
अविचल अनुराग: श्याम चरणों में अर्पित जीवन
कोटा शहर की एक पुरानी हवेली में, जिसके आंगन में बरसों पुराना नीम का पेड़ अपनी घनी छांव फैलाए खड़ा था, एक शांत और भक्तिमय वातावरण रहता था। इस हवेली में, साठ वर्षीय विधवा विमला देवी अपने इकलौते पोते, आठ वर्षीय माधव के साथ रहती थीं। विमला देवी का जीवन, पति के आकस्मिक निधन के बाद, अकेलेपन और संघर्षों से भरा रहा था। लेकिन एक अटूट डोर थी जिसने उन्हें इस मुश्किल दौर में सहारा दिया – वह थी खाटू वाले श्याम बाबा के प्रति उनकी गहरी और अटूट प्रीति।
विमला देवी के हृदय में श्याम बाबा के लिए जो प्रेम था, वह किसी साधारण भक्ति से कहीं बढ़कर था। यह एक ऐसा अनुराग था जो उनकी हर सांस में घुला हुआ था, उनकी हर धड़कन में स्पंदित होता था। उन्हें ऐसा लगता था जैसे श्याम बाबा उनके सबसे करीब हैं, उनके हर सुख-दुख के साथी हैं।
“हमें प्रीत तुमसे, हुई श्याम प्यारे, तुम हो हमारे, हम हैं तुम्हारे…” यह भजन विमला देवी की दिनचर्या का अभिन्न अंग था। सुबह उठते ही उनके मधुर कंठ से यह पंक्तियाँ स्वतः ही निकल पड़ती थीं, और रात को सोते समय भी उनके होंठों पर यही प्रार्थना रहती थी। उन्हें लगता था जैसे यह सिर्फ एक भजन नहीं, बल्कि उनके और बाबा के बीच एक अटूट संवाद है।
माधव भी अपनी दादी के साथ मिलकर यह भजन गाता था। भले ही वह अभी छोटा था, लेकिन अपनी दादी की भक्ति और प्रेम को देखकर उसके मन में भी श्याम बाबा के प्रति एक गहरा सम्मान और स्नेह विकसित हो गया था।
विमला देवी अक्सर श्याम बाबा के सामने बैठकर घंटों तक उनसे बातें करती थीं। यह कोई औपचारिक प्रार्थना नहीं होती थी, बल्कि एक माँ का अपने प्यारे बच्चे से या एक सखी का अपनी अंतरंग सहेली से बातचीत करने जैसा होता था। वह अपनी परेशानियाँ बतातीं, अपनी खुशियाँ साझा करतीं, और उनसे मार्गदर्शन मांगतीं।
“कैसे रीझाऊँ तुझको, मैं कैसे मनाऊँ, भावना है सच्ची मेरी, भाव से मैं ध्याऊँ…” विमला देवी का मन कभी-कभी इस विचार से व्याकुल हो उठता था कि वह बाबा को कैसे प्रसन्न करें। उनके पास कोई बड़ी पूजा-सामग्री या धन-दौलत नहीं थी जिसे वह अर्पित कर सकें। लेकिन उनका हृदय सच्ची भावना और अटूट प्रेम से भरा हुआ था। उन्हें विश्वास था कि भाव के भूखे बाबा उनकी इसी भावना को समझेंगे और स्वीकार करेंगे।
विमला देवी का मानना था कि श्याम बाबा सिर्फ बाहरी आडंबरों से नहीं, बल्कि सच्चे भाव और प्रेम से रीझते हैं। इसलिए वह हमेशा अपने हृदय को शुद्ध रखने और अपनी भक्ति को निष्काम रखने का प्रयास करती थीं।
“भाव के हो भुखे बाबा, भाव से रिजाये, तुम हो हमारे, हम हैं तुम्हारे…” यह विश्वास विमला देवी के जीवन का आधार था। उन्हें पता था कि उनके प्यारे श्याम बाबा उनके हृदय के भावों को जानते हैं और उनकी सच्ची भक्ति से अवश्य प्रसन्न होंगे।
विमला देवी हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहती थीं। वह गरीबों को भोजन करातीं, बीमारों की सेवा करतीं, और जरूरतमंदों को हर संभव सहायता प्रदान करती थीं। उनका मानना था कि दीन-दुखियों की सेवा करना ही श्याम बाबा की सच्ची पूजा है।
“दीनों के नाथ बाबा, हो दीन दयालू, भक्तों के माने तुम हो, बड़े ही कृपालु…” विमला देवी जानती थीं कि श्याम बाबा गरीबों और असहायों के नाथ हैं। वह हमेशा उनकी करुणा और दयालुता की कहानियाँ सुनाती थीं और लोगों को प्रेरित करती थीं कि वे भी दूसरों के प्रति दया का भाव रखें।
