
अद्भुत प्रशंसा: श्री कृष्ण द्वारा बर्बरीक की महिमा का गान
कुरुक्षेत्र की रणभूमि सज चुकी थी। दोनों ओर की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं, युद्ध के लिए आतुर। पांडवों और कौरवों के बीच यह धर्मयुद्ध अब अपने चरम पर था। आकाश में शंखों और भेरियों की गूंज व्याप्त थी, योद्धाओं के हृदय में उत्साह और आशंका का मिश्रण था। इस महासंग्राम को देखने के लिए दूर-दूर से ऋषि-मुनि और देवगण भी एकत्र हुए थे।
इसी बीच, एक अद्भुत योद्धा रणभूमि की ओर बढ़ता दिखाई दिया। वह तेजस्वी था, उसकी भुजाओं में अपार बल था और उसके पास तीन अचूक बाण थे। यह वीर बर्बरीक था, घटोत्कच का पुत्र और भीम का पौत्र। अपनी माता मोर्वी के वचनों से बंधा हुआ, वह उस पक्ष का साथ देने आया था जो निर्बल होगा।
बर्बरीक की वीरता की गाथाएं पहले ही चारों दिशाओं में फैल चुकी थीं। उसने अपनी तपस्या और साधना से अद्भुत शक्तियां प्राप्त की थीं। उसके तरकश में रखे तीन बाण किसी भी लक्ष्य को भेदने में सक्षम थे और उसकी दिव्य दृष्टि उसे भविष्य देखने की क्षमता प्रदान करती थी।
जब बर्बरीक कुरुक्षेत्र की सीमा पर पहुंचा, तो भगवान श्री कृष्ण ने उसे देखा। वे जानते थे कि बर्बरीक कितना शक्तिशाली है और उसका संकल्प कितना दृढ़ है। यदि बर्बरीक युद्ध में सम्मिलित होता, तो परिणाम कुछ और ही होता। श्री कृष्ण ने बर्बरीक के अद्भुत पराक्रम और निष्ठा को परखने का निश्चय किया।
वे एक ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक के सामने आए। उनकी जटाएं बढ़ी हुई थीं, शरीर पर भस्म रमी हुई थी और हाथों में एक दंड था। उनकी दिव्य आभा के बावजूद, बर्बरीक उन्हें पहचान नहीं पाया।
“हे वीर योद्धा,” ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण ने मधुर वाणी में कहा, “तुम कौन हो और इस रणभूमि में किस उद्देश्य से आए हो?”
बर्बरीक ने विनम्रता से उत्तर दिया, “हे ब्राह्मण देव, मेरा नाम बर्बरीक है। मैं घटोत्कच का पुत्र और पांडवों का पौत्र हूँ। मेरी माता ने मुझे यह वचन दिया है कि मैं उस पक्ष का साथ दूंगा जो युद्ध में निर्बल होगा।”
ब्राह्मण ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “तुम्हारे पास तो केवल तीन बाण दिखाई देते हैं। इतने कम बाणों से तुम युद्ध में क्या सहायता करोगे?”
बर्बरीक ने आत्मविश्वास से कहा, “हे ब्राह्मण देव, यह सत्य है कि मेरे पास केवल तीन बाण हैं, परंतु ये साधारण बाण नहीं हैं। इनमें इतनी शक्ति है कि ये पल भर में तीनों लोकों को नष्ट कर सकते हैं। मेरा पहला बाण उस स्थान को चिह्नित करेगा जिसे मैं नष्ट करना चाहता हूँ, दूसरा बाण उस स्थान पर जाएगा और तीसरा बाण सब कुछ समाप्त कर देगा।”
ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण मुस्कुराए। वे बर्बरीक की शक्ति और उसके संकल्प को देखकर चकित थे। उन्होंने उसकी परीक्षा लेने के लिए एक और प्रश्न पूछा, “हे वीर, क्या तुम मुझे इन बाणों की शक्ति का प्रदर्शन दिखा सकते हो?”
बर्बरीक ने सहर्ष स्वीकार किया। उसने अपने तरकश से एक बाण निकाला और ब्राह्मण से कहा, “हे ब्राह्मण देव, आप कोई भी एक लक्ष्य बताइए।”
ब्राह्मण ने पास में खड़े एक विशाल पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा, “हे वीर, क्या तुम इस वृक्ष के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेद सकते हो?”
