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रींगस के मोड़ पर मिलन की आस
अश्रुधारा: रींगस के मोड़ पर मिलन की आस

अश्रुधारा: रींगस के मोड़ पर मिलन की आस

सूर्य अपनी अंतिम स्वर्णिम आभा कोटा शहर के क्षितिज पर बिखेर रहा था। हवा में हल्की ठंडक घुल रही थी और मंदिरों की घंटियों की मधुर ध्वनि वातावरण में शांति घोल रही थी। इस शांत संध्या के बीच, एक युवा, जिसके चेहरे पर अनगिनत रातों की नींद और असंख्य चिंताओं की गहरी लकीरें थीं, शहर की भागदौड़ से दूर, एक छोटे से किराए के कमरे में गुमसुम बैठा था। उसका नाम था माधव।

माधव… कभी हंसता-खेलता, सपनों से भरा एक उत्साही युवक। आज उसकी आँखें सूनी थीं, जैसे किसी गहरे कुएँ में झाँक रही हों। उसके कंधे झुके हुए थे, मानो किसी अदृश्य बोझ तले दबे हों। कुछ महीने पहले तक, माधव एक सफल व्यवसायी था, जिसके पास धन, सम्मान और अपनों का साथ सब कुछ था। लेकिन फिर, समय का चक्र ऐसा घूमा कि सब कुछ रेत की तरह उसके हाथों से फिसल गया। व्यापार में भारी नुकसान हुआ, अपनों ने किनारा कर लिया और जिस पर सबसे ज़्यादा भरोसा किया, उसने सबसे गहरा घाव दिया।

आज माधव अकेला था। बिल्कुल अकेला। उसके हृदय में एक गहरा शून्य था, जिसे दुनिया की कोई भी भौतिक वस्तु भर नहीं सकती थी। उसने हर संभव प्रयास किया, हर दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन हर जगह उसे निराशा और तिरस्कार ही मिला। अंततः, टूटकर, हारकर, उसने दुनियादारी से नाता तोड़ लिया था। अब उसके मन में केवल एक ही आस बची थी – खाटू वाले श्याम बाबा।

माधव ने सुना था कि बाबा अपने भक्तों की हर पीड़ा हर लेते हैं, उनके टूटे हुए दिलों को जोड़ देते हैं। उसे किसी श्याम भक्त ने रींगस के उस मोड़ के बारे में बताया था, जहाँ भक्त अपनी अर्जी लेकर आते हैं और बाबा किसी न किसी रूप में उन्हें दर्शन देते हैं। उस दिन से, माधव का मन उसी मोड़ पर टिका हुआ था। उसे विश्वास था कि बाबा उसे ज़रूर बुलाएँगे, उसकी पुकार ज़रूर सुनेंगे।

उस रात, माधव ने अपनी बची हुई जमा पूंजी से एक टिकट खरीदा और अगली सुबह रींगस के लिए रवाना हो गया। ट्रेन की खचाखच भरी बोगी में भी वह खोया-खोया सा रहा। उसके कानों में उस श्याम भक्त के शब्द गूँज रहे थे – “बाबा का तू नाम ले…”

रींगस पहुँचकर, माधव उस मोड़ की ओर चल पड़ा, जिसका ज़िक्र उसने सुना था। धूल भरी सड़क, श्रद्धालुओं का शोर और हवा में उड़ती हुई केसरिया ध्वजाएँ – यह सब कुछ उसके लिए एक नया अनुभव था। उसने कभी इतनी भीड़ नहीं देखी थी, कभी इतनी श्रद्धा महसूस नहीं की थी।

धीरे-धीरे चलते हुए, माधव उस मोड़ पर पहुँचा। वहाँ पहले से ही कई भक्त बाबा के इंतजार में खड़े थे। किसी के हाथों में फूलों की माला थी, तो किसी के होंठों पर बाबा का नाम। माधव एक किनारे पर खड़ा हो गया, उसकी आँखें दूर क्षितिज पर टिकी थीं, मानो वह बाबा के आने का रास्ता देख रहा हो।

उसका मन भावनाओं के ज्वारभाटे से उथल-पुथल हो रहा था। उसे अपनी पिछली ज़िंदगी याद आ रही थी – अपनों का साथ, सफलता का घमंड और फिर अचानक सब कुछ खो जाने का दर्द। उसकी आँखों में आँसू आ गए, जिन्हें उसने बड़ी मुश्किल से रोका।

“हार गया मैं इस दुनिया से, अब तो मुझको थाम ले…” यह पंक्ति उसके मन में बार-बार गूँज रही थी। उसे लग रहा था जैसे यह उसके दिल की आवाज़ हो, जो बाबा तक पहुँचनी चाहिए।

माधव पूजा-अर्चना के विधि-विधान नहीं जानता था। उसने कभी मंदिरों में जाकर लंबी प्रार्थनाएँ नहीं की थीं। लेकिन आज, उसके हृदय में बाबा के लिए एक अटूट विश्वास था। उसने उन्हें अपना मान लिया था, अपना सब कुछ सौंप दिया था।

“तू ही दौलत तू ही शौहरत, इतना बाबा जान लिया…” यह भाव उसके मन में गहराई से समाया हुआ था। उसे अब दुनिया की किसी भी चीज़ की परवाह नहीं थी। उसे सिर्फ बाबा का सहारा चाहिए था, उनके प्रेम का स्पर्श चाहिए था।

सूरज धीरे-धीरे पश्चिम की ओर झुक रहा था और मोड़ पर भक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। माधव वहीं खड़ा रहा, उसकी आँखें बाबा के रास्ते पर टिकी थीं। उसे तीन बाणधारी श्याम बाबा की कहानियाँ याद आ रही थीं – कैसे उन्होंने अपने भक्त की रक्षा के लिए अपनी सारी शक्तियाँ लगा दी थीं।

“तीन बाण के कलाधारी, कला मुझे भी दिखा दे तू…” माधव ने मन ही मन प्रार्थना की। उसे विश्वास था कि बाबा ज़रूर उसकी सुनेंगे, ज़रूर उसे कोई राह दिखाएँगे।

तभी, भीड़ में हलचल हुई। कुछ लोग उत्साहित होकर आगे बढ़ने लगे। माधव ने देखा, दूर से एक भव्य रथ आता दिखाई दे रहा था, जिस पर श्याम बाबा की सुंदर मूर्ति विराजमान थी। रथ धीरे-धीरे मोड़ की ओर बढ़ रहा था और भक्तों का जयकारा गूँज रहा था – “जय श्री श्याम!”

