
श्याम-पथिक: हृदय की यात्रा खाटू धाम
कोटा शहर की एक शांत गली में, एक छोटा सा घर था, जहाँ मुरलीधर अपनी पत्नी राधा और उनके दो बच्चों, कृष्णा और मोहिनी के साथ रहते थे। मुरलीधर, एक साधारण व्यवसायी थे, जिनका जीवन अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों और परिवार की खुशियों के इर्द-गिर्द घूमता था। लेकिन उनके हृदय में एक विशेष स्थान खाटू वाले श्याम बाबा के लिए था।
श्याम बाबा, मुरलीधर के लिए सिर्फ एक आराध्य नहीं थे, बल्कि एक अभिन्न अंग थे, उनकी हर साँस में बसे हुए। खाटू जाने की कल्पना ही उनके चेहरे पर एक अद्भुत चमक ला देती थी। वह हर पल उस पवित्र यात्रा की तैयारी में जुटा रहता था, मानो कोई प्रेमी अपनी प्रियतमा से मिलने के लिए आतुर हो।
मुरलीधर का दिन श्याम बाबा के नाम से ही शुरू होता था और उसी नाम पर समाप्त होता था। दिन में सौ-सौ बार उनके मुख से “जय श्री श्याम” निकलता था, जैसे यह कोई साधारण अभिवादन न होकर, उनके हृदय की गहरी पुकार हो। उनके घर का वातावरण भी श्याममय था। दीवारों पर बाबा के सुंदर चित्र लगे रहते थे, और हर शाम आरती के समय पूरा परिवार मिलकर उनके भजन गाता था।
मुरलीधर अपने दोस्तों और पड़ोसियों से हमेशा सांवरे की बातें करते थे। वह उनकी महिमा, उनकी लीलाओं और उनके भक्तों पर उनकी कृपा की कहानियाँ सुनाते थे। उनकी बातों में इतना प्रेम और विश्वास होता था कि सुनने वाले भी भावविभोर हो जाते थे। उन्हें लगता था जैसे मुरलीधर स्वयं बाबा के परमधाम से लौटकर उनकी महिमा का बखान कर रहे हों।
खाटू जाने की तैयारी मुरलीधर के लिए सिर्फ सामान बाँधना नहीं था, बल्कि एक आंतरिक प्रक्रिया थी। वह अपने मन को शुद्ध करते थे, अपने विचारों को एकाग्र करते थे, और अपने हृदय को प्रेम और भक्ति से भर लेते थे। उन्हें लगता था कि बाबा के दरबार में जाने से पहले, उन्हें हर तरह की नकारात्मकता से मुक्त होना होगा।
किलोमीटर की गिनती तो मुरलीधर कभी करते ही नहीं थे। खाटू उनके लिए कोई दूर का स्थान नहीं था, बल्कि एक ऐसा तीर्थ था जहाँ उनका हृदय हमेशा खिंचा चला जाता था। चाहे गर्मी हो या सर्दी, धूप हो या बारिश, मुरलीधर के कदम कभी नहीं रुकते थे।
तूफान और आँधियाँ भी उनके रास्ते में बाधा नहीं बन सकती थीं, क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य बाबा के चरणों में पहुँचना होता था। हृदय की यात्रा खाटू धाम ।
जिन्हें दीखता ही बस बाबा श्याम हो, उन्हें परवाह नहीं किसी बात की। मुरलीधर उन भक्तों में से एक थे जिनकी आँखों में हर पल सिर्फ श्याम बाबा का ही रूप बसा रहता था। उन्हें दुनिया की किसी भी भौतिक वस्तु या परेशानी की परवाह नहीं थी। उनका मन हमेशा बाबा के प्रेम में डूबा रहता था।
कभी सुबह जपता, कभी शाम जपता, माला जपे तेरे नाम की। मुरलीधर हर पल बाबा के नाम का जाप करते रहते थे। सुबह उठते ही उनकी माला शुरू हो जाती थी, और रात को सोते समय तक चलती रहती थी। उन्हें लगता था कि बाबा का नाम जपना ही उनके जीवन का सार है, उनकी हर समस्या का समाधान है।
इस वर्ष, खाटू जाने की तैयारी कुछ खास थी। मुरलीधर ने अपने बच्चों, कृष्णा और मोहिनी को भी साथ ले जाने का फैसला किया था। वह चाहते थे कि उनके बच्चे भी बाबा के दर्शन करें और उनके प्रेम और भक्ति के रंग में रंग जाएँ। राधा भी इस यात्रा के लिए बहुत उत्साहित थीं।
यात्रा की सुबह, मुरलीधर का घर उत्साह और उमंग से भरा हुआ था। बच्चे नए कपड़ों में सजे हुए थे और उनके चेहरे खुशी से चमक रहे थे। राधा ने सबके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया था और मुरलीधर ने यात्रा के लिए सभी आवश्यक सामान पैक कर लिया था।
जब वे बस स्टैंड पर पहुँचे, तो वहाँ खाटू जाने वाले भक्तों की भारी भीड़ थी। हर कोई “जय श्री श्याम” का जयकारा लगा रहा था। इस भक्तिमय वातावरण में मुरलीधर का हृदय और भी ज़्यादा उमंग से भर गया। उन्हें लग रहा था जैसे वे किसी दिव्य यात्रा पर जा रहे हों।