माधव अक्सर अपनी दादी से पूछता था कि बाबा इतने कृपालु कैसे हैं। विमला देवी उसे बताती थीं कि श्याम बाबा अपने भक्तों से बहुत प्रेम करते हैं और उनकी हर मुश्किल में उनका साथ देते हैं।
“मुझे भी संवारो जैसे, औरों को संवारे, तुम हो हमारे, हम हैं तुम्हारे…” विमला देवी की एक गहरी इच्छा थी कि श्याम बाबा उन पर भी अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें और उनके जीवन की मुश्किलों को दूर करें। उन्हें पता था कि बाबा जिस पर अपनी कृपा करते हैं, उसका जीवन संवर जाता है।
एक बार, माधव बहुत बीमार पड़ गया। विमला देवी बहुत चिंतित हो गईं। उन्होंने दिन-रात माधव की सेवा की और श्याम बाबा से उसकी सलामती के लिए प्रार्थना करती रहीं। उनकी आँखों से लगातार आँसू बहते रहे।
“करुणा के सिंधु, दया तो दिखाओ, अर्जी हमारी श्यामा, यूँ ना ठुकराओ…” विमला देवी का हृदय व्याकुल था। उन्हें लग रहा था जैसे उनकी सारी उम्मीदें टूट रही हैं। उन्होंने श्याम बाबा के सामने बैठकर घंटों तक रो-रोकर प्रार्थना की।
“नीर बहाये मेरे, नैणन ये प्यारे, तुम हो हमारे, हम हैं तुम्हारे…” विमला देवी के प्यारे नेत्रों से बहते हुए आँसू उनकी गहरी पीड़ा और अटूट विश्वास की कहानी कह रहे थे। उन्हें पता था कि उनके श्याम प्यारे उनकी इस अर्जी को ज़रूर सुनेंगे।
और सचमुच, कुछ दिनों के बाद माधव की तबीयत धीरे-धीरे सुधरने लगी। विमला देवी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्हें विश्वास हो गया कि यह श्याम बाबा की ही कृपा है।
उस दिन से, विमला देवी का विश्वास और भी दृढ़ हो गया। उन्हें लगने लगा कि श्याम बाबा हमेशा उनके साथ हैं, उनकी हर प्रार्थना सुनते हैं और उनकी हर मुश्किल में उनका सहारा बनते हैं।
विमला देवी का जीवन एक साधारण महिला का जीवन था, लेकिन उनके हृदय में श्याम बाबा के लिए जो असाधारण प्रेम और भक्ति थी, उसने उनके जीवन को एक दिव्य आभा प्रदान कर दी थी। उनका अटूट अनुराग और अविचल विश्वास दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत था।
माधव बड़ा होकर भी अपनी दादी की भक्ति और प्रेम को कभी नहीं भूला। श्याम बाबा उनके जीवन का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे। वह अक्सर अपनी दादी के साथ खाटू जाता था और बाबा के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करता था।
विमला देवी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक श्याम बाबा की भक्ति और प्रेम को अपने हृदय में संजोए रखा। उन्हें इस बात का संतोष था कि उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने प्यारे श्याम को समर्पित कर दिया।
उनकी मृत्यु के बाद, माधव ने उनकी स्मृति में हर साल खाटू जाने का संकल्प लिया। वह जानता था कि उसकी दादी का हृदय हमेशा श्याम बाबा के चरणों में ही रमा रहता था।
विमला देवी की कहानी एक साधारण भक्त की कहानी है, लेकिन यह उस अटूट प्रेम और अविचल विश्वास की कहानी है जो एक भक्त का अपने आराध्य के प्रति होता है। यह उस गहरे अनुराग की कहानी है जो दो आत्माओं को एक अटूट बंधन में बांध देता है – “तुम हो हमारे, हम हैं तुम्हारे…” यह सिर्फ एक भजन की पंक्ति नहीं, बल्कि विमला देवी के जीवन का सार था, उनके हृदय की सच्ची पुकार थी, जो हमेशा श्याम बाबा के चरणों में गूँजती रही। उनका अविचल अनुराग श्याम चरणों में अर्पित एक ऐसा जीवन था जो प्रेम, भक्ति और विश्वास की अमर गाथा बन गया।