
श्याम नाम की पगली: अटूट प्रेम और आस्था की कहानी
अध्याय 1: कोलकाता में एक प्रेम कहानी का दुखद अंत
कोलकाता शहर, अपनी जीवंतता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है, लेकिन इसी शहर में कामदेव और सुंदरी सती नामक एक दंपति रहते थे, जिनकी प्रेम कहानी दुर्भाग्य की काली छाया से घिर गई थी। कामदेव, एक धनी सेठ, अपनी पत्नी सुंदरी सती की सुंदरता और भक्ति के लिए जाने जाते थे। सुंदरी सती एक सच्ची नारी थीं, जिनका हृदय अपने पति के लिए अटूट प्रेम और समर्पण से भरा था।
दुर्भाग्यवश, कामदेव बुरी संगत में पड़ गए और वेश्यावृत्ति के जाल में फंसकर अपनी सारी संपत्ति लुटा बैठे। भोग-विलास में अंधे होकर, उन्होंने न केवल अपनी दौलत गँवाई, बल्कि एक भयानक बीमारी, कोढ़ का भी शिकार हो गए। जिस वैभवशाली जीवन के वे कभी स्वामी थे, वह अब एक भिखारी और कोढ़ी के दुखद अस्तित्व में बदल गया था।
जिस वेश्या के लिए कामदेव ने अपना सब कुछ त्याग दिया था, उसने भी उनसे किनारा कर लिया। उसने कामदेव को दुत्कारते हुए कहा, “अब तुम यहां मत आना। यह भिखारियों और कोढ़ियों का ठिकाना है, तुम्हारे जैसे रोगी के लिए नहीं।”
सुंदरी सती का पति, जिसके लिए उसने सपने देखे थे, जिसके साथ उसने जीवन बिताने की कसमें खाई थीं, अब बदनाम और बीमार हो गया था। कोलकाता की गलियों में उसकी बदनामी के चर्चे आम थे। सुंदरी सती का हृदय अपने पति की इस दुर्दशा को देखकर पीड़ा से भर उठा।
अध्याय 2: पटना में एक आशा की किरण
कोलकाता में निराशा और अपमान का जीवन बिता रही सुंदरी सती को एक दिन एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसने उसकी जिंदगी बदल दी। यह व्यक्ति श्री श्याम जी का एक निष्ठावान भक्त था। उसने सुंदरी सती की व्यथा सुनी और उसे सलाह दी, “बहन, यदि तुम अपनी बिगड़ी किस्मत को बनाना चाहती हो, तो फाल्गुन के महीने में एक बार खाटू नगरी जरूर जाओ। बाबा श्याम हारे हुए का सहारा हैं, वे तुम्हारी हर मुश्किल आसान कर देंगे।”
पटना के उस अनजान भक्त के शब्दों में सुंदरी सती को एक नई उम्मीद की किरण दिखाई दी। उसने उस भक्त की बातों पर विश्वास किया और खाटू जाने का निश्चय कर लिया। उसके पास अपने पति के इलाज और यात्रा के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन उसका अटूट विश्वास उसे रास्ता दिखा रहा था।
अध्याय 3: गया के रास्ते में एक परीक्षा
फाल्गुन का महीना आया और सुंदरी सती ने अपना मंगलसूत्र बेच दिया। उस थोड़े से धन से, वह अपने कोढ़ी पति को लेकर खाटू नगरी की ओर चल पड़ी। रास्ते में, गया के पास, उनकी मुलाकात एक पापी व्यक्ति से हुई। उस दुष्ट की नजर सुंदरी सती पर पड़ गई। उसने सुंदरी सती से कहा, “ओ रानी, इस कोढ़ी को छोड़ दो और मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें सुख और वैभव दूंगा।”
सुंदरी सती उस पापी की बात सुनकर क्रोधित हो उठीं। अपने पति के प्रति उनके प्रेम और समर्पण की गहराई उस दुष्ट की वासना भरी बातों से कहीं अधिक थी। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “तुम चाहो तो इनका कोढ़ ले लो, लेकिन पराई स्त्री पर बुरी नजर डालने का यही अंजाम होता है।” उस पापी की हिम्मत सुंदरी सती के तेज और पवित्रता के सामने टूट गई और वह शर्मिंदा होकर वहां से चला गया।
