
तेरा जादू खाटू वाले
राजस्थान की हृदयस्थली में बसा एक छोटा सा शहर, कोटा, अपनी ऐतिहासिक धरोहर और शैक्षणिक संस्थानों के लिए जाना जाता है। इसी शहर में रहने वाला एक साधारण सा युवक था, माधव। माधव का हृदय बचपन से ही भक्ति और श्रद्धा से ओतप्रोत था। उसे खाटू श्याम बाबा के चमत्कारों और उनकी महिमा की कहानियाँ सुनना बहुत पसंद था।
माधव का परिवार भी धार्मिक था। हर साल वे खाटू श्याम जी के दर्शन करने जाते थे। माधव को वह यात्रा हमेशा एक अद्भुत अनुभव लगती थी। रींगस से खाटू तक की पैदल यात्रा, भक्तों की टोलियाँ, उनके मुख पर श्याम नाम का जाप, और खाटू धाम पहुंचकर बाबा के दिव्य दर्शन – यह सब माधव के मन पर गहरी छाप छोड़ जाता था।
जैसे-जैसे माधव बड़ा हुआ, जीवन की आपाधापी में वह थोड़ा व्यस्त रहने लगा। पढ़ाई, नौकरी और अन्य जिम्मेदारियों के चलते उसका खाटू जाना कम हो गया। लेकिन उसके हृदय में श्याम बाबा के प्रति प्रेम और विश्वास हमेशा बना रहा। जब कभी वह थोड़ा उदास या परेशान होता, तो उसे खाटू और श्याम बाबा की याद जरूर आती।
एक दिन, माधव अपने ऑफिस में काम कर रहा था। प्रोजेक्ट का दबाव और व्यक्तिगत समस्याओं के कारण वह बहुत तनाव में था। उसे लग रहा था जैसे सब कुछ उसके विरुद्ध जा रहा हो। उस दिन, काम करते-करते अचानक उसे श्याम बाबा के भजन की पंक्तियाँ याद आ गईं:
“तेरा जादू खाटू वाले ऐसा सर पे छा गया, मैं फिर से खाटू आ गया…..”
इन पंक्तियों को गुनगुनाते ही माधव के मन में एक अजीब सी शांति छा गई। उसे लगा जैसे श्याम बाबा उसे बुला रहे हों। उसी पल उसने निश्चय कर लिया कि वह फिर से खाटू जाएगा।
अगले ही दिन, माधव ने अपने कुछ दोस्तों को फोन किया जो श्याम बाबा के भक्त थे। उसने उन्हें अपनी इच्छा बताई और पूछा कि क्या वे भी उसके साथ खाटू चलना चाहेंगे। उसके दोस्त, जो हमेशा खाटू जाने के लिए उत्सुक रहते थे, तुरंत तैयार हो गए। उन्होंने मिलकर एक गाड़ी बुक की और खाटू की यात्रा की तैयारी शुरू कर दी।
माधव के मन में बहुत उत्साह था। उसे लग रहा था जैसे वह किसी अदृश्य शक्ति द्वारा खींचा जा रहा हो। रास्ते भर वह श्याम बाबा के भजन गाता रहा और अपने दोस्तों के साथ उनकी महिमा की बातें करता रहा।
“जब भी मैं सांवरे थोडा उदास हो जाता हूँ, तुझसे मिलने मुरली वाले दौड़ दौड़ आता हूँ, संग ले करके भक्तो की टोली गाड़ी भर करके आ गया, मैं फिर से खाटू आ गया….”
जब उनकी गाड़ी कोटा से रींगस की ओर बढ़ रही थी, तो माधव ने इन पंक्तियों को गुनगुनाया। उसे याद आया कि कैसे बचपन में जब भी वह उदास होता था, उसके माता-पिता उसे खाटू ले जाते थे और बाबा के दर्शन करते ही उसकी सारी उदासी दूर हो जाती थी। अब वह बड़ा हो गया था, लेकिन उसके लिए श्याम बाबा का महत्व आज भी उतना ही था।
रींगस पहुंचने पर, माधव और उसके दोस्तों ने गाड़ी पार्क की और खाटू धाम की ओर पैदल यात्रा शुरू कर दी। भक्तों की टोलियाँ हाथों में निशान लिए “जय श्याम बाबा” के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ रही थीं। इस भक्तिमय माहौल में माधव का मन और भी उत्साहित हो गया।
“घर से लकर रिंगस तक रिंगस फिर खाटू तक, चैन नही आता है बाबा तेरा पैडी चढने तक, तेरा सोडा मुखड़ा बाबा इन नैनो को भा गया, मैं फिर से खाटू आ गया…..”
