
श्रद्धा और समर्पण का अमर गाथा
सूरजगढ़ के निशान की कहानी
राजस्थान की धरती, वीरों और भक्तों की भूमि, अपनी रंगीन संस्कृति और अटूट आस्था के लिए जानी जाती है। इसी पावन भूमि पर, झुंझुनूं जिले में स्थित है सूरजगढ़, एक ऐसा स्थान जिसकी मिट्टी में भक्ति और त्याग की गाथाएं रची-बसी हैं। इस कस्बे का नाम बाबा श्याम के मंदिर के शिखर पर लहराते उस निशान से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है, जो साल भर सूरजगढ़ की गौरवगाथा गाता रहता है। यह निशान मात्र एक ध्वजा नहीं, बल्कि सूरजगढ़ के श्याम भक्तों की अटूट श्रद्धा, उनके समर्पण और एक अद्भुत किंवदंती का प्रतीक है।
सदियों पहले, खाटू नगरी में बाबा श्याम का भव्य मंदिर भक्तों के आकर्षण का केंद्र था। दूर-दूर से श्याम प्रेमी अपनी मनोकामनाएं लेकर आते और अपने आराध्य को श्रद्धा सुमन अर्पित करते। धीरे-धीरे, भक्तों के मन में यह इच्छा बलवती होने लगी कि वे मंदिर के शिखर पर अपना निशान चढ़ाएं, अपनी भक्ति और समर्पण का प्रतीक फहराएं। यह इच्छा स्वाभाविक भी थी; जैसे किसी योद्धा के लिए अपनी विजय का ध्वज लहराना गर्व की बात होती है, वैसे ही श्याम भक्तों के लिए अपने आराध्य के धाम पर अपना निशान फहराना परम सौभाग्य और भक्ति का उच्चतम रूप था।
समय बीतता गया और श्याम भक्तों की संख्या में वृद्धि होती रही। हर कोई अपने-अपने गांव, अपने-अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मंदिर के शिखर पर अपना निशान चढ़ाना चाहता था। इस पवित्र इच्छा ने धीरे-धीरे एक प्रतिस्पर्धा का रूप ले लिया। भक्तों के जत्थे दूर-दूर से रंग-बिरंगे निशान लेकर आते और मंदिर के शिखर पर अपना ध्वज फहराने के लिए उत्सुक रहते। यह होड़ इतनी बढ़ गई कि कई बार मंदिर परिसर में भावनात्मक और वैचारिक मतभेद भी उत्पन्न होने लगे। मंदिर समिति और वरिष्ठ श्याम भक्तों के लिए यह एक गंभीर समस्या बन गई थी। सभी इस बात पर सहमत थे कि मंदिर का शिखर एक ही निशान से सुशोभित होना चाहिए, लेकिन यह तय करना मुश्किल हो रहा था कि यह सौभाग्य किसे प्राप्त होगा।
इस समस्या के समाधान के लिए एक दिन मंदिर परिसर में सभी प्रमुख श्याम भक्तों और विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रतिनिधियों की एक सभा बुलाई गई। लंबी चर्चा और विचार-विमर्श के बाद, एक सर्वसम्मत निर्णय लिया गया। यह निर्णय एक अद्भुत और दिव्य परीक्षा पर आधारित था। यह तय हुआ कि जिस श्याम भक्त में सच्ची भक्ति और बाबा श्याम की असीम कृपा होगी, वही इस परीक्षा में सफल होगा और उसी के क्षेत्र का निशान मंदिर के शिखर पर लहराएगा।
परीक्षा का स्वरूप भी बड़ा ही अनोखा रखा गया। मंदिर के गर्भगृह का मुख्य द्वार हमेशा बंद रहता था और उसे एक मजबूत ताले से सुरक्षित किया जाता था। यह निर्णय लिया गया कि जो भी श्याम भक्त अपनी मोरछड़ी (मोर के पंखों से बनी पवित्र छड़ी, जो श्याम भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है) से इस बंद ताले को खोल देगा, उसी का निशान मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाएगा। यह परीक्षा न केवल शारीरिक शक्ति की, बल्कि सच्ची श्रद्धा, अटूट विश्वास और बाबा श्याम की कृपा की परीक्षा थी।
इस घोषणा के बाद, पूरे क्षेत्र में उत्साह और उत्सुकता का माहौल छा गया। दूर-दूर से श्याम भक्त इस अद्भुत परीक्षा में भाग लेने के लिए खाटू नगरी की ओर चल पड़े। हर कोई अपने आप को भाग्यशाली मानता था और अपने आराध्य पर पूर्ण विश्वास रखता था। सूरजगढ़ से भी श्याम भक्तों का एक जत्था रवाना हुआ। इस जत्थे में एक सरल और निष्ठावान श्याम भक्त थे, जिनका नाम मंगलाराम था। मंगलाराम का हृदय बाबा श्याम के प्रति अटूट प्रेम और श्रद्धा से भरा हुआ था। वे किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा या अहंकार से दूर, केवल अपने आराध्य की सेवा और उनके नाम के गौरव के लिए इस यात्रा में शामिल हुए थे।
जब सभी श्याम भक्त खाटू नगरी पहुंचे, तो मंदिर परिसर भक्तों से खचाखच भरा हुआ था। हर कोई उस अद्भुत क्षण का साक्षी बनने के लिए उत्सुक था जब यह दिव्य परीक्षा आयोजित की जाएगी। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने एक मंच बनाया गया और मंदिर समिति के सदस्यों ने परीक्षा की प्रक्रिया सभी को विस्तार से समझाई।
एक-एक करके श्याम भक्त आगे आए और उन्होंने अपनी मोरछड़ी से मंदिर के बंद ताले को खोलने का प्रयास किया। कई शक्तिशाली और बलवान भक्तों ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी, लेकिन ताला टस से मस नहीं हुआ। कुछ भक्तों ने मंत्रों और प्रार्थनाओं का जाप करते हुए प्रयास किया, लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली। हर प्रयास के बाद भक्तों के चेहरे पर निराशा छा जाती थी, लेकिन उनकी आस्था कमजोर नहीं पड़ती थी।
अब मंगलाराम की बारी आई। वे धीरे-धीरे आगे बढ़े। उनके चेहरे पर किसी प्रकार का गर्व या अहंकार नहीं था, बल्कि एक शांत और स्थिर भाव था। उन्होंने अपनी मोरछड़ी को अपने हाथों में लिया और बाबा श्याम का स्मरण करते हुए, पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ ताले की ओर बढ़ाया। जैसे ही उनकी मोरछड़ी ने ताले को स्पर्श किया, एक अद्भुत घटना घटी। बिना किसी विशेष प्रयास के, वह मजबूत ताला अचानक से खुल गया!