बर्बरीक ने तनिक भी संकोच नहीं किया। उसने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और भगवान का स्मरण करके उसे छोड़ दिया। वह बाण तीव्र गति से गया और पल भर में वृक्ष के सभी पत्तों को छेदता हुआ वापस बर्बरीक के तरकश में आ गया।
ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण यह देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने बर्बरीक से कहा, “हे वीर, तुम्हारी शक्ति सचमुच अद्भुत है। परंतु क्या तुम मुझे यह बता सकते हो कि तुमने इस वृक्ष के सभी पत्तों को कैसे भेदा, जबकि कुछ पत्ते तो मेरे पैरों के नीचे दबे हुए थे?”
बर्बरीक ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा और कहा, “हे ब्राह्मण देव, मेरा बाण उन पत्तों तक भी पहुंचा जो आपके पैरों के नीचे दबे हुए थे। वास्तव में, इस वृक्ष का एक भी पत्ता ऐसा नहीं है जिसे मेरे बाण ने न भेदा हो।”
यह सुनकर ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण का आश्चर्य और भी बढ़ गया। उन्होंने बर्बरीक से पूछा, “हे वीर, यदि तुम्हारे पास इतनी अद्भुत शक्ति है, तो तुम युद्ध में किस पक्ष का साथ दोगे? क्या तुम जानते हो कि दोनों ही पक्षों में महान योद्धा हैं और दोनों ही अपनी-अपनी तरह से शक्तिशाली हैं?”
बर्बरीक ने उत्तर दिया, “हे ब्राह्मण देव, मैंने अपनी माता को वचन दिया है कि मैं उस पक्ष का साथ दूंगा जो युद्ध में निर्बल होगा।”
श्री कृष्ण ने गंभीर स्वर में कहा, “हे वीर, क्या तुमने इस बात पर विचार किया है कि युद्ध में कौन निर्बल है? क्या तुम जानते हो कि पांडवों के पास धर्म है और कौरवों के पास विशाल सेना? क्या तुम पल-पल बदलते युद्ध के नियमों को समझ पाओगे?”
बर्बरीक ने कहा, “हे ब्राह्मण देव, मैं जानता हूँ कि धर्म पांडवों के साथ है, परंतु उनकी सेना कौरवों की तुलना में कम है। इसलिए, मेरे वचन के अनुसार, मुझे पांडवों का साथ देना चाहिए।”
श्री कृष्ण ने बर्बरीक को समझाया, “हे वीर, यदि तुम पांडवों के साथ जुड़ते हो, तो तुम अपनी अद्भुत शक्ति से कौरवों की विशाल सेना को पल भर में समाप्त कर दोगे। उसके बाद पांडवों की सेना निर्बल हो जाएगी और तुम्हें अपने वचन के अनुसार उनका साथ देना पड़ेगा। इस प्रकार, तुम दोनों ही पक्षों की सेनाओं को नष्ट कर दोगे और यह युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा।”
बर्बरीक भगवान श्री कृष्ण की बातों को ध्यान से सुन रहा था। उसे यह एहसास हुआ कि उसकी प्रतिज्ञा के कारण एक विकट स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उसने ब्राह्मण वेशधारी से पूछा, “हे ब्राह्मण देव, अब मुझे क्या करना चाहिए? मैं अपनी माता के वचन को भी तोड़ना नहीं चाहता और इस युद्ध को भी निष्फल नहीं होने देना चाहता।”
तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने दिव्य रूप को प्रकट किया। उनका तेज करोड़ों सूर्यों के समान था और उनकी दिव्य आभा से सारा वातावरण प्रकाशित हो उठा। बर्बरीक उनके विराट रूप को देखकर चकित और विस्मित हो गया। उसने साष्टांग प्रणाम करके भगवान से क्षमा मांगी।
भगवान श्री कृष्ण ने गंभीर परंतु प्रेमपूर्ण वाणी में कहा, “हे वीर बर्बरीक, तुम्हारे संकल्प और तुम्हारी निष्ठा की मैं प्रशंसा करता हूँ। तुमने अपनी माता के वचन का पालन करने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था। तुम्हारी शक्ति अद्भुत है और तुम्हारा हृदय पवित्र है। परंतु, इस युद्ध के परिणाम को देखते हुए, तुम्हारा युद्ध में सम्मिलित होना उचित नहीं है।”
