उन्होंने कभी भी बाबा के प्रति अपनी निष्ठा को कम किया, तो यह बाबा के प्रति विश्वासघात होगा।
कुछ दिनों बाद, रामलाल ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। सीता देवी और राधिका का दुख अपार था, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि रामलाल ने अपना जीवन पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ जिया।
सीता देवी अब अकेली रह गई थीं, लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। वे हर सुबह उठकर श्याम बाबा की पूजा करतीं और सारा दिन उनके भजनों में लीन रहतीं। उनका मानना था कि श्याम बाबा हमेशा उनके साथ हैं और उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे।
एक बार गाँव में सूखा पड़ गया। फसलें बर्बाद हो गईं और लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा। सीता देवी भी बहुत परेशान थीं, लेकिन उन्होंने अपना विश्वास नहीं खोया। वे हर रोज मंदिर जातीं और श्याम बाबा से प्रार्थना करतीं।
एक रात, सीता देवी को फिर से सपना आया। इस बार श्याम बाबा स्वयं उनके सामने प्रकट हुए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “सीता, तुम चिंता मत करो। मैं अपने भक्तों को कभी भूखा नहीं रहने देता।”
अगले ही दिन, आसमान में काले बादल छा गए और जोरदार बारिश होने लगी। पूरा गाँव खुशी से झूम उठा। सीता देवी का विश्वास और भी बढ़ गया। उन्होंने जान लिया कि दयालु श्याम ने बिन बोले उनका काम कर दिया।
उन्होंने गाँव के लोगों से कहा, “जहाँ में बाबा, तुम्हारा कोई जवाब नहीं, दयालु ऐसा, दया का कोई हिसाब नहीं। दयालु श्याम ने, बिन बोले हमारा काम किया, हमें तो जो भी दिया, श्याम बाबा ने दिया।”
सीता देवी ने अपना शेष जीवन भी श्याम बाबा की भक्ति में बिताया। वे हर आने-जाने वाले भक्त की सेवा करतीं और उन्हें श्याम बाबा की महिमा के बारे में बतातीं। उनका छोटा सा घर हमेशा भक्तों से भरा रहता था।
एक दिन, राधिका अपनी माँ से मिलने आई। उसने देखा कि माँ बहुत कमजोर हो गई हैं। उसने सीता देवी से अपने साथ शहर चलने का आग्रह किया, लेकिन सीता देवी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, “बेटी, मेरा अंतिम समय करीब आ गया है। मैं चाहती हूँ कि मेरी अंतिम साँसें श्याम बाबा के चरणों में ही निकलें।”
राधिका अपनी माँ की इच्छा को टाल नहीं सकी। वह समझती थी कि श्याम बाबा के प्रति उनकी भक्ति कितनी गहरी है।
कुछ दिनों बाद, सीता देवी ने अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु शांतिपूर्ण थी, जैसे कोई भक्त अपने प्रिय देवता के चरणों में सो गया हो।
राधिका ने अपनी माँ की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनका अंतिम संस्कार खाटू में ही करवाया। वह जानती थी कि उनकी माँ हमेशा श्याम बाबा के हृदय में रहेंगी।
राधिका अक्सर खाटू आती रहती और अपनी माँ की याद में गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करती। उसने अपनी माँ से यही सीखा था कि श्याम बाबा के भक्त हमेशा दूसरों की मदद करते हैं।
एक बार, राधिका बहुत बड़ी मुसीबत में फँस गई। उसके व्यापार में भारी नुकसान हो गया और उस पर कर्ज का बोझ बढ़ गया। वह पूरी तरह से टूट चुकी थी और उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।
वह खाटू गई और श्याम बाबा के मंदिर में बैठकर खूब रोई। उसे अपनी माँ के शब्द याद आ रहे थे, “निभाया अब तक, आगे भी तुम निभा देना, तेरी तोहीन है, किसी ओर से भीक्षा लेना।”
