
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन, गूढ़ और प्रेरणादायक है। यह मंदिर राजस्थान राज्य के सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित है और महाभारत के महान योद्धा बर्बरीक को समर्पित है, जिन्हें कलियुग में ‘श्याम बाबा’ के नाम से पूजा जाता है.
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास: पुरातनता, परंपरा और आस्था की कहानी
प्रस्तावना
खाटू श्याम बाबा का मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थान है बल्कि भक्ति, बलिदान और सर्वसमर्पण की जीती-जागती मिसाल भी है। इसका इतिहास महाभारत काल की गहराइयों से जुड़ा हुआ है और सदियों से यह मंदिर देश-विदेश के भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.
बर्बरीक: महाभारत के योद्धा से ‘हारे का सहारा’ तक
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बर्बरीक, पांडवों के भीम के पौत्र तथा घटोत्कच के पुत्र थे।
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बर्बरीक के पास माता शक्ति से तीन अजेय बाण प्राप्त थे और उन्होंने प्रण किया था कि वे महाभारत के युद्ध में केवल पराजित पक्ष का साथ देंगे.
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श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेनी चाही, क्योंकि उनकी शक्ति से युद्ध का संतुलन बिगड़ सकता था; श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश (सिर) दान में मांगा।
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बर्बरीक ने सहर्ष शीश दान दे दिया और श्रीकृष्ण ने वरदान दिया कि कलियुग में लोग उन्हें ‘श्याम’ के नाम से पूजेंगे और वे ‘हारे का सहारा’ बनेंगे.
खाटू में शीश की प्राप्ति की कथा
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महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का शीश रूपवती नदी में प्रवाहित करवाया।
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शताब्दियों बाद उस स्थान पर एक गाय अपने आप थन से दूध गिराने लगी; गाँववालों ने आश्चर्यजनक घटना देखी और बताया।
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उस स्थान पर खुदाई की गई, जिससे बर्बरीक का शीश बाहर आया। कहा जाता है, उसी रात खाटू के लोकल राजा को स्वप्न में श्रीकृष्ण का आदेश मिला—’इस शीश का मंदिर बनाकर स्थापना करो’.
मंदिर की स्थापना
राजा रूप सिंह चौहान और महारानी नर्मदा कँवर का योगदान
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खाटू के तत्कालीन राजा रूप सिंह चौहान व उनकी पत्नी नर्मदा कँवर ने लगभग 1027 ईस्वी में मंदिर का निर्माण कराया।
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खाटू गाँव में ही बर्बरीक के शीश की स्थापना की गई, जिससे इस स्थान का नाम हुआ ‘खाटू श्याम मंदिर’.
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इसे बाद के वर्षों में ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने 1720 ईस्वी में पुनः जीर्णोद्धार करवाया, जिससे मंदिर का वर्तमान भव्य स्वरूप निर्मित हुआ.
धार्मिक महत्व और परंपराएं
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खाटू श्याम बाबा को राजस्थान, हरियाणा, उत्तर भारत और विदेशों तक में ‘हारे का सहारा’, ‘श्याम बाबा’, ‘तीन बाणधारी’ आदि नामों से श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा जाता है.
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मान्यता के अनुसार, जो सच्चे मन से बाबा को पुकारे, उसकी हर मनोकामना श्याम बाबा पूरा करते हैं।
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भक्तों की मदद हेतु बाबा का दरबार शरणागत को अपनाता है, इसी कारण मंदिर ‘आखिरी आशा स्थल’ कहलाता है.
मेला, उत्सव और जन-आस्था की झलक
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प्रतिवर्ष फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) में प्रमुख ‘लक्खी मेला’ आयोजित होता है; लाखों भक्त यहाँ आते हैं और ‘श्याम दरबार’ सजता है.
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कार्तिक एकादशी, जन्माष्टमी, दीवाली और अन्य बड़े हिंदू त्योहार भी मंदिर में विशाल रूप में मनाए जाते हैं।
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बाबा की जन्म-तिथि देवउठनी एकादशी को ‘प्राकट्य महोत्सव’ के रूप में मनाई जाती है.
मंदिर और सांस्कृतिक धरोहर
वास्तुकला और परिसर
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मंदिर का मुख्य भवन संगमरमर और लाल पथ्थर से सुशोभित है; प्रवेशद्वार, मंडप, गर्भगृह अत्यंत आकर्षक हैं.
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शिखर पर सूरजगढ़ से लाया गया ‘श्याम ध्वज’ प्रतिष्ठित होता है; इसका विशिष्ट महत्त्व है।
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मंदिर परिसर में श्याम कुंड, भव्य तोरण द्वार, जलव्यवस्था के लिए कुंड, व मनोरम उद्यान बने हैं.
श्याम सिर और धड़ का रहस्य
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बर्बरीक का शीश खाटू (राजस्थान) में स्थापित है, जबकि उनके धड़ की पूजा हरियाणा के चुलकाना धाम में होती है.
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चुलकाना धाम भी श्याम भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है।
खाटू धाम का आध्यात्मिक प्रभाव
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भक्तों का विश्वास है कि खाटू श्याम के दरबार जाना सभी संकटों का अंत है.
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मंदिर में रोज़ भजन, आरती, भोग, श्रृंगार, रासलीला और उत्सव का माहौल रहता है।
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास एक ऐसे पौराणिक पात्र की कथा से जुड़ा है, जिसने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति, निष्ठा, और बलिदान से अनंतकाल तक भक्ति का दीप प्रज्वलित किया। खाटू के इस पवित्र धाम में आज भी सच्ची श्रद्धा लेकर जाना आध्यात्मिक ऊर्जा, शांति और संतोष का कारण है। मंदिर का स्थापत्य, परंपराएँ, मेले एवं भक्तों की आस्था इसे देशभर का अनूठा तीर्थ स्थल बनाती है, जहां ‘हारे का सहारा’ साक्षात विद्यमान है.