
राधा की पुकार
वृंदावन की गलियों में, यमुना के किनारे, राधा की व्याकुलता गूंज रही थी। उनकी आंखें पथराई हुई थीं, मानो युगों से किसी प्रिय का इंतजार कर रही हों। सावन का महीना था, और आकाश में उमड़ते बादल उनकी विरह वेदना को और भी गहरा कर रहे थे। हर बरसती बूंद उन्हें कृष्ण की याद दिलाती, उनके साथ बिताए हर मधुर पल को ताजा करती।
“कैसे मिलन हो तेरा मोहन जरा बता दे, मुझको मेरे कर्म की ऐसी तो ना सजा दे…” राधा का हृदय करुण पुकार कर रहा था। उन्हें लगता था जैसे उनके कर्मों ने उन्हें उनके प्रियतम से दूर कर दिया है। कृष्ण, जो कभी उनकी आंखों की ज्योति थे, उनके हृदय के स्पंदन थे, आज एक अनछुई दूरी पर खड़े थे।
उनकी एक झलक पाने के लिए राधा की आंखें प्यासी थीं। जिस प्रकार सावन की बदली धरती पर अमृत वर्षा करने के लिए आतुर रहती है, उसी प्रकार राधा की नजरें कृष्ण के एक दर्शन के लिए तरस रही थीं। उन्हें डर था कि कहीं उनकी यह विरह वेदना आंसुओं का सागर न बन जाए, बूंद-बूंद करके उनकी सहनशक्ति का बांध न तोड़ दे। “कहीं बन ना जाए सागर बूंदें टपक टपक कर, कैसे मिलन हो तेरा…”
दिन बीतते गए, रातें करवट बदलती रहीं, लेकिन कृष्ण का कोई संदेश नहीं आया। राधा ने उनकी राह में अपने अनगिनत आंसू बहाए थे। उनकी पलकें तारों की तरह सज गई थीं, हर आंसू एक चमकता सितारा बन गया था जो उनकी विरह की रात को रोशन कर रहा था। उन्हें इस बात की परवाह भी नहीं थी कि उनके पांव धूल-धूसरित हो गए हैं, उनकी देह दुर्बल हो गई है। उनका मन तो बस कृष्ण के आगमन की प्रतीक्षा में था। “तेरी राह में कन्हैया अश्कों को यूं बहाया, तारे लगे अरस की पलकों पे यू सजाया, नहीं पांव होंगे मेले आ जाना बेझिझक कर, कैसे मिलन हो तेरा…”
राधा का प्रेम निस्वार्थ और गहरा था। वह कृष्ण से किसी प्रतिदान की अपेक्षा नहीं रखती थीं, उनकी चाहत तो बस उनकी एक झलक थी, उनका स्पर्श था। उन्हें डर था कि कहीं कृष्ण उनकी चाहतों की परीक्षा न लें। उनकी चाहत इतनी तीव्र थी कि वे उनके लिए अपना जीवन भी त्याग सकती थीं। “मेरी चाहतों का मोहन ना इम्तिहान लेना, चाहत में तेरी मुझको आता है जान देना, मैं यूं ही जी रही हूं तिल तिल तरस तरस कर, कैसे मिलन हो तेरा…”
उनका जीवन कृष्ण के बिना सूना और अर्थहीन था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे उनके बिना कैसे जिएं। इस संसार में उनका कौन था, किसका सहारा था? कृष्ण ही तो उनके सर्वस्व थे, उनके जीवन का एकमात्र आधार थे। उनकी आत्मा हर पल कृष्ण को पुकारती थी, उनकी राह देखती थी। “कैसे जियूं मैं तुम बिन मेरा कौन है सहारा, कोई नहीं हमारा बस तू ही है हमारा, कभी आ भी जाओ मोहन यूंही राह चलते चलते, कैसे मिलन हो तेरा…”
एक संध्या, जब वृंदावन की हवा मंद-मंद बह रही थी और राधा यमुना के किनारे बैठी अपने हृदय की पीड़ा को शांत करने का प्रयास कर रही थीं, उन्हें दूर से एक मधुर बांसुरी की ध्वनि सुनाई दी। वह ध्वनि इतनी परिचित थी, इतनी गहराई से उनके अंतर्मन को छू गई कि उनके आंसू थम गए और उनके हृदय में एक अनजानी सी उम्मीद जाग उठी।
वह बांसुरी की धुन धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ती आ रही थी। राधा ने अपनी आँखें उठाकर उस दिशा में देखा। संध्या के धुंधलके में उन्हें एक परिचित आकृति दिखाई दी। वह लंबा कद, वह मोहक मुस्कान, वह बांसुरी की मधुर तान… उनके कृष्ण!
