
तू हारे का साथी सांवरा
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर, प्रयागराज में माधव नाम का एक युवक रहता था। माधव एक मेहनती और ईमानदार लड़का था, लेकिन किस्मत ने हमेशा उसका साथ नहीं दिया। उसने कई व्यापार शुरू किए, लेकिन हर बार उसे असफलता का सामना करना पड़ा। धीरे-धीरे, माधव के ऊपर कर्ज का बोझ बढ़ता गया और वह मानसिक रूप से भी टूट गया।
माधव का परिवार भी उसकी असफलता से बहुत दुखी था। उसके माता-पिता ने अपनी जमा पूंजी भी उसके व्यापार में लगा दी थी, लेकिन सब व्यर्थ चला गया। अब घर में आर्थिक तंगी रहने लगी थी और माधव खुद को इस सबका जिम्मेदार मानने लगा था।
माधव बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति का था और श्याम बाबा का बड़ा भक्त था। जब भी उसे समय मिलता, वह बाबा के मंदिर जाता और अपनी पीड़ा उनसे कहता। उसे विश्वास था कि “देता हरदम सांवरे, तू हारे का साथ।” लेकिन लगातार मिल रही असफलता के कारण उसका यह विश्वास भी धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा था।
एक दिन, माधव पूरी तरह से निराश होकर गंगा किनारे बैठा था। उसके मन में बुरे विचार आ रहे थे। उसे लग रहा था जैसे उसके जीवन में अब कुछ भी नहीं बचा है। वह सोच रहा था कि “मैं भी जग से हार के आया, थाम ले मेरा हाथ।”
तभी उसकी नजर गंगा में बहते हुए एक फूल पर पड़ी। वह फूल किनारे से दूर बहता जा रहा था, लेकिन फिर भी अपनी यात्रा जारी रखे हुए था। माधव को उस फूल से एक प्रेरणा मिली। उसने सोचा कि जब एक छोटा सा फूल भी हार नहीं मान रहा है, तो वह क्यों निराश हो रहा है?
उसी पल, उसे श्याम बाबा के मंदिर की याद आई। उसे लगा जैसे बाबा उसे बुला रहे हों। वह तुरंत उठा और खाटू जाने का निश्चय किया। उसके पास ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन उसे विश्वास था कि अगर बाबा ने उसे बुलाया है, तो रास्ता भी वही दिखाएंगे।
अगले दिन, माधव बिना किसी को बताए घर से निकल पड़ा। उसने पैदल ही खाटू की ओर यात्रा शुरू कर दी। रास्ते में उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उसका मन श्याम बाबा के दर्शन के लिए व्याकुल था।
कई दिनों तक पैदल चलने के बाद, माधव आखिरकार खाटू नगरी पहुँच गया। मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ थी। माधव धीरे-धीरे भीड़ में आगे बढ़ता गया और आखिरकार श्याम बाबा के दर्शन करने का उसे सौभाग्य मिला।
बाबा की मूर्ति को देखते ही माधव की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर बाबा से प्रार्थना की। उसने अपनी सारी पीड़ा, अपनी सारी असफलता बाबा के चरणों में रख दी। वह रोते हुए बोला, “रो रही आँखें मेरी, हँसता जमाना है। मुश्किलों में घिर गया, तेरा दीवाना है।”
माधव कई घंटों तक मंदिर में बैठा रहा। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे बाबा उसकी सारी बातें सुन रहे हों और उसे ढांढस बंधा रहे हों। उसे थोड़ा शांति मिली और उसके मन का बोझ हल्का हुआ।
जब वह मंदिर से बाहर निकला, तो उसे एक अनजान व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति ने माधव से पूछा कि वह कहाँ से आया है और क्या करता है। माधव ने उसे अपनी सारी कहानी सच-सच बता दी।
