
अन्तिम आस: विश्वास की डोर श्याम चरणों में
कोटा शहर की तंग गलियों में, जहाँ सदियों पुरानी हवेलियाँ आधुनिक इमारतों के साए में गुमसुम खड़ी थीं, एक छोटा सा कमरा था। इस कमरे में, धुएँ और उदासी की एक धुंधली परत के बीच, अर्जुन बैठा था। उसकी उम्र चालीस के आसपास थी, लेकिन उसकी आँखों की गहराई में सदियों का दर्द समाया हुआ था। कभी एक सफल व्यापारी, आज वह भाग्य के क्रूर हाथों का खिलौना बन चुका था।
अर्जुन की कहानी किसी दुखद उपन्यास से कम नहीं थी। उसने अपनी मेहनत और ईमानदारी से एक छोटा सा व्यवसाय खड़ा किया था, जिसे उसने अपने खून-पसीने से सींचा था। उसका परिवार – पत्नी सीमा और दो प्यारे बच्चे, रिया और रोहन – उसकी दुनिया थे। उनके हँसते हुए चेहरे उसकी सारी थकान मिटा देते थे।
लेकिन फिर, जैसे किसी काली छाया ने उसके जीवन पर दस्तक दी। एक गलत साझेदारी, कुछ धोखे और फिर एक ऐसा आर्थिक संकट आया जिसने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। अर्जुन ने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी, दिन-रात एक कर दिया, लेकिन वह उस दलदल से बाहर नहीं निकल सका। धीरे-धीरे, उसका व्यवसाय डूब गया, और उसके साथ ही डूब गईं उसकी सारी उम्मीदें।
सबसे ज़्यादा दर्द उसे अपनों के बदलते हुए रवैये से हुआ। जिन दोस्तों और रिश्तेदारों पर उसने आँख मूंदकर भरोसा किया था, उन्होंने मुश्किल वक़्त में मुँह फेर लिया। उनकी सहानुभूति की जगह तिरस्कार और उपेक्षा ने ले ली। अर्जुन अंदर ही अंदर टूटता चला गया।
एक रात, जब वह अपनी किस्मत पर रो रहा था, उसकी पत्नी सीमा उसके पास आई। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उसके स्वर में दृढ़ता थी। “हमें हार नहीं माननी चाहिए,” उसने कहा था, “मैंने सुना है, खाटू वाले श्याम बाबा सबकी सुनते हैं। जो उनसे सच्ची आस रखता है, वह कभी निराश नहीं होता।”
सीमा की बातों में अर्जुन को एक ক্ষীণ किरण दिखाई दी। उसने श्याम बाबा के बारे में कई कहानियाँ सुनी थीं – उनके भक्तों की मदद करने, उनकी बिगड़ी बनाने की कहानियाँ। उसे लगा, शायद अब यही एक सहारा बचा है।
उस रात से, अर्जुन का मन श्याम बाबा में रम गया। वह घंटों उनके भजन सुनता, उनकी लीलाओं के बारे में पढ़ता। उसे धीरे-धीरे विश्वास होने लगा कि बाबा ज़रूर उसकी सुनेंगे, ज़रूर उसे इस मुश्किल वक़्त से निकालेंगे।
लेकिन परिस्थितियाँ बद से बदतर होती गईं। घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे। बच्चों की स्कूल फीस बाकी थी, और सीमा की तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी। अर्जुन हर पल खुद को असहाय महसूस करता था।
एक दिन, जब वह बिल्कुल टूट चुका था, उसने फैसला किया कि वह खाटू जाएगा। वह बाबा के चरणों में अपनी अर्जी रखेगा, उनसे मदद की गुहार लगाएगा। उसके पास ज़्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन उसके दिल में अटूट विश्वास था।