बर्बरीक ने विनम्रता से पूछा, “हे प्रभु, तो अब मुझे क्या करना चाहिए? मेरी इच्छा तो इस धर्मयुद्ध में अपना योगदान देने की थी।”
भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे वीर, तुम्हारी इच्छा का मैं सम्मान करता हूँ। यद्यपि तुम प्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में भाग नहीं ले पाओगे, परंतु तुम्हारी वीरता और तुम्हारा बलिदान इस युद्ध को हमेशा याद रखा जाएगा। मैं चाहता हूँ कि तुम इस युद्ध को अपनी दिव्य दृष्टि से देखो और मुझे बताओ कि कौन विजयी होगा।”
बर्बरीक ने भगवान की आज्ञा का पालन किया। उसने अपनी दिव्य दृष्टि से पूरे युद्ध का दृश्य देखा और फिर भगवान श्री कृष्ण से कहा, “हे प्रभु, यह युद्ध तो आप अकेले ही जीतेंगे। आपके संकल्प और आपकी नीति के सामने किसी की भी शक्ति नहीं टिक पाएगी।”
भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराए और कहा, “हे वीर, तुम्हारा कथन सत्य है। परंतु इस युद्ध में धर्म की स्थापना के लिए अनेक वीरों को अपना बलिदान देना होगा। मैं चाहता हूँ कि तुम इस युद्ध के साक्षी बनो और अपनी वीरता का परिचय एक अलग रूप में दो।”
तब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से एक अद्भुत वरदान मांगा। उन्होंने कहा, “हे वीर, मैं तुमसे यह याचना करता हूँ कि तुम इस युद्ध में मरने वाले सभी योद्धाओं के शीश दान कर दो।”
बर्बरीक यह सुनकर तनिक भी विचलित नहीं हुआ। वह जानता था कि भगवान की इच्छा के आगे कुछ भी असंभव नहीं है। उसने तुरंत ही भगवान की आज्ञा को स्वीकार कर लिया।
भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के इस महान त्याग और समर्पण को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “हे वीर, तुम्हारा यह बलिदान युगों-युगों तक याद रखा जाएगा। तुम्हारी वीरता और तुम्हारी निष्ठा अद्वितीय है। आज से तुम ‘खाटू श्याम’ के नाम से जाने जाओगे और कलियुग में तुम्हारी पूजा मेरे ही रूप में होगी। जो भी भक्त सच्चे मन से तुम्हारा स्मरण करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।”
इस प्रकार, बर्बरीक ने अपनी अद्भुत शक्ति और महान बलिदान से इतिहास में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया। भगवान श्री कृष्ण द्वारा बर्बरीक की प्रशंसा (Shri Krishna Dwara Barbarik Ki Prashansa) आज भी भक्तों के हृदय में गूंजती है और उनकी महिमा का गान किया जाता है।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में बर्बरीक एक ऊंचे टीले पर बैठकर पूरे युद्ध का साक्षी बना। उसके दिव्य नेत्र हर घटना को स्पष्ट रूप से देख रहे थे। जब अर्जुन अपने प्रियजनों को युद्ध में देखकर मोहग्रस्त हो गए, तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया। बर्बरीक ने उस दिव्य संवाद को भी सुना और ज्ञान प्राप्त किया।
युद्ध के अंतिम दिनों में, जब पांडवों की विजय सुनिश्चित हो गई, तो भगवान श्री कृष्ण ने सभी प्रमुख योद्धाओं से पूछा कि इस युद्ध में सबसे बड़ा वीर कौन था। अर्जुन ने स्वयं को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बताया, भीम ने अपनी गदा की शक्ति का बखान किया, और अन्य योद्धाओं ने भी अपने-अपने पराक्रम का वर्णन किया।
तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे वीरो, इस युद्ध का सच्चा साक्षी तो बर्बरीक है। क्यों न हम उससे ही पूछें कि उसकी दृष्टि में सबसे बड़ा वीर कौन था?”