अध्याय 4: वाराणसी में त्याग और समर्पण
रिंग्स पहुँचकर, सुंदरी सती और उनके पति भूखे थे। उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। सुंदरी सती ने अपने पति को खिलाने के लिए खुद भूखे रहने का फैसला किया। उन्होंने एक भिखारी से थोड़ा अनाज खरीदा और अपने पति को दिया।
पैसे खत्म हो चुके थे और कोई काम नहीं मिल रहा था। सुंदरी सती ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक बांस खरीदा और उसे काटकर छोटा-छोटा किया। फिर, अपनी साड़ी का पल्ला फाड़कर उन्होंने उन बांस के टुकड़ों पर निशान बनाए। उनके पास रंग खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। उन्होंने आसपास के लोगों से थोड़ी सी रंग उधार मांगने की कोशिश की, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की।
अंत में, सुंदरी सती ने अपनी उंगली काटी और अपने खून से उन निशानों को रंग दिया। हर निशान पर उन्होंने अपने खून से “श्याम” नाम लिखा। वाराणसी के घाटों पर, एक पत्नी का अपने पति के लिए ऐसा त्याग और समर्पण देखकर लोग हैरान रह गए।
अध्याय 5: प्रयागराज में भक्तों की चर्चा
जब श्री श्याम के भक्तों ने उस पगली को देखा जो अपने खून से श्याम नाम लिख रही थी और एक कोढ़ी को खाटू की ओर ले जा रही थी, तो प्रयागराज में यह खबर आग की तरह फैल गई। हर कोई उस अद्भुत प्रेम और अटूट आस्था की चर्चा कर रहा था। लोग कह रहे थे, “देखो, एक पगली अपने पति के लिए क्या कर रही है! श्री श्याम के प्रति उसका प्रेम कितना गहरा है!”
भक्तों के बीच यह चर्चा आम हो गई कि जो भी खाटू जाता है, बाबा श्याम उसके काम बना देते हैं। सुंदरी सती की कहानी उनकी आस्था को और मजबूत कर रही थी।
अध्याय 6: अयोध्या के रास्ते में एक दिव्य सहायता
चलते-चलते सुंदरी सती थककर चूर हो गई। भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह रास्ते में गिर पड़ी। उस घुप अंधेरी रात में, जब कोई सहारा नहीं दिख रहा था, अचानक वहां एक बालक प्रकट हुआ। वह बालक और कोई नहीं, तीनों लोकों के पालक, श्री कृष्ण स्वयं थे।
पगली ने उस बालक से उसका नाम पूछा। बालक ने अपना नाम गोपाल बताया। उस दयालु बालक ने पगली को उठाया, उसे गोद में बिठाकर पानी पिलाया और श्री खाटू धाम जाने का रास्ता बताया। इतना ही नहीं, वह बालक मंदिर तक उसके साथ-साथ आया।
सुंदरी सती उस बालक को एक साधारण बच्चा समझ रही थी, लेकिन वास्तव में श्री कृष्ण ने उसकी रक्षा की थी। अयोध्या के रास्ते में, उस दिव्य बालक ने उसकी हर मुश्किल को आसान कर दिया।
अध्याय 7: खाटू धाम में एक चमत्कार
जब वे खाटू धाम पहुँचे, तो मंदिर के द्वार बंद थे। फाल्गुन की वह रात बड़ी अस्त-व्यस्त थी और भक्तों की भीड़ कीर्तन में मस्त थी। सुंदरी सती निराश नहीं हुई। वह द्वार पर अपना सिर पटक-पटक कर रोने लगी और बाबा श्याम से प्रार्थना करने लगी।
उसी समय, मंदिर के अंदर भक्त श्री श्याम जी को रंग लगा रहे थे। अचानक, सुंदरी सती के खून से रंगे निशान से मंदिर का दरबारी लाल हो गया। पगली बेहोश होकर गिर पड़ी। मजबूर होकर उसने कहा, “अब खेलो श्याम होली! रंग दूंगी तुझको खून से, क्यों श्याम सो गया?”