रींगस से खाटू तक की वह पैदल यात्रा माधव को थोड़ी थका रही थी, लेकिन उसके मन में श्याम बाबा के दर्शन की इतनी तीव्र इच्छा थी कि उसे थकान महसूस ही नहीं हो रही थी। उसे लग रहा था जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे खींच रही हो। जब वह खाटू मंदिर की सीढ़ियों (पैड़ी) पर चढ़ रहा था, तो उसका हृदय आनंद से भर गया। उसे श्याम बाबा का वह सुंदर और भोला मुखड़ा याद आ रहा था, जिसे देखकर उसके नैनों को हमेशा शांति मिलती थी।
मंदिर के गर्भगृह में पहुंचकर, माधव और उसके दोस्तों ने श्याम बाबा के दिव्य दर्शन किए। बाबा की मनमोहक मूर्ति फूलों और मालाओं से सजी हुई थी। उनकी आँखों में एक अद्भुत करुणा और प्रेम था, जिसे देखकर माधव भावविभोर हो गया। उसने बाबा के चरणों में अपना शीश झुकाया और अपने मन की सारी परेशानियाँ उन्हें समर्पित कर दीं।
उसके दोस्त भी अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर आए थे और उन्होंने भी बाबा से प्रार्थना की। मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ थी, लेकिन उस भक्तिमय माहौल में सभी एक दूसरे से जुड़े हुए महसूस कर रहे थे।
दर्शन करने के बाद, माधव और उसके दोस्त मंदिर परिसर में ही एक पेड़ के नीचे बैठ गए। उन्हें शांति और सुकून महसूस हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे श्याम बाबा ने उनकी प्रार्थना सुन ली हो और उनकी सारी चिंताएं दूर हो गई हों।
माधव ने अपने दोस्तों से कहा, “यहाँ आकर मुझे हमेशा एक नई ऊर्जा मिलती है। ऐसा लगता है जैसे बाबा ने मेरी सारी उदासी हर ली हो।”
उसके एक दोस्त ने कहा, “हाँ माधव, यह सच है। श्याम बाबा का जादू ही ऐसा है। जो भी सच्चे मन से यहाँ आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता।”
माधव को याद आया कि कैसे बचपन में उसके परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था और खाटू आने के बाद धीरे-धीरे उनकी परेशानियाँ दूर हो गई थीं। उसे यह भी याद आया कि एक बार उसकी बहन बहुत बीमार हो गई थी और खाटू में प्रार्थना करने के बाद वह स्वस्थ हो गई थी। श्याम बाबा ने हमेशा उनके परिवार की रक्षा की थी।
उस दिन, मंदिर में भजन-कीर्तन का आयोजन हो रहा था। माधव और उसके दोस्त भी उसमें शामिल हो गए। भक्तिमय संगीत और भक्तों की आवाजें मिलकर एक अद्भुत माहौल बना रही थीं। माधव भी खुशी से झूमने लगा।
“मै आऊ हर बार जी संग लेकर परिवार जी, कर कृपा हर महीने नही रहूँ हर हफ्ते तैयार जी, मैं नाचू दरबार में ऐसे जैसे फिर से फागुन आ गया, मैं फिर से खाटू आ गया…..”
