
मुझे ले चल खाटु धाम
राजस्थान की सांस्कृतिक नगरी, जयपुर में, रमेश नाम का एक युवक रहता था। रमेश बचपन से ही श्याम बाबा का दीवाना था। उसने बाबा के चमत्कारों और उनकी महिमा की अनगिनत कहानियाँ सुनी थीं और उसके मन में हमेशा खाटू जाकर बाबा के दर्शन करने की तीव्र इच्छा रहती थी। वह अक्सर गुनगुनाता रहता, “जहाँ बिराजे शीश के दानी, मेरे बाबा श्याम, दीवाने मुझे ले चल खाटु धाम, दीवाने मुझे ले चल खाटु धाम।”
रमेश एक साधारण परिवार से था और एक छोटी सी नौकरी करके अपना गुजारा करता था। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह आसानी से खाटू जा सके। फिर भी, उसका सपना हर पल उसके मन में जीवित रहता था। वह हर एकादशी को पास के श्याम मंदिर में जाता, बाबा की आरती में शामिल होता और खाटू जाने की प्रार्थना करता।
रमेश का मानना था कि उसका “तन मन धन सब इनके अर्पण” है। वह अपना जीवन भी श्याम बाबा को ही समर्पित मानता था। उसकी दिली इच्छा थी कि वह एक बार “मन मंदिर में छवि निरखु मैं, मन मंदिर में छवि निरखु मैं, इनकी आठों याम।” वह हर पल अपने मन के मंदिर में श्याम बाबा की सुंदर छवि को देखना चाहता था।
एक दिन, रमेश ने अपने एक मित्र, सुरेश से अपनी खाटू जाने की इच्छा व्यक्त की। सुरेश भी श्याम बाबा का भक्त था, लेकिन वह पहले कभी खाटू नहीं गया था। रमेश की तीव्र इच्छा देखकर सुरेश ने कहा कि वह उसके साथ खाटू चलने के लिए तैयार है। रमेश की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे लगा जैसे स्वयं बाबा ने उसकी पुकार सुन ली हो।
उन्होंने अपनी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने बस से खाटू जाने का फैसला किया। यात्रा में कई घंटे लगे, लेकिन रमेश का उत्साह कम नहीं हुआ। वह रास्ते भर श्याम बाबा के भजन गाता रहा और खाटू पहुँचने का बेसब्री से इंतजार करता रहा।
आखिरकार, वे खाटू नगरी पहुँच गए। मंदिर के आसपास भक्तों की भारी भीड़ थी। रमेश और सुरेश भीड़ को चीरते हुए धीरे-धीरे मंदिर की ओर बढ़ने लगे। रमेश की आँखों में आँसू थे। उसकी बरसों की इच्छा आज पूरी होने जा रही थी।
मंदिर के गर्भगृह में पहुँचकर, रमेश ने श्याम बाबा की भव्य मूर्ति के दर्शन किए। बाबा का सुंदर और दिव्य रूप देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गया। उसने बाबा के चरणों में अपना सिर झुका दिया और भावविभोर होकर प्रार्थना करने लगा। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके सामने स्वयं भगवान खड़े हों।
सुरेश भी बाबा के दर्शन करके बहुत खुश हुआ। उसने रमेश से कहा कि उसने कभी इतनी शांति और आनंद महसूस नहीं किया था।
रमेश और सुरेश ने खाटू में दो दिन बिताए। उन्होंने बाबा की आरती में भाग लिया, उनके भजन सुने और मंदिर के आसपास के पवित्र स्थलों के दर्शन किए। रमेश का मन पूरी तरह से शांत और संतुष्ट था। उसे लग रहा था जैसे उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा कर लिया हो।
खाटू में रमेश ने श्याम बाबा के कई भक्तों से मुलाकात की। उसने उनकी कहानियाँ सुनीं और जाना कि कैसे बाबा अपने “भोले भाले” भक्तों की हमेशा “रखवाले” करते हैं। उसे यह जानकर और भी अधिक विश्वास हो गया कि “ऐसे देव दयालु के मेरे, ऐसे देव दयालु के मेरे, चरणों में परणाम।”
जब रमेश और सुरेश वापस जयपुर लौट रहे थे, तो रमेश का हृदय कृतज्ञता से भरा हुआ था। उसे लग रहा था जैसे श्याम बाबा ने उसे सब कुछ दे दिया हो। अब उसका विश्वास और भी दृढ़ हो गया था कि “श्याम भरोसा श्याम सहारा, जीवन नाव का खेवनहारा।” उसे पता था कि श्याम बाबा ही उसकी जीवन रूपी नाव के खेवनहार हैं और वे हमेशा उसे सही दिशा दिखाएंगे।
कुछ समय बाद, रमेश के जीवन में एक बड़ी मुश्किल आ गई। उसकी नौकरी चली गई और उसे कोई नई नौकरी नहीं मिल रही थी। वह बहुत परेशान हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करेगा।
लेकिन रमेश ने हार नहीं मानी। उसे श्याम बाबा पर पूरा भरोसा था। वह हर रोज मंदिर जाता और बाबा से प्रार्थना करता। उसे विश्वास था कि “चौखट पर बस टेक लो माथा, चौखट पर बस टेक लो माथा, बनेंगे बिगड़े काम।”