सभी योद्धा बर्बरीक की ओर देखने लगे। बर्बरीक ने अपनी दिव्य दृष्टि से पूरे युद्ध का मूल्यांकन किया और फिर कहा, “हे प्रभु, इस युद्ध में यदि कोई सबसे बड़ा वीर है, तो वह केवल आप हैं। आपने अपनी नीति, अपनी बुद्धि और अपने संकल्प से इस युद्ध को संचालित किया है। आपके बिना पांडवों की विजय असंभव थी। आपकी एक आज्ञा पर यह पूरी सृष्टि हिल सकती है।”
बर्बरीक के इन वचनों को सुनकर सभी योद्धा चकित रह गए। अर्जुन और भीम को थोड़ा अहंकार था, परंतु बर्बरीक की निष्पक्ष राय ने उनके गर्व को चूर-चूर कर दिया। उन्होंने महसूस किया कि भगवान श्री कृष्ण की लीला अपरंपार है और उनकी शक्ति के आगे किसी का भी अहंकार टिक नहीं सकता।
भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की प्रशंसा करते हुए कहा, “हे वीर, तुम्हारा अवलोकन सत्य है। मैंने ही इस युद्ध को धर्म की स्थापना के लिए संचालित किया है। तुम्हारा त्याग और तुम्हारी निष्ठा अद्वितीय है। तुमने बिना किसी स्वार्थ के अपना शीश दान कर दिया। तुम्हारा यह बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा।”
इस घटना के बाद, बर्बरीक का महत्व और भी बढ़ गया। भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं उसकी प्रशंसा की थी, इसलिए उसकी महिमा चारों दिशाओं में फैल गई। लोगों को यह ज्ञात हो गया कि एक ऐसा वीर भी था जिसने अपनी अद्भुत शक्ति के बावजूद युद्ध में भाग नहीं लिया, परंतु उसका बलिदान सबसे महान था।
कलयुग में बर्बरीक ‘खाटू श्याम’ के नाम से पूजे जाने लगे। राजस्थान के खाटू में उनका भव्य मंदिर है, जहां लाखों भक्त हर साल दर्शन के लिए आते हैं। वे हारे हुए का सहारा और निर्बलों के रक्षक माने जाते हैं। भक्तों का मानना है कि सच्चे मन से उनकी प्रार्थना करने पर सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
खाटू श्याम जी के मंदिर में उनकी केवल शीश की पूजा होती है, जो उनके महान बलिदान का प्रतीक है। भक्तों द्वारा गाए जाने वाले भजनों और कथाओं में उनकी वीरता, उनकी निष्ठा और भगवान श्री कृष्ण द्वारा की गई उनकी प्रशंसा का वर्णन मिलता है।
श्री कृष्ण द्वारा बर्बरीक की प्रशंसा (Shri Krishna Dwara Barbarik Ki Prashansa) न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह हमें त्याग, निष्ठा और भक्ति के महत्व को भी सिखाती है। बर्बरीक ने अपने वचन का पालन करने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया और भगवान ने उनकी इस महानता को स्वीकार करते हुए उन्हें अमर कर दिया।
आज भी जब कोई भक्त संकट में होता है या उसे किसी सहारे की आवश्यकता होती है, तो वह खाटू श्याम जी का स्मरण करता है। बर्बरीक, जिसने कभी युद्ध में भाग नहीं लिया, अपनी अद्भुत शक्ति और बलिदान के कारण युगों-युगों तक पूजे जाते रहेंगे।
भगवान श्री कृष्ण की यह प्रशंसा उनके महत्व को और भी अधिक बढ़ा देती है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सच्ची वीरता शक्ति में नहीं, बल्कि त्याग और धर्म के पालन में निहित होती है। बर्बरीक ने अपनी हार में भी जीत हासिल की, क्योंकि भगवान ने स्वयं उनकी प्रशंसा की और उन्हें कलयुग का देवता घोषित किया।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि भले ही शांत हो गई हो, परंतु बर्बरीक की वीरता और भगवान श्री कृष्ण द्वारा की गई उनकी प्रशंसा की गूंज आज भी भक्तों के हृदय में जीवित है। यह कहानी हमें धर्म, सत्य और बलिदान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। बर्बरीक का जीवन एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे एक साधारण योद्धा भी अपने महान कर्मों से इतिहास में अमर हो सकता है, खासकर जब उसे स्वयं भगवान का आशीर्वाद और प्रशंसा प्राप्त हो।
श्री कृष्ण द्वारा बर्बरीक की प्रशंसा एक ऐसा अध्याय है जो हमें भक्ति और समर्पण की शक्ति का अनुभव कराता है। बर्बरीक ने बिना किसी स्वार्थ के भगवान की आज्ञा का पालन किया और बदले में उन्हें वह स्थान मिला जो विरले ही किसी को प्राप्त होता है। अद्भुत प्रशंसा: श्री कृष्ण द्वारा बर्बरीक की महिमा का गान ।
उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और निस्वार्थ सेवा का फल हमेशा मीठा होता है। भगवान श्री कृष्ण ने न केवल उनकी प्रशंसा की, बल्कि उन्हें अपने ही समान पूजे जाने का वरदान भी दिया, जो उनके महान त्याग का सर्वोच्च सम्मान था।