उसने सीमा और बच्चों को अपनी योजना बताई। सीमा थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन उसने अर्जुन के विश्वास को देखकर उसे जाने दिया। रिया और रोहन ने अपने पिता को गले लगाया और कहा, “बाबा ज़रूर आपकी सुनेंगे, पापा।”
अर्जुन अगले दिन सुबह ही खाटू के लिए निकल पड़ा। बस में लंबी और थकाऊ यात्रा के दौरान, उसके मन में विचारों का बवंडर उठा हुआ था। उसे अपनी असफलताएँ याद आ रही थीं, अपनों का धोखा याद आ रहा था, और अपने परिवार की चिंता सता रही थी।
“हारा हूँ बाबा पर तुझपे भरोसा है, जीतूंगा एक दिन मेरा दिल ये कहता है…” यह पंक्ति उसके मन में बार-बार गूँज रही थी। यह सिर्फ एक भजन की पंक्ति नहीं थी, बल्कि उसके दिल की गहरी आवाज़ थी, उसकी आखिरी उम्मीद की किरण थी।
खाटू पहुँचकर, अर्जुन उस भीड़ में खो गया जो बाबा के दर्शन के लिए उमड़ी हुई थी। हर तरफ “जय श्री श्याम” का जयकारा गूँज रहा था। लोगों की श्रद्धा और भक्ति देखकर अर्जुन की आँखों में आँसू आ गए। उसे लगा जैसे वह एक अलग ही दुनिया में आ गया हो, जहाँ सिर्फ विश्वास और प्रेम का वास है।
वह धीरे-धीरे मंदिर की ओर बढ़ा। भीड़ बहुत ज़्यादा थी, लेकिन अर्जुन को जैसे कोई अदृश्य शक्ति खींच रही थी। जब वह बाबा के दरबार में पहुँचा, तो उसकी आँखें नम हो गईं। श्याम बाबा की मनमोहक मूर्ति के सामने खड़े होकर, वह अपनी सारी पीड़ा भूल गया।
उसने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपनी आँखों को बंद कर लिया। उसके होंठ धीरे-धीरे हिलने लगे, जैसे वह बाबा से अपनी कहानी कह रहा हो।
“मेरे मांझी बन जाओ मेरी नाव चला जाओ, बेटे को बाबा श्याम गले लगा जाओ…” यह प्रार्थना उसके हृदय की गहराई से निकली थी। वह बाबा को अपना एकमात्र सहारा मानता था, अपनी डूबती हुई नाव का खेवनहार।
अर्जुन जानता था कि उसने जीवन में कई गलतियाँ की होंगी। शायद यही उसकी हार का कारण था। लेकिन अब उसे अपनी गलतियों का एहसास हो गया था, और वह सुधरना चाहता था। वह अपने परिवार को फिर से खुश देखना चाहता था।
“मैंने सुना है तू दुखड़े मिटाता, बिन बोले भक्तों की बिगड़ी बनाता…” अर्जुन ने बाबा के चमत्कारों की कहानियाँ सुनी थीं। उसे विश्वास था कि बाबा उसकी भी सुनेंगे, उसकी बिगड़ी भी बनाएँगे।
उसने मंदिर में घंटों बिताए, बाबा के भजन गाए और उनके चरणों में अपनी सारी चिंताएँ अर्पित कर दीं। उसे वहाँ एक अद्भुत शांति का अनुभव हुआ, जैसे किसी ने उसके दिल पर मरहम लगा दिया हो।
लेकिन जब वह वापस कोटा लौटा, तो परिस्थितियाँ जस की तस थीं। घर में अभी भी गरीबी और निराशा का माहौल था। सीमा की तबीयत पहले से भी ज़्यादा खराब हो गई थी। अर्जुन फिर से निराश होने लगा।
“मिलता ना किनारा है ना कोई और सहारा है, हारा हूँ बाबा पर तुझपे भरोसा है…” यह निराशा भरी आवाज़ उसके मन में उठने लगी। उसे लगने लगा कि शायद उसकी आस टूट रही है।
एक रात, जब वह सीमा के पास बैठा था, उसने धीरे से कहा, “मुझे समझ नहीं आता, सीमा। मैंने बाबा पर इतना विश्वास किया, इतनी प्रार्थना की, लेकिन कुछ भी नहीं बदला।”
