
श्याम की छाया: एक अटूट बंधन की कहानी
सूरज की पहली किरणें अरावली की पहाड़ियों पर सुनहरी चादर बिछा रही थीं, और छोटी सी नगरी खाटू अपने आराध्य, बाबा श्याम के जयकारों से गूंज रही थी। हवा में धूप और अगरबत्ती की मिली-जुली सुगंध तैर रही थी, जो हर आने वाले भक्त के मन में एक पवित्र भाव जगा रही थी। इसी नगरी में, एक साधारण सा युवक, माधव, अपने छोटे से कमरे में उदास बैठा था।
माधव के जीवन में कठिनाइयों का अम्बार लगा हुआ था। कुछ साल पहले, एक सड़क दुर्घटना में उसने अपने माता-पिता को खो दिया था। अकेला और बेसहारा, माधव ने शहर में कई काम किए, पर कहीं भी उसका मन नहीं लगा। हर तरफ उसे एक खालीपन महसूस होता था, जैसे किसी अपने के चले जाने से घर सूना हो जाता है। उसके मन में अक्सर यह ख्याल आता था, “मतलब की इस दुनिया से मुझको नफरत है…”
एक शाम, जब वह उदास मन से अपने कमरे में बैठा था, तो उसे अपनी माँ की पुरानी डायरी मिली। पन्नों को पलटते हुए, उसकी नजर एक भजन पर ठहर गई:
“ओ सँवारे मुझे तेरी जरुरत है…”
इन पंक्तियों में उसे एक अजीब सी शांति मिली। उसने कभी श्याम बाबा के बारे में उतना नहीं सुना था, पर माँ की लिखी इन पंक्तियों में उसे एक आस दिखाई दी। माँ हमेशा कहती थी कि जब सब दरवाजे बंद हो जाएं, तो खाटू वाले का दरवाजा हमेशा खुला रहता है।
अगले दिन, माधव ने खाटू जाने का निश्चय किया। जेब में थोड़े से पैसे और मन में एक अनजानी उम्मीद लिए, वह बस में सवार हो गया। रींगस पहुंचकर, उसने खाटू तक का पैदल रास्ता तय करने का फैसला किया। रास्ते भर वह माँ के लिखे भजन गुनगुनाता रहा। हर कदम के साथ, उसके मन का बोझ थोड़ा हल्का होता गया।
जब वह खाटू नगरी में पहुंचा, तो भक्तों की भीड़ देखकर वह हैरान रह गया। हर कोई अपनी अर्जी लेकर बाबा के दरबार में आया था। उसने भी लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार किया। जैसे-जैसे वह मंदिर के करीब पहुंच रहा था, उसके दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं।
और फिर, वह क्षण आया जब उसने बाबा श्याम के दिव्य दर्शन किए। उनकी नीली आँखें, उनका शांत और करुणामय चेहरा देखकर माधव के सारे दुख काफूर हो गए। उसे ऐसा लगा जैसे कोई अपना, कोई बहुत प्यारा उससे मिलकर उसे ढांढस बंधा रहा हो।
मंदिर में बैठकर उसने माँ के लिखे भजन गाए। उसकी आवाज में दर्द भी था और एक गहरी आस्था भी। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे बाबा उसकी पुकार सुन रहे हों, उसकी हर तकलीफ को समझ रहे हों।
“जैसे जैसे काम किये तूने मेरे बाबा मैं ही तो बस जानू ये, तेरे सिवा दुनिया में कोई न हमारा मैं ही तो बस जानू ये…”
उस दिन के बाद, माधव का जीवन पूरी तरह से बदल गया। उसे खाटू में ही एक छोटी सी नौकरी मिल गई। धीरे-धीरे, उसने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू कर दिया। उसे अब अकेलापन महसूस नहीं होता था, क्योंकि उसे पता था कि बाबा श्याम हमेशा उसके साथ हैं। श्याम की छाया: एक अटूट बंधन की कहानी ।
एक बार, माधव को अपने काम के सिलसिले में रींगस जाना पड़ा। उसने सोचा, क्यों न बाबा के दरबार में निशान लेकर जाया जाए? उसने अपनी कमाई से एक सुंदर निशान खरीदा और रींगस से खाटू तक पैदल यात्रा की। रास्ते भर वह भक्तों के साथ “जय श्री श्याम” के जयकारे लगाता रहा। उस दिन उसे वह शक्ति और शांति मिली जो उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी।
“रींगस से खाटू जो निशान लेके आया किस्मत जगा दी तूने, निर्बल को बल मिला निर्धन को धन मिला बिगड़ी बना दी तूने…”
समय बीतता गया। माधव अब खाटू का ही निवासी बन गया था। उसने मंदिर के पास ही एक छोटा सा घर बना लिया था और हर रोज बाबा के दर्शन के लिए जाता था। उसने देखा था कि कैसे बाबा श्याम हर हारे हुए का सहारा बनते हैं, कैसे वे निर्बलों को बल और निर्धनों को धन देते हैं। उसने खुद भी अपने जीवन में बाबा की कृपा को महसूस किया था।