राधिका ने मन ही मन निश्चय किया कि वह कभी भी किसी और के आगे हाथ नहीं फैलाएगी। उसे श्याम बाबा पर पूरा भरोसा था कि वे उसकी मदद जरूर करेंगे।
उस रात, राधिका को सपने में उसकी माँ दिखाई दीं। उन्होंने कहा, “बेटी, तू चिंता मत कर। श्याम बाबा हमेशा अपने भक्तों की लाज रखते हैं। तू बस उन पर विश्वास रख।”
अगले ही दिन, राधिका को एक अनजान व्यक्ति का फोन आया। उसने बताया कि वह उसके पिता का पुराना मित्र है और वह उसके व्यापार में मदद करना चाहता है। राधिका को यह सब किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा था।
उस व्यक्ति की मदद से राधिका का व्यापार फिर से चल पड़ा और वह धीरे-धीरे कर्ज मुक्त हो गई। उसे पूरा विश्वास हो गया कि यह सब श्याम बाबा की कृपा से ही हुआ है।
वह अक्सर मंदिर जाती और बाबा को धन्यवाद देती। उसने अपनी माँ के वचनों को हमेशा याद रखा, “हमेशा द्वार से, ‘बनवारी’ झोली भर के गया, हमें तो जो भी दिया, श्याम बाबा ने दिया।”
बनवारी गाँव का एक गरीब आदमी था जो हर साल खाटू आता था। वह हमेशा खाली हाथ आता था, लेकिन श्याम बाबा के दरबार से कभी निराश नहीं लौटा। बाबा ने हमेशा किसी न किसी रूप में उसकी मदद की थी।
राधिका ने भी बनवारी की तरह ही श्याम बाबा पर अटूट विश्वास रखा और बाबा ने हमेशा उसकी झोली भर दी।
इस कहानी से यही सीख मिलती है कि श्याम बाबा अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। जो भी सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता। हमें हमेशा उन पर विश्वास रखना चाहिए और उनके दिए हुए हर चीज को सिर झुकाकर स्वीकार करना चाहिए।
श्याम बाबा की महिमा अपरंपार है और उनकी कृपा हर पल हमारे साथ रहती है। बस हमें उन्हें सच्चे मन से पुकारने और उन पर अटूट विश्वास रखने की जरूरत है।
“हमें तो जो भी दिया, श्याम बाबा ने दिया, हमेशा आपके हाथों से, सर झुकाकर लिया।” यह पंक्ति हर उस भक्त के दिल की आवाज है जिसने श्याम बाबा की कृपा का अनुभव किया है। यह विश्वास और समर्पण की अटूट डोर है जो हमें हमेशा श्याम बाबा से जोड़े रखती है।
श्याम बाबा की लीला अद्भुत है। वे कब, कैसे और किस रूप में अपने भक्तों की मदद करते हैं, यह कोई नहीं जान सकता। बस उनका आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ रहता है।
यह कहानी रामलाल, सीता देवी और राधिका के जीवन के माध्यम से श्याम बाबा के प्रति अटूट आस्था और विश्वास की शक्ति को दर्शाती है। यह बताती है कि कैसे एक साधारण परिवार ने अपनी भक्ति और समर्पण के बल पर जीवन की हर मुश्किल का सामना किया और श्याम बाबा की कृपा को प्राप्त किया।
उनकी कहानी आज भी लाखों भक्तों को प्रेरित करती है और उन्हें यह विश्वास दिलाती है कि श्याम बाबा हमेशा उनके साथ हैं।
हमें भी अपने जीवन में श्याम बाबा पर अटूट विश्वास रखना चाहिए और उनके चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर देना चाहिए। वे निश्चित रूप से हमारी हर मनोकामना पूरी करेंगे और हमें कभी निराश नहीं करेंगे।
“हमें तो जो भी दिया, श्याम बाबा ने दिया।” यह केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है जो हमें सिखाता है कि हमें हर परिस्थिति में ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए और उनके निर्णय को स्वीकार करना चाहिए।
श्याम बाबा की जय!