उसकी पुकार सुनकर, मंदिर में अद्भुत हलचल हुई। भक्तों को समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। सुंदरी सती व्याकुल होकर बाबा श्याम को पुकार रही थी, “कब आओगे, कब आओगे, अब आओगे? लाज मेरी लुट जाएगी, क्या तब आओगे? देर ना हो जाए कभी, देर ना हो जाए।”
उसी क्षण, आसमान में घटाएं छा गईं, बादल गरजने लगे और चारों दिशाओं में आंधी और तूफान आने लगा। मंदिर के द्वार पर एक हिनहिनाता हुआ घोड़ा आकर खड़ा हो गया। देखते ही देखते, मंदिर के ताले टूट पड़े और श्री श्याम स्वयं प्रकट हो गए।
अध्याय 8: मथुरा में प्रेम और चमत्कार का संगम
मथुरा नगरी, जो कभी भगवान कृष्ण की लीलाओं से गुंजायमान रहती थी, एक बार फिर प्रेम और अद्भुत चमत्कारों की साक्षी बन रही थी। इस अध्याय में, हम एक ऐसे ही अलौकिक दृश्य का वर्णन करते हैं जहाँ भक्ति की शक्ति और दिव्य कृपा का अद्भुत संगम हुआ।
एक दीन-हीन पगली, जिसके शरीर से बहता खून कभी लाल हुआ करता था, अब केसरिया रंग में परिवर्तित हो गया था। यह परिवर्तन किसी साधारण घटना का परिणाम नहीं था, बल्कि यह उस अटूट श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक था जो उसने श्री श्याम के चरणों में अर्पित किया था। केवल इतना ही नहीं, उस पगली का कोढ़ी पति, जिसे समाज ने त्याग दिया था और जिसका शरीर घृणास्पद हो गया था, अचानक स्वस्थ और सुंदर हो गया। उसका कायाकल्प इतना अद्भुत था कि वह फिर से कामदेव के समान आकर्षक और तेजस्वी दिखने लगा। यह चमत्कार देखकर हर कोई आश्चर्यचकित था, और लोगों के मन में श्री श्याम के प्रति श्रद्धा और भी गहरी हो गई।
इसी बीच, मंदिर में एक जानी-पहचानी वेश्या हाँफती हुई दौड़ी आई। यह वही स्त्री थी जिसने कभी अपने सौंदर्य के अहंकार में मदमस्त होकर स्वयं कामदेव को भी ठुकरा दिया था। अब, उस अहंकार का स्थान पश्चाताप और ग्लानि ने ले लिया था। उसने अपनी सारी ठगी हुई दौलत, जो उसने छल और कपट से अर्जित की थी, वापस श्री श्याम के चरणों में चढ़ा दी। उसकी आँखों में आँसू थे और वह सुंदरी सती के पैरों पर गिरकर अपनी पिछली करतूतों के लिए क्षमा मांगने लगी। उसके हृदय में सच्ची पश्चाताप की अग्नि जल रही थी, और वह जान चुकी थी कि सच्चा सौंदर्य और धन तो भक्ति और सत्य में ही निहित है।
तभी, एक अद्भुत दृश्य उपस्थित हुआ। एक दाढ़ी-मूछों वाले दिव्य पुरुष, जिनकी आभा तेजपूर्ण थी, प्रकट हुए। उन्होंने उस पगली को बड़े स्नेह से उठाया और अपने दिव्य हाथों से उसके माथे पर हाथ फेरा। उनके स्पर्श मात्र से पगली के शरीर पर मौजूद सारे घाव पल भर में मिट गए, जैसे कभी थे ही नहीं। जब पगली ने अपनी आँखें खोलीं, तो उसने अपने सामने स्वयं श्री श्याम को पाया। उनकी दिव्य मुस्कान और करुणा भरी दृष्टि ने पगली के हृदय को शांति और कृतज्ञता से भर दिया। श्री श्याम ने न केवल उसके शारीरिक कष्टों को दूर किया था, बल्कि उन्होंने उसके दुर्भाग्य की रेखा को भी बदल दिया था, उसे एक नया और सम्मानजनक जीवन प्रदान किया था। यह घटना मथुरा में प्रेम, भक्ति और श्री श्याम की असीम कृपा का एक अविस्मरणीय संगम बन गई, जिसने सभी को यह सिखाया कि सच्ची श्रद्धा और पश्चाताप से हर असंभव संभव हो सकता है।
और उस दिन से, मथुरा की गलियों में श्री श्याम के प्रेम और चमत्कार की कहानियाँ और भी तेज़ी से फैलने लगीं। लोग उस पगली और उसके पति के अद्भुत कायाकल्प की चर्चा करते नहीं थकते थे। यह घटना इस बात का जीवंत प्रमाण थी कि सच्ची भक्ति में कितनी शक्ति होती है और श्री श्याम अपने भक्तों की लाज किस प्रकार रखते हैं।
वह वेश्या, जिसने कभी अहंकार में चूर होकर सबको तुच्छ समझा था, अब एक विनम्र और सेवाभावी स्त्री बन गई थी। उसने अपना शेष जीवन मंदिर की सेवा में और जरूरतमंदों की मदद करने में बिताया। सुंदरी सती ने भी उसे क्षमा कर दिया और उसे अपनी सखी के रूप में स्वीकार किया। यह प्रेम और क्षमा का एक अद्भुत उदाहरण था, जिसने मथुरा के लोगों के दिलों को और भी कोमल बना दिया।
