
देना हो तो दीजिये जन्म जन्म का साथ
मेरे सिर पर रख दो बाबा अपने ये दोनों हाथ
राजस्थान की धूल भरी राहों से उठती हुई एक पुकार, जो आस्था और प्रेम के अटूट बंधन से बंधी है, खाटू श्याम के दरबार तक पहुँचती है। यह कहानी उसी पुकार की है, एक ऐसे भक्त की, जिसका जीवन बाबा श्याम के चरणों में समर्पित है – मीरा।
मीरा का जन्म एक छोटे से गाँव में हुआ था, जहाँ भक्ति और परंपराएँ जीवन का अभिन्न अंग थीं। बचपन से ही उसने अपने दादाजी से खाटू श्याम की अनगिनत कहानियाँ सुनी थीं। दादाजी, जो स्वयं बाबा श्याम के अनन्य भक्त थे, मीरा को उनकी महिमा, उनकी करुणा और उनके चमत्कारों के बारे में बताते थे। मीरा के बाल मन पर इन कहानियों का गहरा प्रभाव पड़ा और धीरे-धीरे बाबा श्याम के प्रति उसके हृदय में एक अटूट श्रद्धा का भाव जागृत हो गया।
जैसे-जैसे मीरा बड़ी होती गई, उसकी भक्ति भी गहरी होती गई। वह घंटों तक बाबा श्याम के भजन गाती, उनकी तस्वीरों के सामने बैठकर प्रार्थना करती और अपने छोटे से गाँव में होने वाले श्याम कीर्तन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती। उसके लिए बाबा श्याम केवल एक आराध्य नहीं थे, बल्कि एक मित्र, एक मार्गदर्शक और उसके जीवन का सहारा थे।
एक दिन, मीरा के गाँव में एक श्याम भक्त मंडल आया। वे खाटू श्याम के मंदिर से लौट रहे थे और उन्होंने मीरा के गाँव में एक रात रुकने का निर्णय लिया। मीरा ने इस अवसर को ईश्वर का संकेत माना और पूरे मन से उनकी सेवा में जुट गई। उसने उनके लिए भोजन बनाया, उनके ठहरने का प्रबंध किया और रात भर उनसे बाबा श्याम की महिमा के बारे में सुनती रही।
उन भक्तों में से एक, पंडित घनश्याम दास, बाबा श्याम के एक पुराने और निष्ठावान सेवक थे। उन्होंने मीरा की भक्ति और श्रद्धा देखकर उसे खाटू आने का निमंत्रण दिया। पंडित जी ने कहा, “बेटी, तुम्हारे हृदय में बाबा श्याम के प्रति जो प्रेम है, वह दुर्लभ है। तुम्हें एक बार खाटू आकर उनके दर्शन जरूर करने चाहिए। उनकी महिमा तो आँखों से देखने पर ही समझ में आती है।”
मीरा का मन खाटू जाने के लिए आतुर हो उठा, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियाँ और आर्थिक तंगी उसके रास्ते में बाधा बन गईं। उसके पिता एक साधारण किसान थे और घर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। मीरा जानती थी कि इस समय खाटू जाना उसके परिवार के लिए संभव नहीं होगा, देना हो तो दीजिये जन्म जन्म का साथ।
उसने अपनी इच्छा को मन में दबा लिया, लेकिन बाबा श्याम से प्रार्थना करना कभी नहीं छोड़ा। वह हर रोज उनसे यही विनती करती कि एक दिन उसे उनके चरणों में आने का अवसर मिले।
कई साल बीत गए। मीरा का विवाह एक दूर के गाँव में हुआ। उसके पति, रमेश, एक मेहनती व्यक्ति थे, लेकिन उनका स्वभाव थोड़ा रूखा था और भक्ति-भाव से उनका कोई विशेष लगाव नहीं था। मीरा ने अपने ससुराल में भी अपनी भक्ति जारी रखी, लेकिन उसे अपने मायके और दादाजी की बहुत याद आती थी, और साथ ही खाटू जाने की उसकी इच्छा भी अधूरी ही थी।
एक दिन, मीरा के जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उसकी सारी परिस्थितियाँ बदल दीं। रमेश के व्यापार में अचानक भारी नुकसान हो गया और वे कर्ज के बोझ तले दब गए। हर तरफ निराशा का माहौल था और मीरा को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस संकट से कैसे निकलेंगे।