उस व्यक्ति का नाम श्याम सुंदर था। वह एक दयालु और परोपकारी व्यक्ति था। माधव की कहानी सुनकर उसे बहुत दुख हुआ। उसने माधव से कहा कि वह उसे एक काम दिलाएगा। श्याम सुंदर की खाटू में एक छोटी सी दुकान थी जहाँ वह श्याम बाबा से संबंधित वस्तुएं बेचता था। उसने माधव को अपनी दुकान पर काम करने का प्रस्ताव दिया।
माधव के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। वह तुरंत तैयार हो गया। उसे लगा जैसे श्याम बाबा ने ही श्याम सुंदर को उसकी मदद के लिए भेजा हो।
माधव ने श्याम सुंदर की दुकान पर ईमानदारी और मेहनत से काम करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे, उसने काम सीख लिया और दुकान का सारा हिसाब-किताब संभालने लगा। श्याम सुंदर भी माधव की ईमानदारी और लगन से बहुत खुश थे। उन्होंने माधव को अपने परिवार का सदस्य मान लिया।
कुछ महीनों के भीतर, माधव की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी। उसे रहने के लिए जगह मिली और खाने-पीने की चिंता भी दूर हो गई। अब वह थोड़ा खुश रहने लगा था, लेकिन उसे अभी भी अपने परिवार की याद आती थी। वह जानता था कि उसके कारण उसका परिवार बहुत परेशान होगा। वह सोचता था, “बिन तेरे अब कौन सुने, मेरे दिल की बात। मैं भी जग से हार के आया, थाम ले मेरा हाथ।”
एक दिन, श्याम सुंदर ने माधव से उसके परिवार के बारे में पूछा। माधव ने उन्हें सब कुछ सच-सच बता दिया। श्याम सुंदर ने माधव को उसके घर वापस जाने और अपने परिवार से मिलने की सलाह दी। उन्होंने माधव को कुछ पैसे भी दिए ताकि वह अपने परिवार की मदद कर सके।
माधव श्याम सुंदर का बहुत आभारी था। वह तुरंत अपने घर प्रयागराज के लिए रवाना हो गया। जब वह घर पहुँचा, तो उसके माता-पिता और भाई-बहन उसे देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने माधव को गले लगा लिया और खूब रोए।
माधव ने अपने परिवार को खाटू में अपने साथ हुई सारी बातें बताईं और यह भी बताया कि कैसे श्याम बाबा ने उसकी मदद की। उसके परिवार वाले भी यह सुनकर बहुत खुश हुए और उनका विश्वास श्याम बाबा पर और भी बढ़ गया।
माधव ने श्याम सुंदर द्वारा दिए गए पैसे अपने परिवार को दिए जिससे उनकी आर्थिक तंगी कुछ हद तक दूर हो गई। अब माधव को यह समझ में आ गया था कि भले ही उसे जीवन में कितनी भी असफलता मिले, उसे कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा श्याम बाबा पर विश्वास रखना चाहिए।
कुछ दिनों बाद, माधव वापस खाटू चला गया और श्याम सुंदर के साथ काम करने लगा। अब वह पहले से भी अधिक मेहनत और लगन से काम करता था। उसने अपनी पिछली गलतियों से सबक सीखा था और अब वह हर काम सोच-समझकर करता था।
धीरे-धीरे, माधव ने कुछ पैसे बचा लिए और श्याम सुंदर की मदद से खाटू में ही अपनी एक छोटी सी दुकान खोल ली। उसकी दुकान भी अच्छी चलने लगी और अब वह एक सफल व्यापारी बन गया था।
माधव ने कभी भी अपनी पिछली मुश्किलों को नहीं भुला। वह हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करता था। उसका मानना था कि यह सब श्याम बाबा की कृपा से ही संभव हुआ है। वह अक्सर कहता था, “हर कदम पर क्यों भला, मैं मार खाता हूँ। जीतना चाहूँ मगर मैं, हार जाता हूँ। आजा अब तू देखले, मेरे ये हालात। मैं भी जग से हार के आया, थाम ले मेरा हाथ।”