उनके हृदय की धड़कनें तेज हो गईं। क्या यह सच था? क्या उनकी बरसों की तपस्या, उनके अनगिनत आंसुओं का फल उन्हें मिल रहा था? उनके पांव अपने आप उस दिशा में बढ़ने लगे, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें खींच रही हो।
कृष्ण धीरे-धीरे उनके पास आ रहे थे। उनकी आँखों में वही पुरानी प्रेम भरी चमक थी, वही शरारत भरी मुस्कान उनके होंठों पर खेल रही थी। राधा के मुख से एक शब्द भी नहीं निकला, बस उनकी आँखों से अविरल प्रेम की धारा बहने लगी।
जब कृष्ण उनके बिल्कुल सामने आ गए, तो उन्होंने अपनी बांसुरी नीचे रखी और धीरे से राधा का हाथ अपने हाथों में लिया। उनके स्पर्श में वही जादू था, वही सुकून था जिसे राधा बरसों से तरस रही थीं।
“राधे…” कृष्ण का कंठ थोड़ा भरा हुआ था।
राधा बस उन्हें देखती रहीं, उनकी आँखों से कृतज्ञता और प्रेम का सागर उमड़ रहा था। उन्हें अपने आसपास की दुनिया का कोई होश नहीं था। उन्हें लग रहा था जैसे समय थम गया हो, जैसे यह क्षण अनंत काल तक चलता रहे।
“तुम जानती हो, राधे, मैं हमेशा तुम्हारे हृदय में था,” कृष्ण ने धीरे से कहा। “हमारी दूरी केवल बाहरी थी, हमारी आत्माएं तो हमेशा एक-दूसरे से जुड़ी हुई थीं।”
राधा ने धीरे से अपना सिर हिलाया। उन्हें पता था। उन्हें हमेशा यह अहसास था कि कृष्ण उनसे कभी दूर नहीं हो सकते, उनका प्रेम अविनाशी है।
“फिर इतनी प्रतीक्षा क्यों, मोहन?” राधा का स्वर धीमा था, लेकिन उसमें बरसों की पीड़ा छिपी हुई थी।
कृष्ण ने उनके चेहरे पर हाथ फेरा। “यह संसार की लीला है, राधे। प्रेम की गहराई को समझने के लिए विरह की अग्नि से गुजरना भी आवश्यक होता है। तुम्हारे आंसुओं ने तुम्हारे प्रेम को और भी पवित्र और अटूट बना दिया है।”
राधा ने कृष्ण के सीने से लगकर अपनी बरसों की विरह वेदना को शांत किया। उन्हें लग रहा था जैसे वह अपनी मंजिल पर पहुंच गई हों, जैसे एक भटकती हुई नाव किनारे से लग गई हो।
उस रात, वृंदावन की कुंज गलियों में प्रेम और मिलन की एक नई कहानी लिखी गई। राधा और कृष्ण फिर से एक हो गए थे, उनका दिव्य प्रेम एक बार फिर संसार के सामने प्रकट हुआ था।
लेकिन यह मिलन इतना आसान नहीं था। इसके पीछे राधा की अटूट भक्ति, उनका निस्वार्थ प्रेम और उनकी गहरी प्रतीक्षा थी। यह कहानी सिर्फ दो प्रेमियों के मिलन की नहीं थी, बल्कि यह उस अटूट बंधन की कहानी थी जो आत्माओं को एक-दूसरे से बांधे रखता है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हों।
अगले दिन, वृंदावन में एक नई उमंग थी। लोगों ने राधा और कृष्ण को एक साथ देखा तो उनके हृदय आनंद से भर गए। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति भी इस मिलन का उत्सव मना रही हो। फूल और भी खिल उठे थे, पक्षियों के कलरव में और मधुरता आ गई थी, और यमुना का जल भी पहले से अधिक शांत और शीतल लग रहा था।
राधा और कृष्ण ने एक साथ वृंदावन की गलियों में विचरण किया। राधा की आँखों में अब वह विरह की उदासी नहीं थी, बल्कि कृष्ण के प्रेम की चमक थी। कृष्ण अपनी मधुर बांसुरी बजाते हुए राधा के साथ चलते थे, और उनकी धुन पूरे वृंदावन में प्रेम का संदेश फैला रही थी।
लोगों ने उन्हें घेर लिया और उनके मिलन की बधाई दी। गोपियों के चेहरे खुशी से खिल उठे थे, और ग्वाले भी अपनी लाठियां बजाकर इस शुभ अवसर का स्वागत कर रहे थे।
लेकिन इस मिलन के पीछे एक गहरा रहस्य भी छिपा था। कृष्ण का वृंदावन छोड़कर जाना और फिर लौटना, यह सब एक दिव्य योजना का हिस्सा था। वे राधा और गोपियों के प्रेम की गहराई को संसार के सामने प्रकट करना चाहते थे। वे यह दिखाना चाहते थे कि सच्चा प्रेम भौतिक बंधनों से परे होता है, यह आत्मा का आत्मा से मिलन होता है।