उस मुश्किल घड़ी में, मीरा को अपने दादाजी की बातें याद आईं – “जब सब दरवाजे बंद हो जाएँ, तो बाबा श्याम का दरवाजा हमेशा खुला रहता है।” उसने हार नहीं मानी और पूरी श्रद्धा के साथ बाबा श्याम की शरण में चली गई। वह घंटों तक रोती रही और बाबा से प्रार्थना करती रही कि वे उसके परिवार को इस संकट से उबारें।
एक रात, मीरा को सपने में बाबा श्याम के दर्शन हुए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटी, तू चिंता मत कर। मैं तेरे साथ हूँ। तू बस मुझ पर विश्वास रख।” इस सपने ने मीरा के मन में एक नई उम्मीद जगा दी।
अगले दिन, रमेश के एक पुराने मित्र ने उनसे संपर्क किया और उन्हें एक नए व्यापार का प्रस्ताव दिया। यह प्रस्ताव न केवल उनके आर्थिक संकट को दूर करने वाला था, बल्कि उनके जीवन में एक नई शुरुआत लेकर आया। धीरे-धीरे, रमेश का व्यापार फिर से चल पड़ा और वे कर्ज मुक्त हो गए।
मीरा जानती थी कि यह सब बाबा श्याम की कृपा से ही संभव हुआ था। इस घटना के बाद, रमेश का भी हृदय परिवर्तन हुआ और वे भी बाबा श्याम के भक्त बन गए। अब दोनों मिलकर हर महीने श्याम कीर्तन करवाते थे और गरीबों की मदद करते थे।
एक दिन, रमेश ने मीरा से कहा, “मीरा, अब हमारे पास सब कुछ है। चलो, खाटू श्याम के दर्शन करने चलते हैं। यह हमारी बरसों की इच्छा है और बाबा ने ही हमें इस लायक बनाया है।”
मीरा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसकी बरसों की तपस्या और प्रार्थना आज रंग लाई थी। वे दोनों खाटू के लिए रवाना हो गए।
खाटू पहुँचकर, मीरा उस दिव्य वातावरण से अभिभूत हो गई। मंदिर के चारों ओर भक्तों की अपार भीड़ थी, सभी बाबा श्याम के जयकारे लगा रहे थे। हवा में उड़ती हुई सुगंध और बजते हुए भजनों की मधुर ध्वनि ने मीरा के हृदय को शांति और आनंद से भर दिया।
जब मीरा ने बाबा श्याम की मनमोहक प्रतिमा के दर्शन किए, तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह छवि इतनी सुंदर और इतनी दिव्य थी कि मीरा को ऐसा लगा जैसे स्वयं भगवान कृष्ण ही उसके सामने खड़े हों। बाबा की बड़ी-बड़ी आँखें, उनके चेहरे पर विराजमान मुस्कान और उनका दिव्य तेज – सब कुछ इतना अलौकिक था कि मीरा कुछ पल के लिए सुध-बुध खो बैठी।
उसने हाथ जोड़कर बाबा श्याम को प्रणाम किया और अपने हृदय की सारी भावनाएँ उनके चरणों में अर्पित कर दीं। उसने बाबा से प्रार्थना की कि वे हमेशा उसके और उसके परिवार के साथ रहें, जन्म-जन्म का साथ निभाएँ।
मंदिर में कुछ घंटे बिताने के बाद, मीरा और रमेश ने गरीबों को दान दिया और भक्तों को भोजन कराया। मीरा का मन कृतज्ञता से भरा हुआ था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा सुख प्राप्त कर लिया हो।
खाटू से लौटने के बाद, मीरा का जीवन पूरी तरह से बदल गया। उसकी भक्ति और भी गहरी हो गई। वह हर रोज बाबा श्याम की पूजा करती, उनके भजन गाती और अपने घर पर भी श्याम कीर्तन करवाती। उसके घर का वातावरण हमेशा भक्तिमय बना रहता था।
