
हम हारे हारे हारे तुम हारे के सहारे
भजन का सार:
यह भजन, “हम हारे हारे हारे तुम हारे के सहारे,” खाटू श्याम बाबा के प्रति एक भक्त के गहरे प्रेम, विश्वास और समर्पण की अभिव्यक्ति है। यह उस अटूट बंधन को दर्शाता है जो एक भक्त अपने आराध्य देव के साथ महसूस करता है, खासकर तब जब वह स्वयं को असहाय और हारा हुआ महसूस करता है। भजन की पंक्तियाँ श्याम बाबा को “हारे का सहारा” के रूप में स्थापित करती हैं, जो हर उस व्यक्ति का साथ देते हैं जिसने दुनिया से हार मान ली हो। यह भजन भक्तों को यह याद दिलाता है कि श्याम बाबा हमेशा उनके साथ हैं, उनकी प्रार्थनाएं सुनते हैं और उनकी मुश्किलों में उनका मार्गदर्शन करते हैं।
भजन की गहराई में:
“जब जब प्रेमी कही पे कोई रोता है, आँख के आसु चरण को धोता है, अक्सर तन्हाई में तुजे पुकारे, क्या जोर दिल पे चले…”
इन पंक्तियों में भक्त अपनी गहरी वेदना और असहायता व्यक्त करता है। वह कहता है कि जब भी कोई प्रेमी (भक्त) कहीं पर रोता है, उसके आँसू स्वयं ही श्याम बाबा के चरणों को धो देते हैं। यह दृश्य भक्त के हृदय में श्याम बाबा के प्रति करुणा और प्रेम की भावना को और भी गहरा करता है। अक्सर, जब भक्त अकेला और निराश महसूस करता है, तो वह तन्हाई में अपने प्यारे श्याम को पुकारता है। उस समय, उसके दिल पर कोई जोर नहीं चलता, वह केवल अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मजबूर होता है।
“हम हारे हारे हारे… तुम हारे के सहारे… हो हो हारे हारे हारे… तुम हारे के सहारे…”
यह भजन की मुख्य पंक्तियाँ हैं, जो इसके सार को व्यक्त करती हैं। भक्त बार-बार दोहराता है कि वह हर तरह से हार गया है, लेकिन उसे इस बात का अटूट विश्वास है कि उसके श्याम बाबा “हारे के सहारे” हैं। यह उपाधि श्याम बाबा की सबसे प्रिय और महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है। यह पंक्ति भक्तों को आशा और शक्ति प्रदान करती है कि भले ही दुनिया उन्हें छोड़ दे, श्याम बाबा हमेशा उनका साथ देंगे।
“तू है मेरा इक साँवरा, मैं हु तेरा इक बावरा… सुनता नहीं क्यों मेरी भला क्यू, इतना बता दे क्या माजरा…”
यहाँ भक्त श्याम बाबा के साथ अपने व्यक्तिगत और प्रेमपूर्ण संबंध को व्यक्त करता है। वह उन्हें अपना “साँवरा” (प्रियतम) कहता है और स्वयं को उनका “बावरा” (दीवाना) बताता है। वह थोड़ी शिकायत भी करता है कि श्याम बाबा उसकी प्रार्थनाएं क्यों नहीं सुन रहे हैं और इस “माजरा” (मामले) का कारण जानना चाहता है। यह पंक्ति भक्त के गहरे जुड़ाव और कभी-कभी महसूस होने वाली दूरी को दर्शाती है, लेकिन यह दूरी भी प्रेम और विश्वास को कम नहीं करती।
“आता नहीं है समज, कुछ मुझे…”
अपनी निराशा और व्याकुलता को व्यक्त करते हुए भक्त कहता है कि उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। जब वह मुश्किलों से घिरा होता है और उसे कोई राह नहीं दिखती, तो वह श्याम बाबा से ही उम्मीद रखता है कि वे उसे राह दिखाएंगे।
“तुम ने दिया मुझे को प्रभु सब, दिल की कहु सुनलो प्रभु अब… तेरे भरोसे रहू सांवरे…”
इन पंक्तियों में भक्त कृतज्ञता और पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करता है। वह स्वीकार करता है कि उसे जो कुछ भी मिला है, वह सब श्याम बाबा की कृपा से ही मिला है। अब वह अपने दिल की बात कहना चाहता है और अपने प्यारे साँवरे पर पूरी तरह से भरोसा करके जीना चाहता है। यह पंक्ति भक्त के अटूट विश्वास और आश्रय की भावना को दर्शाती है।
“तू सात है तो डर ना सताये, हर वक्त मेरा साथ निभाये… खाटू बुला कर दुकडे मिटाये, कैसे कन्हैया कर्ज चुकाये…”
