
पकड़ लो हाथ बनवारी
राजस्थान की स्वर्णमयी धरती, जहाँ कण-कण में वीरों की गाथाएँ और भक्ति की धाराएँ प्रवाहित होती हैं, वहीं एक ऐसा दिव्य धाम है जो लाखों दिलों की आस्था का केंद्र है – खाटू श्याम जी का मंदिर। इस पवित्र स्थान पर हर साल अनगिनत भक्त अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं, अपनी पीड़ाएँ सुनाते हैं और बाबा श्याम की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह कहानी एक ऐसे ही भक्त की है, जिसके जीवन की डोर बाबा श्याम के हाथों में बंधी है – बनवारी।
बनवारी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। बचपन से ही उसने अभाव और संघर्ष देखा था। उसके पिता एक छोटे से किसान थे, जिनकी मेहनत भी परिवार का पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं थी। बनवारी ने बचपन से ही जिम्मेदारी समझी और अपने पिता के साथ खेतों में काम करने लगा। लेकिन गरीबी की मार ऐसी थी कि चाहकर भी हालात नहीं सुधर रहे थे।
बनवारी का हृदय बड़ा कोमल था और वह ईश्वर में गहरी आस्था रखता था। उसकी माँ, जो एक धर्मपरायण महिला थीं, उसे हमेशा भगवान की भक्ति करने और उन पर विश्वास रखने की शिक्षा देती थीं। बनवारी को खाटू श्याम की कहानियाँ अपनी माँ से सुनने को मिलती थीं। माँ बताती थीं कि बाबा श्याम हारे हुए का सहारा हैं और जो भी सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, वे उसकी लाज रखते हैं।
धीरे-धीरे बनवारी के मन में बाबा श्याम के प्रति एक विशेष अनुराग उत्पन्न हो गया। वह अक्सर गाँव के छोटे से मंदिर में जाकर बाबा श्याम की मूर्ति के सामने घंटों तक बैठा रहता, अपनी परेशानियाँ उन्हें सुनाता और उनसे मदद की गुहार लगाता। उसे विश्वास था कि एक दिन बाबा उसकी पुकार जरूर सुनेंगे।
एक दिन, गाँव में एक श्याम भक्त मंडल आया। वे खाटू से लौट रहे थे और उन्होंने गाँव के बाहर एक धर्मशाला में विश्राम किया। बनवारी को जब यह पता चला तो वह तुरंत उनसे मिलने गया। उसने उन भक्तों के चरण छुए और उनसे बाबा श्याम के बारे में बातें कीं। उन भक्तों ने बनवारी को खाटू आने और बाबा के दर्शन करने के लिए प्रेरित किया।
बनवारी का मन खाटू जाने के लिए व्याकुल हो उठा, लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह यात्रा कर सके। उसने अपनी इच्छा को मन में दबा लिया, लेकिन बाबा श्याम से प्रार्थना करना कभी नहीं छोड़ा। वह हर रोज उनसे यही विनती करता कि एक दिन उसे उनके दरबार में आने का सौभाग्य मिले।
समय बीतता गया। बनवारी जवान हो गया और उसने अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। उसने कड़ी मेहनत की और थोड़ा-बहुत पैसा जमा करना शुरू किया। उसका सपना था कि एक दिन वह अपने माता-पिता को सुख-सुविधाएँ दे सके और खुद भी बाबा श्याम के दर्शन के लिए खाटू जा सके।
एक बार, बनवारी के गाँव में एक भयानक सूखा पड़ा। फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गईं और लोगों के सामने खाने-पीने का संकट आ गया। बनवारी और उसका परिवार भी इस आपदा से बुरी तरह प्रभावित हुआ। हर तरफ निराशा का माहौल था और लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें।
उस मुश्किल घड़ी में, बनवारी का विश्वास बाबा श्याम पर और भी दृढ़ हो गया। उसने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और उनसे मिलकर बाबा श्याम के नाम का जाप करने और उनसे प्रार्थना करने का आग्रह किया। उसने खुद भी दिन-रात बाबा के भजन गाए और भूखे-प्यासे लोगों की मदद करने में जुट गया।
कई दिनों तक लगातार प्रार्थना और सेवा करने के बाद, आखिरकार बारिश हुई और सूखे की मार से राहत मिली। लोगों का मानना था कि यह बाबा श्याम की कृपा का ही फल था। इस घटना ने बनवारी के प्रति लोगों का सम्मान और भी बढ़ा दिया।
कुछ समय बाद, बनवारी ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से कुछ पैसे बचा लिए। उसने फैसला किया कि अब वह खाटू श्याम के दर्शन के लिए जाएगा। उसने अपने माता-पिता से आशीर्वाद लिया और अकेले ही खाटू की यात्रा पर निकल पड़ा।
कई दिनों की पैदल यात्रा के बाद, बनवारी आखिरकार खाटू पहुँचा। मंदिर के बाहर भक्तों की अपार भीड़ देखकर वह थोड़ा घबरा गया, लेकिन उसके हृदय में बाबा श्याम के दर्शन की तीव्र इच्छा थी। वह धीरे-धीरे मंदिर की ओर बढ़ा और जैसे ही उसने बाबा श्याम की मनमोहक प्रतिमा के दर्शन किए, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
वह छवि इतनी सुंदर, इतनी शांत और इतनी दिव्य थी कि बनवारी कुछ पल के लिए सब कुछ भूल गया। बाबा श्याम का गोल मुख, बड़ी-बड़ी करुणामयी आँखें और उनके चेहरे पर विराजमान मंद मुस्कान – ऐसा लग रहा था मानो स्वयं भगवान कृष्ण ही अपने भक्त को आशीर्वाद दे रहे हों।