माधव जानता था कि जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जब इंसान हार जाता है और उसे कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। लेकिन ऐसे समय में श्याम बाबा ही एकमात्र सहारा होते हैं जो हारे हुए का साथ देते हैं।
एक बार, माधव के जीवन में एक और बड़ी मुश्किल आई। उसकी दुकान में आग लग गई और सारा सामान जलकर राख हो गया। माधव फिर से निराश हो गया। उसे लग रहा था जैसे उसकी किस्मत में कभी सुख नहीं लिखा है।
वह रोते हुए श्याम बाबा के मंदिर में गया और उनसे प्रार्थना करने लगा। उसने कहा, “तू नहीं सुनता अगर, किसको बताता मैं। घाव जो दिल पे लगे, किसको दिखाता मैं।”
माधव को लग रहा था कि इस बार बाबा भी उसकी नहीं सुन रहे हैं। वह पूरी तरह से टूट चुका था।
तभी मंदिर का एक पुजारी माधव के पास आया और उसे एक पर्ची दी। उस पर्ची पर एक पता लिखा हुआ था। पुजारी ने कहा कि यह पर्ची उसे मंदिर के बाहर एक अनजान व्यक्ति ने दी है और कहा है कि माधव को इस पते पर जरूर जाना चाहिए।
माधव हैरान था, लेकिन उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था। वह उस पते पर चला गया। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि वह एक बड़ी सी दुकान थी जो श्याम बाबा से संबंधित वस्तुओं से भरी हुई थी। दुकान का मालिक एक बुजुर्ग व्यक्ति था।
उस बुजुर्ग व्यक्ति ने माधव को देखते ही पहचान लिया और उसे अंदर बुलाया। उसने माधव को बताया कि वह श्याम सुंदर का दूर का रिश्तेदार है और श्याम सुंदर ने उसे माधव के बारे में सब कुछ बता दिया था। उसने माधव को अपनी दुकान में काम करने का प्रस्ताव दिया और यह भी कहा कि वह उसे नई दुकान खोलने में भी मदद करेगा।
माधव एक बार फिर हैरान रह गया। उसे विश्वास हो गया कि यह सब श्याम बाबा की ही कृपा है। बाबा ने उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा और हमेशा उसकी मदद की।
माधव ने उस बुजुर्ग व्यक्ति के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे, उसने फिर से पैसे कमाए और अपनी नई दुकान खोली। इस बार उसकी दुकान बहुत अच्छी चली और वह एक सफल और समृद्ध व्यापारी बन गया।
माधव ने कभी भी अपने बुरे दिनों को नहीं भुला और हमेशा श्याम बाबा का शुक्रगुजार रहा। वह हर साल खाटू जाता और गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करता। उसने अपने जीवन से यह सीख ली थी कि कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा श्याम बाबा पर विश्वास रखना चाहिए।
वह अक्सर कहता था, “‘हर्ष’ जमाने ने दिए, कितने ही आघात। मैं भी जग से हार के आया, थाम ले मेरा हाथ। देता हरदम साँवरे, तू हारे का साथ।”
माधव का जीवन इस बात का प्रमाण था कि श्याम बाबा वास्तव में हारे हुए का साथ देते हैं। जो भी सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, वह कभी निराश नहीं लौटता। हमें हमेशा उन पर अटूट विश्वास रखना चाहिए और अपने कर्मों पर भरोसा करना चाहिए।
श्याम बाबा की कृपा हमेशा हम पर बनी रहे।
“देता हरदम सांवरे, तू हारे का साथ, मैं भी जग से हार के आया, थाम ले मेरा हाथ।” यह पंक्ति माधव के जीवन का सार थी। यह विश्वास और समर्पण की शक्ति थी जिसने उसे हर मुश्किल से बाहर निकाला और श्याम बाबा के चरणों में हमेशा के लिए स्थान दिलाया।
श्याम बाबा की जय! जय श्री श्याम!