यह देखकर पूरे मंदिर परिसर में आश्चर्य और खुशी की लहर दौड़ गई। सभी श्याम भक्त मंगलाराम की भक्ति और बाबा श्याम की कृपा को नमन करने लगे। यह स्पष्ट हो गया था कि बाबा श्याम ने अपनी असीम कृपा से मंगलाराम को इस परीक्षा में सफल बनाया था।
मंदिर समिति के सदस्यों ने तुरंत ही सूरजगढ़ से लाए गए निशान को सम्मानपूर्वक लिया और उसे मंदिर के शिखर पर फहरा दिया। वह निशान, सूरजगढ़ के श्याम भक्तों की अटूट श्रद्धा और मंगलाराम के समर्पण का प्रतीक बनकर आसमान में लहराने लगा। उस दिन से लेकर आज तक, यह परंपरा चली आ रही है। हर साल, सूरजगढ़ के श्याम भक्त पूरे भक्ति भाव से एक नया निशान लेकर खाटू नगरी जाते हैं और उसे मंदिर के शिखर पर चढ़ाते हैं। पुराना निशान सम्मानपूर्वक उतारा जाता है और उसे सूरजगढ़ वापस लाया जाता है, जहां उसे पवित्र मानकर रखा जाता है।
यह किंवदंती सूरजगढ़ और खाटू नगरी के बीच एक अटूट बंधन स्थापित करती है। यह कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती है और सूरजगढ़ के लोगों के हृदय में बाबा श्याम के प्रति गहरी आस्था और सम्मान को बनाए रखती है। सूरजगढ़ के लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि उनके कस्बे का निशान बाबा श्याम के मंदिर के शिखर पर लहराता है, जो न केवल उनके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि सच्ची भक्ति और समर्पण की शक्ति का भी प्रतीक है।
सूरजगढ़ में, हर साल निशान यात्रा बड़े ही धूमधाम से आयोजित की जाती है। भक्त रंग-बिरंगे वस्त्रों में सजते हैं, भजन-कीर्तन करते हुए खाटू नगरी की ओर पैदल यात्रा करते हैं। रास्ते भर, वे बाबा श्याम के भजनों को गाते हैं और उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। यह यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सामुदायिक एकता और आपसी प्रेम का भी प्रतीक है।
जब सूरजगढ़ के भक्त खाटू नगरी पहुंचते हैं, तो उनका भव्य स्वागत किया जाता है। मंदिर परिसर में एक विशेष समारोह आयोजित किया जाता है, जहां सूरजगढ़ के निशान को सम्मानपूर्वक मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है। इस अवसर पर हजारों भक्त एकत्रित होते हैं और बाबा श्याम के जयकारों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठता है।
सूरजगढ़ का निशान, मंदिर के शिखर पर लहराता हुआ, दूर से ही दिखाई देता है। यह उन लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो बाबा श्याम में अटूट विश्वास रखते हैं। यह निशान उन्हें याद दिलाता है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है और बाबा श्याम की कृपा हमेशा अपने भक्तों पर बनी रहती है।
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि भक्ति में किसी प्रकार का अहंकार या प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए। मंगलाराम ने निस्वार्थ भाव से बाबा श्याम की सेवा की और उनकी इसी निष्ठा ने उन्हें यह अद्वितीय सम्मान दिलाया। उनकी कहानी हमें यह संदेश देती है कि सच्ची भक्ति हृदय की गहराई से आती है और बाबा श्याम हमेशा अपने सच्चे भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं।
आज भी, सूरजगढ़ के लोग उस प्राचीन किंवदंती को बड़े सम्मान के साथ याद करते हैं। मंदिर के शिखर पर लहराता हुआ उनका निशान उनकी आस्था और गौरव का प्रतीक है। यह निशान हर साल उन्हें खाटू नगरी की यात्रा करने और बाबा श्याम के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए प्रेरित करता है।
सूरजगढ़ के निशान की कहानी सिर्फ एक किंवदंती नहीं है, यह श्रद्धा और समर्पण की एक अमर गाथा है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में अद्भुत शक्ति होती है और बाबा श्याम हमेशा अपने भक्तों का साथ देते हैं। सूरजगढ़ का यह निशान, युगों-युगों तक भक्तों को प्रेरित करता रहेगा और बाबा श्याम की महिमा का गुणगान करता रहेगा। यह निशान सूरजगढ़ के लोगों के हृदय में हमेशा एक विशेष स्थान रखेगा, जो उन्हें उनकी अटूट आस्था और गौरव की याद दिलाता रहेगा।