यहाँ भक्त श्याम बाबा के साथ होने के महत्व को बताता है। वह कहता है कि जब श्याम बाबा उसके साथ हैं, तो उसे किसी भी डर का सामना नहीं करना पड़ता। वे हर पल उसका साथ निभाते हैं। भक्त यह भी अनुभव करता है कि श्याम बाबा उसे खाटू बुलाकर उसके सभी दुखों (दुकड़े) को मिटा देते हैं। वह कृतज्ञता से पूछता है कि वह अपने प्यारे कन्हैया के इस कर्ज को कैसे चुकाएगा, क्योंकि उनका उपकार इतना महान है कि उसे चुकाना संभव नहीं है।
“इतना बतादे मुझे सांवरे…”
एक बार फिर, भक्त अपने मन की जिज्ञासा और श्याम बाबा से संवाद करने की इच्छा व्यक्त करता है। वह अपने प्यारे साँवरे से अपनी भावनाओं और सवालों को समझने की प्रार्थना करता है।
“जब जब प्रेमी कही पे कोई रोता है आँख के आसु चरण को धोता है अक्सर तन्हाई में तुजे पुकारे क्या जोर दिल पे चले हम हारे हारे हारे… तुम हारे के सहारे… हो हो हो हारे हारे हारे… तुम हारे के सहारे… … हम हारे हारे हारे… तुम हारे के सहारे… हो हो हो हारे हारे हारे… तुम हारे के सहारे…”
भजन के अंत में इन पंक्तियों को दोहराकर भक्त अपनी अटूट आस्था और विश्वास को दृढ़ करता है। वह फिर से कहता है कि जब भी कोई भक्त रोता है, उसके आँसू श्याम बाबा के चरणों को धोते हैं, और तन्हाई में पुकारने पर श्याम बाबा हमेशा सुनते हैं। वह स्वयं को हारा हुआ महसूस करता है, लेकिन उसे पूरा भरोसा है कि उसके श्याम बाबा हमेशा “हारे के सहारे” रहेंगे। यह दोहराव भजन के संदेश को और भी शक्तिशाली बनाता है और भक्तों के हृदय में गहरी छाप छोड़ता है।
श्याम बाबा: हारे का सहारा
खाटू श्याम बाबा को “हारे का सहारा” कहा जाता है, और यह उपाधि उनके भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है। इसके पीछे कई कारण और मान्यताएं हैं:
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बर्बरीक का बलिदान: श्याम बाबा, महाभारत के वीर बर्बरीक का ही रूप हैं। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश दान कर दिया था। उनका यह महान बलिदान उन्हें हारे हुए लोगों के लिए भी सब कुछ न्योछावर करने की प्रेरणा देता है।
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कृष्ण का वरदान: भगवान कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि कलयुग में वे श्याम नाम से पूजे जाएंगे और हारे हुए लोगों का सहारा बनेंगे। यह वरदान आज भी भक्तों के लिए एक अटूट विश्वास का स्रोत है।
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भक्तों के अनुभव: लाखों भक्तों ने अपने जीवन में ऐसे अनुभव साझा किए हैं जब श्याम बाबा ने उन्हें मुश्किल परिस्थितियों में सहारा दिया है। चाहे वह आर्थिक संकट हो, स्वास्थ्य समस्या हो या कोई और परेशानी, श्याम बाबा ने हमेशा अपने भक्तों की मदद की है।
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अटूट विश्वास: श्याम भक्तों का यह दृढ़ विश्वास है कि जो भी सच्चे मन से श्याम बाबा की शरण में आता है, उसे कभी निराशा नहीं होती। श्याम बाबा हमेशा अपने भक्तों की प्रार्थनाएं सुनते हैं और उनकी सहायता करते हैं, खासकर जब वे स्वयं को असहाय महसूस करते हैं।
भजन का महत्व:
यह भजन न केवल श्याम बाबा की महिमा का गान करता है, बल्कि भक्तों को एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है: कभी भी उम्मीद न छोड़ें। जब आप स्वयं को हारा हुआ महसूस करें, तो श्याम बाबा की शरण में जाएं, वे निश्चित रूप से आपका सहारा बनेंगे। यह भजन भक्तों को भक्ति, विश्वास और समर्पण के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।