माधव का हृदय श्रद्धा और भक्ति से भर गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, इस बार वे दुख के नहीं, बल्कि एक गहरी भावना के आँसू थे। उसने अपने दोनों हाथ जोड़े और बाबा की ओर देखने लगा।

जैसे ही रथ उसके पास से गुजरा, माधव को लगा जैसे बाबा की आँखों ने उसे देखा हो। एक क्षण के लिए, समय थम सा गया। उसे एक अद्भुत शांति का अनुभव हुआ, जैसे किसी ने उसके सारे दुखों को हर लिया हो।

भीड़ आगे बढ़ गई, रथ आँखों से ओझल हो गया, लेकिन माधव वहीं खड़ा रहा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। उसे बाबा के दर्शन तो नहीं हुए थे, लेकिन उसके हृदय में एक गहरा विश्वास जाग गया था कि उसकी पुकार ज़रूर सुनी गई है।

उस रात, माधव ने रींगस के एक धर्मशाला में गुजारी। उसकी नींद गहरी और शांत थी, बरसों बाद उसे ऐसी नींद आई थी। सुबह उठकर, उसने महसूस किया कि उसके मन का बोझ कुछ हल्का हो गया है।

अगले कुछ दिन, माधव रींगस में ही रहा। वह हर सुबह उस मोड़ पर जाता, बाबा के भक्तों को देखता, उनकी श्रद्धा और भक्ति को महसूस करता। उसने धीरे-धीरे पूजा-अर्चना के तरीके सीखे, बाबा के भजन सुने और उनके चमत्कारों की कहानियाँ जानीं।

एक दिन, जब वह मोड़ पर बैठा हुआ था, एक वृद्ध सज्जन उसके पास आए और बड़े प्यार से उससे बात करने लगे। उन्होंने माधव से उसकी परेशानी पूछी और उसे धैर्य रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि बाबा सबकी सुनते हैं, बस हमें उन पर अटूट विश्वास रखना चाहिए।

उन वृद्ध सज्जन की बातों ने माधव के मन को और शांति दी। उसे लगने लगा कि जैसे बाबा ने ही किसी रूप में उसे संदेश भेजा हो।

धीरे-धीरे, माधव के हृदय में निराशा की जगह उम्मीद ने ले ली। उसे अब यह विश्वास हो गया था कि बाबा उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे। जिन लोगों ने उसे धोखा दिया था, उनकी यादें अब उसे उतना नहीं सताती थीं। उसने अपने अतीत को पीछे छोड़ने और एक नई शुरुआत करने का फैसला कर लिया था।

माधव जानता था कि उसकी राह आसान नहीं होगी। उसे फिर से संघर्ष करना होगा, फिर से अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। लेकिन अब वह अकेला नहीं था। उसके साथ बाबा का आशीर्वाद था, उसका अटूट विश्वास था।

उस दिन, माधव ने रींगस छोड़ने का फैसला किया। वह वापस कोटा जा रहा था, लेकिन इस बार वह पहले वाला माधव नहीं था। उसकी आँखों में अब हार का नहीं, बल्कि एक नई उम्मीद का तेज था। उसके चेहरे पर शिकनें ज़रूर थीं, लेकिन उनके पीछे एक शांत दृढ़ संकल्प छिपा हुआ था।

जब उसकी ट्रेन रींगस के उस मोड़ से गुजरी, तो माधव ने खिड़की से बाहर देखा। उसने अपने दोनों हाथ जोड़े और मन ही मन बाबा को धन्यवाद दिया। उसे विश्वास था कि एक दिन बाबा उसे ज़रूर बुलाएँगे, शायद उसी मोड़ पर, और उस दिन उनका मिलन हमेशा के लिए होगा।

“मुझको है विश्वास मुझे तू, इक दिन बाबा तारेगा, तुझ पे भरोसा करने वाला, जग में कभी ना हारेगा…”

माधव की आँखों में भविष्य के सुनहरे सपने तैर रहे थे। वह जानता था कि उसकी ज़िंदगी में अभी और भी मुश्किलें आएँगी, लेकिन अब उसके पास एक ऐसा सहारा था, जिस पर वह आँख मूंदकर भरोसा कर सकता था। वह सहारा था खाटू वाले श्याम बाबा का।

और उस रींगस के मोड़ पर, जहाँ कभी उसने अपनी सारी उम्मीदें खो दी थीं, आज उसे एक नई ज़िंदगी की राह दिखाई दे रही थी। वह जानता था कि बाबा ज़रूर आएँगे, उसे लेने, उसे थामने, उसे अपना बनाने… बस सही समय का इंतजार था, और माधव उस इंतजार में शांति और विश्वास के साथ आगे बढ़ रहा था। उसकी अश्रुधारा अब सूख चुकी थी, और उसकी आँखों में मिलन की एक उज्ज्वल आस चमक रही थी।

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©️ श्याम मित्र द्वारा श्री श्याम के चरणों में समर्पित ©️