बनवारी ने हाथ जोड़कर बाबा श्याम को प्रणाम किया और अपने हृदय की सारी पीड़ा और आशा उनके चरणों में रख दी। उसने बाबा से प्रार्थना की कि वे हमेशा उसका हाथ थामे रहें और उसे कभी अकेला न छोड़ें। उसने कहा, “खाटू श्याम पकड़ लो हाथ बनवारी, अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं।”
मंदिर में कुछ घंटे बिताने के बाद, बनवारी को एक अजीब सी शांति और सुकून महसूस हुआ। उसे ऐसा लगा मानो बाबा श्याम ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो और उसे अभयदान दे दिया हो।
खाटू से लौटने के बाद, बनवारी का जीवन पूरी तरह से बदल गया। उसका आत्मविश्वास बढ़ गया और उसने और भी अधिक मेहनत से काम करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसके हालात सुधरने लगे और वह अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकालने में सफल रहा।
बनवारी ने कभी भी बाबा श्याम का स्मरण नहीं छोड़ा। वह हर साल खाटू जाता और बाबा के चरणों में अपनी कृतज्ञता अर्पित करता। उसने अपने गाँव में भी एक छोटा सा श्याम मंदिर बनवाया और वहाँ नियमित रूप से भजन-कीर्तन करवाता था।
एक बार, बनवारी के जीवन में एक बड़ी मुश्किल आई। उसके व्यापार में अचानक भारी नुकसान हो गया और वह कर्ज के बोझ तले दब गया। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस संकट से कैसे निकले। वह बहुत निराश और हताश हो गया।
उस रात, बनवारी ने बाबा श्याम से प्रार्थना करते हुए कहा, “बाबा, मैंने हमेशा आपका स्मरण किया, हमेशा आप पर विश्वास रखा। आज जब मैं मुश्किल में हूँ, तो आप कहाँ हैं? खाटू श्याम पकड़ लो हाथ बनवारी, अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं।”
उसी रात, बनवारी को सपने में बाबा श्याम के दर्शन हुए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “बनवारी, तू क्यों घबराता है? मैं हमेशा तेरे साथ हूँ। यह मुश्किल भी गुजर जाएगी। तू बस अपना कर्म करता रह और मुझ पर विश्वास रख।”
इस सपने ने बनवारी के मन में एक नई ऊर्जा और उम्मीद का संचार किया। अगले दिन, उसे एक अप्रत्याशित स्रोत से आर्थिक सहायता मिली, जिससे उसका संकट दूर हो गया। बनवारी जान गया कि यह बाबा श्याम की ही कृपा थी।
इस घटना के बाद, बनवारी का विश्वास बाबा श्याम के प्रति और भी गहरा हो गया। उसने अपने जीवन में यह सीख ली थी कि बाबा श्याम हमेशा अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं, लेकिन कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ते। बस हमें उन पर अटूट विश्वास रखना होता है।
बनवारी ने अपने जीवन में जो कुछ भी पाया, उसे वह बाबा श्याम की कृपा का ही फल मानता था। वह हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करता था और लोगों को बाबा श्याम की भक्ति करने के लिए प्रेरित करता था। उसका मानना था कि सच्ची भक्ति और सेवा से ही हम भगवान को प्राप्त कर सकते हैं।
समय बीतता गया और बनवारी एक सम्मानित और समृद्ध व्यक्ति बन गया। लेकिन उसकी विनम्रता और भक्ति कभी कम नहीं हुई। वह आज भी हर साल खाटू जाता है और बाबा श्याम के चरणों में बैठकर शांति का अनुभव करता है। उसके जीवन की कहानी गाँव के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है।
बनवारी हमेशा कहता है, “बाबा श्याम का हाथ जिसने पकड़ लिया, उसे फिर किसी और सहारे की जरूरत नहीं होती। वे अपने भक्तों की हर मुश्किल में साथ देते हैं और उन्हें सही मार्ग दिखाते हैं। बस हमें उन पर अटूट विश्वास रखना चाहिए और सच्चे मन से उनकी शरण में आना चाहिए।”
खाटू श्याम का दरबार एक ऐसा स्थान है जहाँ हर भक्त को आशा की किरण दिखाई देती है। यहाँ हर कोई अपनी पीड़ा और अपनी मनोकामना लेकर आता है और बाबा श्याम की कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करता है। बनवारी की कहानी उस अटूट विश्वास और प्रेम की कहानी है जो एक भक्त का अपने भगवान के प्रति होता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि यदि हम सच्चे मन से बाबा श्याम की शरण में जाएँ और उनसे प्रार्थना करें, तो वे निश्चित रूप से हमारा हाथ थाम लेंगे और हमें कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे।
खाटू श्याम पकड़ लो हाथ बनवारी – यह केवल एक पुकार नहीं है, बल्कि एक भक्त के हृदय का गहरा विश्वास है कि उसका आराध्य हमेशा उसके साथ है और हमेशा उसका मार्गदर्शन करेगा। बनवारी का जीवन इसी विश्वास का प्रतीक है और उसकी यह कहानी युगों-युगों तक भक्तों को प्रेरित करती रहेगी। बाबा श्याम की महिमा अपरंपार है और जो भी सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, वह कभी निराश नहीं होता।