बस में बैठकर, मुरलीधर ने अपने बच्चों को श्याम बाबा की कहानियाँ सुनाईं। उन्होंने बताया कि कैसे बाबा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। बच्चे बड़ी ध्यान से अपने पिता की बातें सुन रहे थे और उनके मन में भी बाबा के प्रति श्रद्धा का भाव जाग रहा था।
लंबी यात्रा के बाद, जब वे खाटू पहुँचे, तो मुरलीधर का हृदय खुशी से भर गया। खाटू नगरी श्याम बाबा के प्रेम और भक्ति के रंग में रंगी हुई थी। हर तरफ भक्तों की भीड़ थी, जो बाबा के दर्शन के लिए आतुर थी।
मुरलीधर ने अपने परिवार के साथ धीरे-धीरे मंदिर की ओर बढ़ना शुरू किया। रास्ते में उन्हें अनेक ऐसे भक्त मिले जो कई किलोमीटर पैदल चलकर बाबा के दर्शन के लिए आए थे। उनकी श्रद्धा और त्याग देखकर मुरलीधर की आँखों में आँसू आ गए।
जब वे मंदिर के गर्भगृह में पहुँचे और श्याम बाबा की मनमोहक मूर्ति के दर्शन किए, तो मुरलीधर का हृदय कृतज्ञता से भर गया। उन्हें लगा जैसे उनकी सारी थकान और परेशानियाँ पल भर में दूर हो गईं। उनके बच्चे भी बाबा के सुंदर रूप को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। श्याम-पथिक: हृदय की यात्रा खाटू धाम ।
मुरलीधर ने बाबा के चरणों में बैठकर अपनी प्रार्थनाएँ अर्पित कीं। उन्होंने अपने परिवार की खुशियों और समृद्धि की कामना की। उन्हें विश्वास था कि बाबा उनकी ज़रूर सुनेंगे।
मंदिर परिसर में, मुरलीधर ने अनेक ऐसे भक्तों से मुलाकात की जिनकी ज़िंदगी में श्याम बाबा ने चमत्कार किए थे। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई और बताया कि कैसे बाबा ने मुश्किल वक़्त में उनका साथ दिया था। इन कहानियों को सुनकर मुरलीधर का विश्वास और भी दृढ़ हो गया।
खाटू में कुछ दिन बिताने के बाद, मुरलीधर का परिवार वापस कोटा लौट आया। इस यात्रा ने उनके जीवन पर एक गहरा प्रभाव डाला था। बच्चे अब नियमित रूप से श्याम बाबा के भजन गाते थे और राधा का विश्वास भी पहले से ज़्यादा मजबूत हो गया था।
कोटा लौटने के बाद भी मुरलीधर का श्याम प्रेम कम नहीं हुआ। वह आज भी हर पल बाबा के ध्यान में लीन रहते थे और खाटू जाने की तैयारी में जुटे रहते थे। उनके लिए खाटू सिर्फ एक स्थान नहीं था, बल्कि उनके हृदय का एक हिस्सा था, जहाँ उनकी आत्मा को शांति मिलती थी।
एक दिन, मुरलीधर अपने घर के आँगन में बैठे हुए थे और श्याम बाबा के भजन गा रहे थे। तभी उनका एक पुराना मित्र उनसे मिलने आया। उसने मुरलीधर को देखकर कहा, “मुरलीधर, तुम हमेशा खाटू जाने के लिए इतने उत्साहित क्यों रहते हो? वहाँ ऐसा क्या है जो तुम्हें इतना आकर्षित करता है?”
मुरलीधर ने मुस्कुराते हुए कहा, “मित्र, खाटू मेरे लिए सिर्फ एक तीर्थ नहीं है, बल्कि मेरे जीवन का आधार है। वहाँ मुझे शांति मिलती है, शक्ति मिलती है और सबसे बढ़कर, मेरे प्यारे श्याम बाबा के दर्शन मिलते हैं। उनके प्रेम और आशीर्वाद से ही मेरा जीवन चल रहा है।”
उनके मित्र ने उनकी आँखों में झाँककर देखा तो उन्हें मुरलीधर के गहरे विश्वास और प्रेम का एहसास हुआ। वह समझ गया कि खाटू मुरलीधर के लिए सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि उनके हृदय की एक अनवरत साधना है।
मुरलीधर का जीवन श्याम बाबा के प्रेम और भक्ति से ओतप्रोत था। उनका हर पल बाबा के नाम समर्पित था, और खाटू की यात्रा उनके लिए एक ऐसी तीर्थयात्रा थी जो उनके हृदय को हर बार नई ऊर्जा और प्रेरणा से भर देती थी।
वे एक सच्चे श्याम-पथिक थे, जिनका हर कदम बाबा के धाम की ओर ही उठता था, और जिनकी हर साँस में “जय श्री श्याम” का मधुर गान गूँजता रहता था। उनका प्रेम और विश्वास इतना अटूट था कि उन्हें किसी और बात की परवाह ही नहीं थी, क्योंकि उनकी दुनिया तो बस उनके प्यारे सांवरे श्याम में ही समाई हुई थी।