सीमा ने अर्जुन का हाथ अपने हाथों में लिया और प्यार से कहा, “विश्वास कभी बेकार नहीं जाता, अर्जुन। शायद बाबा हमारी परीक्षा ले रहे हैं। हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।”
सीमा के शब्दों में अर्जुन को फिर से एक सहारा मिला। उसे याद आया कि विश्वास की डोर कभी नहीं टूटनी चाहिए।
अगले कुछ दिन अर्जुन ने और ज़्यादा मेहनत की। उसने छोटे-मोटे काम ढूंढने शुरू कर दिए। उसने अपनी निराशा को अपनी ताकत बनाया और हर मुश्किल का सामना करने का फैसला किया।
धीरे-धीरे, चीजें बदलने लगीं। उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई। उसकी मेहनत और ईमानदारी देखकर उसके मालिक ने उसे तरक्की दी। सीमा की तबीयत में भी सुधार होने लगा। बच्चे फिर से स्कूल जाने लगे और घर में हँसी-खुशी का माहौल लौट आया।
अर्जुन जानता था कि यह सब बाबा की कृपा से ही संभव हुआ था। उसका विश्वास रंग लाया था।
एक दिन, अर्जुन अपने परिवार के साथ फिर से खाटू गया। इस बार उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वे कृतज्ञता के आँसू थे। उसने बाबा के चरणों में झुककर उनका धन्यवाद किया।
“तुमसे ही जीवन मेरा ओ मेरे बाबा, कैसे चलेगा समझ ना आता…” अर्जुन ने मन ही मन कहा, “आपने ही मुझे राह दिखाई, आपने ही मेरा सहारा बने।”
उसे अब समझ में आ गया था कि बाबा हमेशा अपने भक्तों के साथ होते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी मुश्किल क्यों न हों। वे धीरज बंधाते हैं और मुश्किलों से लड़ने की शक्ति देते हैं।
“तुम धीर बंधाते हो तो साँसें चलती हैं, मुझे समझ ना आता है मेरी क्या गलती है…” अर्जुन ने अपनी पिछली गलतियों से सबक सीखा था। उसे एहसास हो गया था कि जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए।
अर्जुन का परिवार अब खुशहाल था। उसने अपने बच्चों को बाबा की महिमा के बारे में बताया। रिया और रोहन भी बाबा के भक्त बन गए थे। वे अक्सर मिलकर बाबा के भजन गाते थे।
“परिवार मेरा तेरे गुण है जाता, दोषी तो मैं हूँ उन्हें क्यों सताता…” अर्जुन को अब इस बात का दुख था कि उसकी वजह से उसके परिवार को भी कष्ट सहना पड़ा था। लेकिन उसे यह भी विश्वास था कि बाबा ने उनके दुख दूर कर दिए हैं।
“उनको भी भरोसा है तूने पाला पोसा है, हारा हूँ बाबा पर तुझपे भरोसा है…” अर्जुन का विश्वास अटूट था। उसने हार मान ली थी, लेकिन उसका भरोसा कभी नहीं डिगा। और उसी भरोसे ने उसे फिर से जीत दिलाई थी।
उस दिन, जब अर्जुन अपने परिवार के साथ खाटू से वापस लौट रहा था, उसके मन में शांति और संतोष का भाव था। उसने जान लिया था कि जीवन में हार-जीत तो लगी रहती है, लेकिन सबसे ज़रूरी है विश्वास की डोर को कभी न छोड़ना। श्याम बाबा हमेशा अपने भक्तों के साथ हैं, उनकी हर मुश्किल में उनका सहारा बनते हैं। बस ज़रूरत है सच्चे मन से उन्हें पुकारने की और उन पर अटूट विश्वास रखने की। अर्जुन ने अपनी ज़िंदगी की इस कठिन परीक्षा में यही सीखा था, और यही सीख उसके जीवन का सार बन गई थी। उसकी अंतिम आस, विश्वास की डोर, हमेशा श्याम चरणों में बंधी रहेगी।