श्री श्याम के उस दिव्य रूप की चर्चा भी हर मुख पर थी। लोगों ने महसूस किया कि वे केवल एक मूर्ति या चित्र नहीं हैं, बल्कि एक जीवंत शक्ति हैं जो अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं और उनकी सहायता के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। उस दाढ़ी-मूछ वाले दिव्य पुरुष के रूप में श्री श्याम का आना यह दर्शाता था कि वे अपने भक्तों के बीच ही रहते हैं और उनकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
मथुरा का वातावरण भक्ति और प्रेम से सराबोर हो गया था। हर तरफ श्री श्याम के भजन गूंजते थे और लोग उनके चमत्कारों की गाथाएं गाते थे। यह अध्याय मथुरा में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक था, जहाँ प्रेम, करुणा और भक्ति का बोलबाला था और जहाँ श्री श्याम की कृपा हर पल महसूस की जा सकती थी। यह संगम, प्रेम और चमत्कार का, मथुरा की धरती पर हमेशा के लिए अमर हो गया।
और समय बीतता गया, मथुरा नगरी श्री श्याम के प्रेम रंग में और भी गहरी रंगती चली गई। उस पगली और उसके स्वस्थ पति की प्रेम कहानी घर-घर में सुनाई जाती थी, जो इस बात का प्रतीक बन गई थी कि सच्चा प्रेम और भक्ति हर बाधा को पार कर सकती है। लोगों ने समझा कि बाहरी सौंदर्य क्षणभंगुर है, जबकि आंतरिक प्रेम और श्रद्धा ही स्थायी सुख और सम्मान दिलाते हैं।
वह पूर्व वेश्या, अब संत स्वभाव की, मथुरा के मंदिरों और गरीब बस्तियों में घूम-घूम कर सेवा करती थी। उसकी वाणी में अब अहंकार नहीं, बल्कि करुणा और ज्ञान का प्रकाश था। उसने अपने अनुभवों से लोगों को सिखाया कि धन और रूप का अभिमान व्यर्थ है और सच्ची शांति तो ईश्वर के चरणों में ही मिलती है। उसकी कथाएं पश्चाताप और परिवर्तन की शक्ति का जीवंत उदाहरण थीं, जिसने अनेक भटकते हुए लोगों को सही मार्ग दिखाया।
श्री श्याम के उस दिव्य रूप, दाढ़ी-मूछों वाले पुरुष, की स्मृति मथुरा के लोगों के दिलों में हमेशा ताज़ा रही। कई बुजुर्ग बताते थे कि उन्होंने भी कभी संकट के समय ऐसे ही एक दिव्य पुरुष को अपनी सहायता के लिए आते देखा था। यह विश्वास और गहरा होता गया कि श्री श्याम अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं, बस हृदय में सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए।
मथुरा अब केवल भगवान कृष्ण की जन्मभूमि ही नहीं रही, बल्कि श्री श्याम के चमत्कारों की भूमि के रूप में भी पहचानी जाने लगी। दूर-दूर से भक्त इस पवित्र नगरी में आते थे, उस पगली, उसके पति और उस पश्चातापी वेश्या की कहानियाँ सुनते थे और अपने जीवन में भी श्री श्याम की कृपा का अनुभव करने की कामना करते थे। मंदिरों में भक्तों की भीड़ हमेशा लगी रहती थी, जहाँ प्रेम और भक्ति के अटूट बंधन बंधे होते थे।
हर वर्ष, मथुरा में एक विशेष उत्सव मनाया जाता था, जहाँ उस अद्भुत संगम को याद किया जाता था – प्रेम का, चमत्कार का और श्री श्याम की असीम करुणा का। इस उत्सव में लोग मिलकर भजन गाते थे, कहानियाँ सुनाते थे और एक-दूसरे के साथ उस दिव्य प्रेम को साझा करते थे जिसने कभी एक पगली और एक कोढ़ी को नया जीवन दिया था और एक अहंकारी वेश्या को संत बना दिया था। यह उत्सव मथुरा के लोगों के दिलों में श्री श्याम के प्रति अटूट विश्वास और प्रेम की नींव को और भी मजबूत करता चला गया।
मथुरा की गलियों में रमेश भगत यह कहानी गाता है और संजय इसे सुनाता है कि खाटू में श्री श्याम जी का सच्चा धाम है। जो भी सच्चे मन से वहां जाता है, बाबा श्याम उसके सारे काम बना देते हैं। श्याम नाम की उस पगली का अटूट प्रेम और आस्था युगों-युगों तक लोगों को प्रेरित करती रहेगी। जय श्री श्याम!