“तुहि मेरी पूंजी बाबा तू ही मेरी दौलत है, ओ सँवारे मुझे तेरी जरुरत है…”
एक दिन, माधव ने मंदिर के बाहर एक बूढ़े और बीमार आदमी को देखा। वह बहुत कमजोर लग रहा था और मदद के लिए आस भरी नज़रों से देख रहा था। माधव तुरंत उसके पास गया और उसे सहारा देकर मंदिर के धर्मशाला में ले आया। उसने उस बूढ़े आदमी की सेवा की, उसे खाना खिलाया और उसकी देखभाल की। धीरे-धीरे, वह बूढ़ा आदमी स्वस्थ हो गया।
जब वह जाने लगा, तो उसने माधव को आशीर्वाद देते हुए कहा, “बेटा, तू सच में श्याम का रूप है। जिस तरह श्याम हारे का सहारा बनते हैं, तूने भी मेरी मदद की।”
उस दिन माधव को यह एहसास हुआ कि बाबा की भक्ति सिर्फ मंदिर में जाकर पूजा करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दूसरों की मदद करने और उनके दुख में साथ देने में भी है।
एक बार, खाटू में भारी बारिश हुई और बाढ़ जैसे हालात बन गए। कई गरीब लोगों के घर तबाह हो गए थे। माधव ने तुरंत आगे बढ़कर लोगों की मदद की। उसने अपने साथियों के साथ मिलकर पीड़ितों के लिए भोजन और आश्रय का इंतजाम किया। उसने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किया कि किसी को कोई परेशानी न हो।
लोगों ने देखा कि कैसे माधव बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद कर रहा है। उन्हें उसमें बाबा श्याम की करुणा और सेवा भाव दिखाई दिया।
“हारे का सहरा कहलाता सांवरिया मुझको सहारा देदो, नैया मेरी बाबा डूबने लगी है इसको किनारा देदो…”
माधव का विश्वास बाबा श्याम में और भी गहरा होता गया। उसे यह समझ आ गया था कि यह पूरी दुनिया बाबा की ही माया है और उनकी ही हुकूमत हर जगह चलती है।
“क्यों सारी दुनिया में चलती बाबा तेरी हकूमत है, ओ सँवारे मुझे तेरी जरुरत है…”
माधव अब अपना सारा समय बाबा की सेवा और उनके भक्तों की मदद में बिताता था। वह हर पल बाबा का नाम जपता था और यही उसकी जिंदगी का मकसद बन गया था। उसने कई भजन भी लिखे, जिनमें वह बाबा के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता था।
“हर घडी हर पल नाम जपु ऐसी किरपा करदो, गाये भजन मित्तल होक दीवाना झोली मेरी भर दो…”
एक दिन, मशहूर भजन गायक पंडित मित्तल खाटू आए। माधव को उनके भजन बहुत पसंद थे। उसने हिम्मत करके पंडित जी से मुलाकात की और उन्हें अपने लिखे कुछ भजन सुनाए। पंडित जी माधव के भजनों में भक्ति और सच्चाई देखकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने माधव को अपने साथ गाने का मौका दिया।
वह दिन माधव के लिए किसी सपने से कम नहीं था। बड़े दिनों के बाद उसे ऐसा लगा जैसे उसकी मुराद पूरी हो गई हो। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे बाबा श्याम ने खुद उसे यह अवसर दिया हो।
“बड़े दिनों के बाद मिलने का आया महूरत है, ओ सँवारे मुझे तेरी जरुरत है…”
माधव ने पंडित मित्तल के साथ कई कार्यक्रमों में भजन गाए। उसकी आवाज में वह दर्द और वह आस्था थी जो सीधे लोगों के दिलों तक पहुंचती थी। धीरे-धीरे, माधव भी एक जाना-माना भजन गायक बन गया। पर उसने कभी भी अपनी जड़ों को नहीं भूला। वह हमेशा खाटू आता रहा और बाबा श्याम के चरणों में अपनी कृतज्ञता अर्पित करता रहा।
माधव की कहानी खाटू के हर भक्त के लिए एक प्रेरणा बन गई। उसने यह साबित कर दिया था कि सच्ची भक्ति और अटूट विश्वास से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। बाबा श्याम हमेशा अपने भक्तों के साथ रहते हैं, बस उन्हें सच्चे मन से पुकारने की जरूरत है।
और आज भी, खाटू नगरी में माधव की आवाज गूंजती है, हर भजन में बाबा श्याम के प्रति उसका अटूट प्रेम और विश्वास झलकता है। उसकी कहानी हर उस हारे हुए इंसान के लिए एक उम्मीद की किरण है जो इस मतलबी दुनिया में एक सहारे की तलाश में है। क्योंकि खाटू वाले श्याम धनि हमेशा अपने भक्तों की सुनते हैं और उन्हें कभी निराश नहीं करते।