एक दिन, जब रमेश मंदिर से लौट रहा था, तो उसे एक पुराना मित्र मिला। उस मित्र ने उसे अपनी कंपनी में एक नौकरी का प्रस्ताव दिया। रमेश की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे लगा जैसे बाबा ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो और उसके बिगड़े काम बना दिए हों।
रमेश ने उस नौकरी को स्वीकार कर लिया और अपनी मेहनत और ईमानदारी से बहुत जल्द तरक्की की। उसकी आर्थिक स्थिति सुधर गई और उसका जीवन फिर से खुशहाल हो गया।
रमेश कभी भी खाटू की अपनी यात्रा को नहीं भूला। वह हर साल खाटू जाता और श्याम बाबा के दर्शन करता। उसका विश्वास और भी गहरा होता गया। उसने जान लिया था कि श्याम बाबा वास्तव में “श्याम वरण पर घोरे मनके, दानी है महाभारत रण के।” जिस प्रकार महाभारत के युद्ध में उन्होंने अपने शीश का दान दिया था, उसी प्रकार वे अपने भक्तों के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं।
रमेश का मानना था कि “श्याम प्रभु जीवन धन मेरे, श्याम प्रभु जीवन धन मेरे, आन बान और शान।” श्याम बाबा ही उसके जीवन का सबसे बड़ा धन हैं और वे ही उसकी आन, बान और शान हैं।
एक बार, रमेश अपने गाँव गया। वहाँ उसने देखा कि गाँव के कई लोग आर्थिक रूप से बहुत परेशान हैं। किसानों की फसल खराब हो गई थी और लोगों के पास खाने के लिए भी पैसे नहीं थे। रमेश का दिल यह देखकर बहुत दुखी हुआ।
उसने तुरंत गाँव के लोगों की मदद करने का फैसला किया। उसने अपनी बचत से कुछ पैसे निकाले और गरीबों और जरूरतमंदों को दान दिए। उसने गाँव के सरपंच से बात करके सरकार से भी मदद मंगवाई।
रमेश के प्रयासों से गाँव के लोगों को थोड़ी राहत मिली। सभी ने उसकी उदारता और दयालुता की प्रशंसा की। रमेश ने कहा कि यह सब श्याम बाबा की कृपा से ही संभव हो पाया है। बाबा ने उसे इतना कुछ दिया है तो उसका भी फर्ज बनता है कि वह दूसरों की मदद करे।
रमेश ने अपने जीवन में कई बार खाटू की यात्रा की। हर बार वह अपने साथ कुछ और लोगों को भी ले जाता था जो श्याम बाबा के दर्शन करना चाहते थे। वह चाहता था कि सभी लोग बाबा की महिमा और उनके प्रेम का अनुभव करें।
एक बार, रमेश अपने पूरे परिवार के साथ खाटू गया। उसकी पत्नी और बच्चे भी बाबा के दर्शन करके बहुत खुश हुए। रमेश ने अपने बच्चों को श्याम बाबा की कहानियाँ सुनाईं और उन्हें भक्ति और श्रद्धा का महत्व समझाया।
रमेश का जीवन श्याम बाबा के प्रति अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक बन गया था। उसने कभी भी बाबा का साथ नहीं छोड़ा और बाबा ने भी हमेशा उसकी रक्षा की। उसकी एकमात्र इच्छा थी कि वह हमेशा श्याम बाबा के चरणों में रहे और उनकी सेवा करता रहे।
उसने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक श्याम बाबा की भक्ति की और हमेशा यही कहा, “जहाँ बिराजे शीश के दानी, मेरे बाबा श्याम, दीवाने मुझे ले चल खाटु धाम, दीवाने मुझे ले चल खाटु धाम।”
रमेश की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हमारे मन में सच्ची श्रद्धा और लगन हो तो श्याम बाबा हमारी हर इच्छा पूरी करते हैं। हमें बस उन पर विश्वास रखना चाहिए और हमेशा उनके चरणों में समर्पित रहना चाहिए। खाटू धाम वह पवित्र स्थान है जहाँ बाबा अपने भक्तों को अपना प्रेम और आशीर्वाद देते हैं। जो भी सच्चे मन से वहाँ जाता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए और जरूरतमंदों के प्रति दयालु रहना चाहिए। यही सच्ची भक्ति है और यही श्याम बाबा को प्रसन्न करने का मार्ग है।
अंत में, यही कहना चाहूंगा कि हमें हमेशा श्याम बाबा के दीवाने बने रहना चाहिए और उनके धाम, खाटू जाने की इच्छा अपने हृदय में संजोए रखनी चाहिए। बाबा निश्चित रूप से हमारी पुकार सुनेंगे और हमें अपने चरणों में स्थान देंगे।
“दीवाने मुझे ले चल खाटु धाम, दीवाने मुझे ले चल खाटु धाम।” यह केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि एक भक्त के हृदय की गहरी पुकार है जो उसे अपने प्यारे श्याम बाबा के चरणों तक खींच ले जाती है।
श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!