भजन की इन पंक्तियों को गाते हुए माधव को ऐसा लग रहा था जैसे वह सचमुच फाल्गुन के मेले में नाच रहा हो। उसका मन आनंद और उत्साह से भर गया। उसने निश्चय किया कि वह अब हर बार अपने परिवार को भी साथ लेकर आएगा और यदि संभव हो तो हर हफ्ते खाटू आकर श्याम बाबा के दर्शन करेगा।
उस यात्रा के बाद, माधव के जीवन में सकारात्मक बदलाव आने लगे। उसकी नौकरी में तरक्की हुई और व्यक्तिगत समस्याएं भी धीरे-धीरे कम होने लगीं। उसे लगने लगा जैसे श्याम बाबा हमेशा उसके साथ हैं और उसकी रक्षा कर रहे हैं।
माधव का विश्वास श्याम बाबा के प्रति और भी गहरा हो गया। वह अक्सर खाटू जाता और अपने अनुभव दूसरों के साथ साझा करता। उसने कई ऐसे लोगों को प्रेरित किया जो निराश और हताश थे। उसने उन्हें बताया कि श्याम बाबा सच में “हारे के सहारे” हैं और जो भी सच्चे मन से उनकी शरण में जाता है, उसे कभी निराशा नहीं मिलती।
एक बार, माधव अपने ऑफिस के एक सहकर्मी, रवि, से बात कर रहा था। रवि बहुत परेशान दिख रहा था। उसने माधव को बताया कि उसके व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा है और वह कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।
माधव ने रवि को श्याम बाबा की महिमा और अपनी कहानी सुनाई। उसने रवि को खाटू चलने की सलाह दी। पहले तो रवि थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन माधव के बार-बार कहने पर वह मान गया।
अगले हफ्ते, माधव और रवि खाटू गए। माधव ने रवि को मंदिर के दर्शन कराए और उसे श्याम बाबा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए कहा। रवि ने भी सच्चे मन से बाबा से प्रार्थना की और अपनी परेशानियों को दूर करने की विनती की।
खाटू से लौटने के बाद, रवि के जीवन में धीरे-धीरे बदलाव आने लगे। उसे व्यापार में नए अवसर मिले और उसका नुकसान कम होने लगा। कुछ ही महीनों में वह कर्ज के बोझ से मुक्त हो गया। रवि को भी श्याम बाबा पर अटूट विश्वास हो गया और वह भी उनका परम भक्त बन गया।
माधव ने देखा कि श्याम बाबा न केवल उसकी मदद करते हैं, बल्कि वे दूसरों के जीवन में भी आशा की किरण लेकर आते हैं। उसका हृदय कृतज्ञता से भर गया।
माधव अब नियमित रूप से खाटू जाता था। कभी अकेले, तो कभी अपने परिवार और दोस्तों के साथ। हर बार उसे वहाँ एक अद्भुत शांति और आनंद मिलता था। उसे लगता था जैसे श्याम बाबा उसे अपने पास बुलाते हैं और उसे हमेशा यह याद दिलाते हैं कि वह कभी अकेला नहीं है।
फाल्गुन के मेले में माधव हर साल विशेष रूप से जाता था। वह भक्तों की विशाल भीड़, रंग-बिरंगे निशान और श्याम बाबा के जयकारों से गूंजते वातावरण को देखकर भावविभोर हो जाता था। उसे लगता था जैसे पूरा खाटू धाम प्रेम और भक्ति के रंग में रंग गया हो।
एक बार, मेले में माधव ने एक बूढ़े व्यक्ति को देखा जो बहुत कमजोर और असहाय दिख रहा था। वह सड़क के किनारे बैठा हुआ था और भीख मांग रहा था। माधव को उस पर बहुत दया आई। उसने उस बूढ़े व्यक्ति के पास जाकर उससे बात की।
बूढ़े व्यक्ति ने बताया कि वह बहुत गरीब है और उसके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है। उसके बच्चे भी उसे छोड़ गए हैं। माधव का हृदय दुख से भर गया। उसने उस बूढ़े व्यक्ति को कुछ पैसे दिए और उसे श्याम बाबा के मंदिर के पास बने धर्मशाला में रहने की सलाह दी।
अगले दिन, माधव फिर उस बूढ़े व्यक्ति से मिलने गया। उसने देखा कि धर्मशाला के सेवादार उस बूढ़े व्यक्ति की देखभाल कर रहे थे और उसे भोजन और आश्रय दे रहे थे। माधव को यह देखकर बहुत खुशी हुई कि श्याम बाबा के दरबार में हर किसी की मदद की जाती है, चाहे वह अमीर हो या गरीब।
माधव का मानना था कि श्याम बाबा का जादू सचमुच अद्भुत है। यह जादू न केवल उसके जीवन में बल्कि लाखों भक्तों के जीवन में भी छाया हुआ है। जो भी सच्चे मन से श्याम बाबा की शरण में आता है, उसे हमेशा उनका आशीर्वाद मिलता है।
माधव की यह अटूट यात्रा आज भी जारी है। वह जानता है कि जीवन में चाहे कितनी भी परेशानियाँ आएं, उसके “खाटू वाले” हमेशा उसके साथ हैं। उनका प्रेम और विश्वास ही माधव के जीवन का सबसे बड़ा सहारा है। और हर बार खाटू पहुंचकर, वह यही कहता है:
“तेरा जादू खाटू वाले ऐसा सर पे छा गया, मैं फिर से खाटू आ गया…..”