राधा ने कभी भी कृष्ण से कुछ नहीं मांगा था। उनका प्रेम निस्वार्थ था, केवल कृष्ण की प्रसन्नता में ही उनकी प्रसन्नता थी। उनकी प्रतीक्षा में कोई शिकायत नहीं थी, केवल एक गहरी longing थी। और इसी निस्वार्थ प्रेम और अटूट विश्वास ने कृष्ण को वापस वृंदावन खींच लिया था।
एक दिन, जब राधा और कृष्ण यमुना के किनारे बैठे थे, राधा ने धीरे से पूछा, “मोहन, तुम इतने दिनों तक कहां थे? तुम्हारे बिना मेरा जीवन सूना हो गया था।”
कृष्ण ने उनके हाथ को अपने हाथों में लिया और कहा, “राधे, मैं तुम्हारे हृदय में ही था। भले ही मेरी देह तुमसे दूर थी, मेरी आत्मा हमेशा तुम्हारे साथ थी। मैं उस कर्तव्य को निभा रहा था जिसके लिए मैंने जन्म लिया था। लेकिन मेरा मन हमेशा वृंदावन और तुम्हारे पास ही रहता था।”
“लेकिन यह विरह… यह बहुत कठिन था,” राधा ने कहा, उनकी आँखों में फिर से आंसू आ गए।
“मैं जानता हूं, राधे। लेकिन इस विरह ने तुम्हारे प्रेम को और भी मजबूत बना दिया। तुमने अपनी प्रतीक्षा से यह साबित कर दिया कि तुम्हारा प्रेम कितना गहरा और सच्चा है। और यही प्रेम मुझे वापस खींच लाया।”
राधा ने कृष्ण की आँखों में देखा। उन्हें समझ आ गया था कि यह विरह उनकी प्रेम कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह उन्हें और भी करीब लाया था, उनके बंधन को और भी अटूट बना दिया था।
समय बीतता गया, और वृंदावन में फिर से वही रौनक लौट आई। राधा और कृष्ण की प्रेम लीलाएं फिर से गूंजने लगीं। गोपियां फिर से कृष्ण के चारों ओर नाचती-गाती थीं, और ग्वाले अपनी मस्ती में खोए रहते थे।
लेकिन राधा के हृदय में अब एक गहरी शांति थी। उन्हें पता था कि कृष्ण हमेशा उनके साथ हैं, चाहे वे दिखाई दें या न दें। उनका प्रेम एक शाश्वत सत्य था, जो समय और स्थान की सीमाओं से परे था।
एक पूर्णिमा की रात, जब चंद्रमा अपनी पूरी कलाओं के साथ चमक रहा था, राधा और कृष्ण यमुना के किनारे रास रचा रहे थे। गोपियां उनके चारों ओर घेरा बनाकर नाच रही थीं, और मधुर संगीत पूरे वातावरण में गूंज रहा था।
उस रात, राधा ने कृष्ण के प्रेम की गहराई को पूरी तरह से महसूस किया। उन्हें यह अहसास हुआ कि उनका मिलन केवल दो शरीरों का मिलन नहीं था, बल्कि दो आत्माओं का मिलन था, एक ऐसा मिलन जो अनंत काल तक चलेगा।
उनकी कहानी आज भी वृंदावन की गलियों में गूंजती है, प्रेम और भक्ति का संदेश देती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम प्रतीक्षा करता है, सहता है, और अंततः अपने प्रियतम को पा ही लेता है। राधा की पुकार, उनके आंसू, उनकी प्रतीक्षा, यह सब उनके अनन्य प्रेम का प्रमाण था, जिसने कृष्ण को वापस उनके पास खींच लिया।
और हर भक्त के हृदय में यही आशा रहती है कि एक दिन उनकी भी पुकार सुनी जाएगी, उनके भी आंसू फल लाएंगे, और उनका भी अपने प्रियतम से मिलन होगा। क्योंकि सच्चा प्रेम कभी निष्फल नहीं जाता, वह किसी न किसी रूप में अवश्य ही पूर्ण होता है।
राधा का कृष्ण से मिलन एक दिव्य लीला थी, जो हमें प्रेम की शक्ति और भक्ति की महिमा सिखाती है। यह हमें यह भी बताती है कि विरह की अग्नि में तपकर प्रेम और भी निखरता है, और सच्ची प्रतीक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती।
वृंदावन की हवा में आज भी राधा-कृष्ण के प्रेम की सुगंध बसी हुई है, और हर भक्त अपने हृदय में उसी मिलन की आकांक्षा लिए जीता है, जिस मिलन के लिए राधा ने युगों तक प्रतीक्षा की थी। उनकी कहानी अनंत है, अमर है, और हमेशा प्रेम करने वालों के लिए एक प्रेरणा बनी रहेगी।
आपके दिए गए छंद राधा की इसी विरह वेदना और मिलन की तीव्र आकांक्षा को व्यक्त करते हैं। यह कहानी उसी भावना को विस्तार देती है, राधा के हृदय की गहराईयों को छूती है, और कृष्ण के प्रति उनके अनन्य प्रेम की महिमा का वर्णन करती है। यह कहानी उस अटूट बंधन की गाथा है जो राधा और कृष्ण को हमेशा के लिए एक सूत्र में बांधे रखता है।