धीरे-धीरे, मीरा के गाँव और आसपास के क्षेत्रों में भी उसकी भक्ति और बाबा श्याम के प्रति उसके अटूट विश्वास की चर्चा होने लगी। लोग उससे प्रेरणा लेते थे और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उसके पास आते थे। मीरा हमेशा उन्हें बाबा श्याम की शरण में जाने और उन पर विश्वास रखने की सलाह देती थी।
एक बार, मीरा के गाँव में एक गंभीर बीमारी फैल गई। कई लोग इसकी चपेट में आ गए और गाँव में भय का माहौल बन गया। मीरा ने गाँव के सभी लोगों को इकट्ठा किया और उनसे बाबा श्याम के नाम का जाप करने और उनसे प्रार्थना करने का आग्रह किया। उसने खुद भी दिन-रात बाबा श्याम के भजन गाए और बीमार लोगों की सेवा की।
कुछ ही दिनों में, बाबा श्याम की कृपा से गाँव में बीमारी का प्रकोप कम होने लगा और धीरे-धीरे सभी लोग स्वस्थ हो गए। इस घटना ने मीरा के प्रति लोगों का विश्वास और भी बढ़ा दिया।
मीरा ने अपने जीवन में कई बार बाबा श्याम की कृपा का अनुभव किया। हर मुश्किल घड़ी में उसे बाबा का सहारा मिला और हर खुशी के पल में उसने बाबा को धन्यवाद दिया। उसका मानना था कि बाबा श्याम हमेशा अपने भक्तों के साथ रहते हैं, चाहे वे कहीं भी हों।
समय बीतता गया और मीरा एक वृद्धा हो गई। उसके बाल सफेद हो गए थे और शरीर कमजोर हो गया था, लेकिन उसकी भक्ति और बाबा श्याम के प्रति उसका प्रेम कभी कम नहीं हुआ। आज भी वह हर रोज सुबह उठकर बाबा श्याम की पूजा करती है और उनके भजन गाती है।
एक दिन, मीरा ने अपने बेटे और बहू से कहा, “मेरे जीवन का अंतिम समय आ गया है। मेरी बस एक ही इच्छा है कि मेरे प्राण बाबा श्याम के चरणों में निकलें।”
उसकी इच्छा पूरी हुई। अपने अंतिम समय में, मीरा बाबा श्याम का नाम जप रही थी और उसके चेहरे पर एक शांत और दिव्य मुस्कान थी। जैसे ही उसने ‘जय श्री श्याम’ कहा, उसके प्राण निकल गए।
मीरा का जीवन बाबा श्याम के प्रति अटूट भक्ति और विश्वास की एक प्रेरणादायक कहानी है। उसने अपने जीवन में सुख-दुख, गरीबी-अमीरी हर तरह की परिस्थितियों का सामना किया, लेकिन कभी भी बाबा श्याम पर से अपना विश्वास नहीं डिगने दिया। उसकी भक्ति इतनी सच्ची और गहरी थी कि बाबा श्याम ने हमेशा उसका साथ दिया।
मीरा की कहानी हमें यह सिखाती है कि यदि हमारे हृदय में सच्चा प्रेम और अटूट विश्वास हो, तो बाबा श्याम हमेशा हमारे साथ रहते हैं। वे केवल एक आराध्य नहीं हैं, बल्कि वे हमारे जीवन के हर पल के साथी हैं। हमें बस उन्हें सच्चे मन से पुकारने और उन पर विश्वास रखने की आवश्यकता है।
खाटू श्याम देना हो तो दीजिये जन्म जन्म का साथ – यह केवल एक प्रार्थना नहीं है, बल्कि एक भक्त के हृदय की गहरी इच्छा है कि उसका अपने आराध्य के साथ अटूट और शाश्वत संबंध बना रहे। मीरा का जीवन इसी अटूट बंधन का प्रतीक है। उसकी भक्ति और विश्वास की यह कहानी युगों-युगों तक भक्तों को प्रेरित करती रहेगी और उन्हें यह याद दिलाती रहेगी कि बाबा श्याम हमेशा अपने भक्तों के साथ हैं, जन्म-जन्म तक।
खाटू श्याम का दरबार प्रेम और आस्था का सागर है, जहाँ हर भक्त अपनी मनोकामना लेकर आता है और बाबा की कृपा से कभी खाली हाथ नहीं लौटता। मीरा की तरह, लाखों भक्त बाबा श्याम के चरणों में अपना जीवन समर्पित करते हैं और उनसे जन्म-जन्म के साथ की कामना करते हैं। यह अटूट बंधन ही खाटू श्याम की महिमा को और भी अधिक बढ़ाता है और उन्हें ‘हारे का सहारा’ बनाता है।